भारतीय सॉफ्टवेयर के लिए आने वाले दिन जितने अंधकारमय नजर आ रहे हैं, उतने पहले कभी नहीं रहे हैं।
इन्फोसिस के सीईओ एस गोपालकृष्णन ने संकेत दिए हैं कि इस साल सॉफ्टवेयर उद्योग महज 15 फीसदी की दर से बढ़ सकता है जबकि पिछले साल इस क्षेत्र ने 30 फीसदी की विकास दर दर्ज की थी।
नैसकॉम ने भी इससे पहले सॉफ्टवेयर उद्योग के लिये मौजूदा साल में 21 से 24 फीसदी की विकास दर का अनुमान व्यक्त किया था।
इसका सीधा असर रोजगार पर पड़ेगा। इन्फोसिस ने इस वित्त वर्ष की शुरुआत में भर्तियों का जो लक्ष्य घोषित किया था, वह उस पर कायम है, पर अगले साल नई नियुक्तियों पर इसका असर दिख सकता है।
मौजूदा वर्ष 2002-03 से भी बुरा रह सकता है जब दूरसंचार का बुलबुला फूटा था और 11 सितंबर का असर देखने को मिला था।
2009-10 में भी हालात सुधरने के आसार नहीं हैं। इन हालात को देखते हुए उद्योग ने पहले से रणनीतियां तैयार कर ली हैं हालांकि, कुछ घटनाओं ने उन्हें थोड़ा सुकून पहुंचाया है।
रुपये के कमजोर पड़ने से निर्यात आधारित इस उद्योग को फायदा हुआ है, पर जिस दर पर हेजिंग की गई थी उसकी वजह से यह फायदा सीमित है।
दूसरी अच्छी खबर यह है कि जिस रफ्तार से लोग नौकरियां बदलते थे, उसमें कमी आई है और इस वजह से खाली पदों पर भर्तियों का खर्च कम होगा। तीसरी अच्छी खबर यह है कि बीपीओ और सॉफ्टवेयर दोनों ही क्षेत्रों में ज्यादा महत्त्वपूर्ण काम भारत आ रहा है।
पश्चिमी देशों में वित्तीय सेवा क्षेत्रों में जो संकट पैदा हुआ है उससे कई अधिग्रहण हुए हैं और भारत में नये अवसर पैदा हुए हैं। बीपीओ उद्योग में तो पहले से ही ढांचागत परिवर्तन देखने को मिल रहे हैं जहां कम महत्त्वपूर्ण और उच्च वॉल्यूम वाले वॉयस कारोबार पर निर्भरता कम की जा रही है।
बीपीओ क्षेत्र में अब जानकारी और लीगल प्रोसेस आउटसोर्सिंग पर अधिक ध्यान दिया जा रहा है। आउटसोर्स की गई इंजीनियरिंग सेवाओं पर भी अधिक ध्यान दिया जा रहा है।
उद्योग जगत अब अमेरिका और ब्रिटेन पर अपनी निर्भरता कम करने की कोशिश में जुटा हुआ है जहां से कुल 80 फीसदी निर्यात राजस्व प्राप्त होता है।
आईटी उद्योग का 40 फीसदी कारोबार वित्तीय सेवा क्षेत्र से जुड़ा है और अब यह उद्योग इस क्षेत्र पर अपनी निर्भरता को कम करने में लगा है।
आईटी उद्योग के लिए वित्तीय सेवा क्षेत्र पर अपनी निर्भरता कम करना अपेक्षाकृत आसान इसलिए हो रहा है क्योंकि संगीत, मीडिया और मनोरंजन जैसे कुछ क्षेत्रों में तेजी से विकास हो रहा है।
इन क्षेत्रों में दस्तावेजों और सूचनाओं को डिजिटल प्रारूप देना और उनका संग्रह करना एक नया काम है जो तेजी से उभर रहा है। साथ ही मीडिया प्रोसेस आउटसोर्सिंग के क्षेत्र में भी नये गठजोड़ हो रहे हैं।
हालांकि आईटी क्षेत्र के लिये सबसे बड़ी चुनौती यह है कि वह घंटों के हिसाब से वेतन भुगतान के ढर्रे से बाहर निकले। काम की समय सीमा के बजाय उसकी गुणवत्ता पर अधिक ध्यान दिया जाए।
आईटी कारोबार को स्थापित कारोबार का दर्जा दिलाना अब भी दूर की कौड़ी नजर आती है। भारत में आईटी अब भी उद्योग न होकर सेवा है और लगता नहीं है कि निकट भविष्य में इस स्थिति में बदलाव आएगा।