छत्रपति शिवाजी टर्मिनस स्टेशन से करीब एक किलोमीटर की दूरी पर दक्षिण मुंबई के बीचोबीच मौजूद लोहार चाल में वक्त जैसे थम सा गया है। मुंबई में बिजली के सामान के लिए प्रमुख केंद्र माने जाने वाले इस बाजार में ऐसी इमारतों की निचली मंजिल पर सैकड़ों थोक और खुदरा दुकानें हैं जो लगभग गिरने की स्थिति में हैं। यहां की बेहद संकरी गलियों में सभी तरह और सभी आकार के वाहनों की भीड़ दिख जाती है। नजारा कुछ ऐसा दिखता है कि पैदल चलने वाले लोग पटरी पर सामान बेचने वालों को और गाडिय़ां सड़क के गड्ढों और भीड़ से बचने की कोशिश करती हैं, जिससे यहां हमेशा भ्रम की स्थिति बनी रहती है।
हालांकि, इन बातों से किसी भी दुकान मालिक पर कोई असर नहीं होता है। ज्यादातर दुकान मालिक बाहर के शोर से बचने के लिए शीशे के दरवाजे बंद कर देते हैं और एसी चलाने के बाद बाहरी दुनिया से वे बिल्कुल अछूते हो जाते हैं। इन सबमें एक बात को लेकर एकजुटता है और वह है नकद भुगतान और केवल नकदी। इनमें से ज्यादातर कारोबारी आपको विनम्र ही नजर आएंगे लेकिन जैसे ही आपने क्रेडिट/डेबिट कार्ड या मोबाइल वॉलेट का इस्तेमाल कर भुगतान करने की कोशिश की तो आपको उनका आक्रामक रूप दिख सकता है। वे पूरी विनम्रता भी बरतें तब भी खरीदार को बाहर का रास्ता दिखाते हुए कहेंगे ‘चले जाइए’।
यहां आपको सब चीजों का भुगतान नकद ही करना होगा चाहे आप 1,000 रुपये की खरीदारी करें या फिर एक लाख रुपये से अधिक की खरीदारी करें। यहां के कारोबारी आपकी इतनी मदद कर सकते हैं कि वे आपको बैंक एटीएम का रास्ता दिखा दें ताकि आप नकद पैसे निकाल कर अपना बिल चुका सकें। दिलचस्प बात यह है कि बिल भी एक सादे कागज पर होगा जिसका कोई लेटरहेड भी नहीं होगा। यहां 100 मीटर के भीतर ही कम से 20 एटीएम मशीनें हैं जिनके दम पर लोहार चाल की नकदी अर्थव्यवस्था संचालित होती है।
पुराने जमाने के लोग जो लोहार चाल की रवायत से वाकिफ हैं वे नकदी लेकर ही यहां आते हैं। यहां के एक हीरे जड़ी हुई इयरिंग्स के कारोबारी से जब यह पूछा जाता है कि क्या बिना बिल दिए नकदी लेने पर डर नहीं लगता है, तब वे इस पर बेहद सोच-विचार कर कहते हैं कि यह सवाल उन अधिकारियों से किया जाना चाहिए जो दफ्तरों में बैठकर रिश्वत लेते हैं और जहां सीसीटीवी भी चल रहा होता है। हालांकि इन कारोबारियों को वैसे भी किसी बात की चिंता करने की जरूरत नहीं है क्योंकि एक बार बहुचर्चित कार्रवाई करने के बाद ऐसा लगता है कि कर अधिकारी, लोहार चाल का अस्तित्व ही भूल गए हैं।
अगर आपको लगता है कि लोहार चाल, या पास का मंगलदास या क्रॉफर्ड बाजार अपवाद है तो आप वर्ली में कमला मिल्स कंपाउंड में नए खुले आइकिया स्टोर पर जाएं। यह स्टोर खरीदारों को डिजिटल भुगतान करने के लिए प्रोत्साहित करता है और उनके लिए खुद ही चेक-आउट करने का विकल्प भी देता है। लेकिन यहां भी आपको कार्ड या वॉलेट का इस्तेमाल करने वाले लोगों की तुलना में उन लोगों की कम से कम तीन गुना लंबी कतार दिख जाएगी जो बड़ी खरीदारी के लिए नकद भुगतान करना चाहते हैं।
इन उदाहरणों के साथ ही आपका सामना देश में नकदी के प्रति आग्रह वाली मिसालों से हो सकता है। हैरानी की बात यह भी है कि हम भारत के मझोले शहरों या कस्बों के बारे में बात नहीं कर रहे हैं जहां डिजिटल प्रक्रिया तक पहुंच अब भी सीमित है। सवाल यह है कि अगर देश की वाणिज्यिक राजधानी (दिल्ली और अन्य महानगर भी पीछे नहीं हैं) के सबसे अमीर इलाकों में ऐसा हो रहा है तो इससे देश के नागरिकों के नैतिक पैमाने के बारे में क्या अंदाजा मिलता है? किसी को इस बात की परवाह नहीं है कि एक अर्थव्यवस्था में जितनी अधिक कर चोरी होगी, ईमानदार उद्यमियों के लिए चुनौतियां उतनी ही बढ़ेंगी और नैतिकता का स्तर कम होगा।
आप रियल एस्टेट के लेन-देन पर गौर करें। उम्मीद यह की गई थी कि नोटबंदी से काले धन पर लगाम लगेगी और अर्थव्यवस्था में नकदी का संचार कम होगा लेकिन नोटबंदी के पांच बाद एक कम्युनिटी मंच लोकलसर्कल्स ने सर्वेक्षण किया जिसमें हिस्सा लेने वाले करीब 70 प्रतिशत लोगों ने कहा कि उन्होंने रियल एस्टेट के लेन-देन के कुल भुगतान में से एक बड़ा हिस्सा नकदी में चुकाया। करीब 16 प्रतिशत ने कहा कि उन्होंने आधी से ज्यादा रकम नकदी में चुकाई है। कई लोगों ने बताया कि कई मझोले और छोटे पैमाने के उद्यमों का संपत्ति पंजीकरण भी कर बचाने के मकसद से भुगतान किए गए कुल मूल्य के एक छोटे हिस्से पर ही होता है। इसी वजह से डिजिटल भुगतान में तेजी आ रही है और अर्थव्यवस्था में एक बार फिर से करीब 14 प्रतिशत नकदी का चलन है जो स्थिति नोटबंदी से पहले भी थी।
लोहार चाल और अन्य बड़े बाजारों के उदाहरण से यह स्पष्ट अंदाजा मिलता है कि ट्रांसपैरेंसी इंटरनैशनल के ताजा करप्शन परसेप्शन इंडेक्स में 180 देशों के बीच भारत आखिर छह स्थान पीछे होकर 86 वें स्थान पर क्यों आ गया। ग्लोबल करप्शन बैरोमीटर-एशिया के एक अध्ययन के अनुसार, एशिया में स्वास्थ्य देखभाल और शिक्षा जैसी सार्वजनिक सेवाओं तक पहुंच बनाने के लिए रिश्वतखोरी के बगैर काम नहीं चलता और व्यक्तिगत संपर्कों का इस्तेमाल सबसे अधिक किया जाता है। इस बात को सभी जानते हैं कि ये सूचकांक किसी भी देश में वास्तविक भ्रष्टाचार के स्तर को प्रतिबिंबित नहीं करते हैं जिसका अर्थ यह हुआ कि वास्तविकता बदतर है।
नागरिकों द्वारा भ्रष्टाचार में सक्रिय भागीदारी और इसकी स्वीकार्यता काफी महंगी साबित हुई है। ट्रांसपैरेंसी इंटरनैशनल ने अनुमान लगाया है कि 10 से 0 के पैमाने पर भ्रष्टाचार में एक सूत्री वृद्धि, सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 4 प्रतिशत उत्पादकता को कम करती है और सकल घरेलू उत्पाद के शुद्ध वार्षिक पूंजी प्रवाह में 0.5 प्रतिशत की कमी लाती है।
हालांकि यह सच है कि कर चोरी के बड़े धुरंधरों में वे लोग शामिल हैं जो अपनी पूंजी पर कर भुगतान से बचने के लिए उन देशों में पैसे रखते हैं जहां कराधान के नियम उनके अनुकूल हैं। यह भी सच है कि निचली पंक्ति के भी कई लोग कर भुगतान से बचने के लिए चकमा देने की कोशिश में लगे रहते हैं। पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली ने अपने एक बजट भाषण में कहा था कि देश का समाज काफी हद तक कर भुगतान नियमों का पालन नहीं करने वाला समाज है।
