करीब 200 कंपनियों के चौथी तिमाही केनतीजों का विश्लेषण करने के बाद बिजनेस स्टैंडर्ड रिसर्च ब्यूरो ने पुष्टि की है कि आशा के मुताबिक बिक्री और मुनाफे में भारी गिरावट आई है।
विश्लेषण में बैंक और वित्तीय क्षेत्र से जुड़ी अन्य कंपनियां शामिल नहीं हैं। साल 2007-08 की चौथी तिमाही के मुकाबले सभी महत्वपूर्ण वित्तीय संकेतकों में गिरावट आई है। बिक्री में जहां करीब-करीब 5 फीसदी की गिरावट आई है वहीं परिचालन लाभ (एबिटा) 6.5 फीसदी तक गिरा है।
शुध्द लाभ में 11.7 फीसदी की भारी गिरावट देखी गई है। नतीजतन परिचालन लाभ मार्जिन एक साल पहले के 18.2 फीसदी के मुकाबले पिछले महीने समाप्त तिमाही में 17.5 फीसदी पर आ गया है। इस अवधि में शुध्द लाभ का मार्जिन 12.7 फीसदी से घटकर 11.7 फीसदी रह गया है।
चूंकि पिछले साल की चौथी तिमाही के मुकाबले इस साल की चौथी तिमाही में महंगाई की दर में काफी कमी आई है, लिहाजा यह गिरावट पूरी तरह कम वॉल्यूम की वजह से है। जिंसों की कीमत में 2007-08 के अंत में शुरू हुआ उछाल का दौर अब पूरी तरह समाप्त हो गया है। लिहाजा विनिर्माण क्षेत्रों में इनपुट कॉस्ट काफी कम हो गई है।
हालांकि कई अन्य कारणों से उनकी लाभदायकता पर विपरीत असर पड़ा है। पहला, ब्याज के मद में होने वाला खर्च 41 फीसदी तक बढ़ा है जो कि भारतीय अर्थव्यवस्था में ऋण की तंगी को बताता है।
कारोबारों के फंड के स्रोत के रूप में बैंक जहां अकेला ऐसा संस्थान बन गया था (इसमें विदेशों से आने वाला प्रवाह भी शामिल), निष्क्रिय हो गया है और यह अब भी सुरक्षित रूप से काम कर रहा है बावजूद इसके कि भारतीय रिजर्व बैंक फटकार लगा चुका है। दूसरा, चौथी तिमाही केदौरान रुपये में आए उतार-चढ़ाव ने भी कई कंपनियों की लाभदायकता पर असर डाला है।
लेकिन इनमें कुछ सकारात्मक बातें भी हैं। पहला, योग के स्तर पर जहां मार्जिन घटा है, पर अब भी यह अच्छे स्तर पर है। कॉरपोरेट सेक्टर के आंकड़ों के नमूने बताते हैं कि यह इलाका नुकसान से काफी दूर है। दूसरा, कुछ कंपनियों के प्रदर्शन से यह दृष्टिकोण सामने आया है कि घरेलू मांग में महत्त्वपूर्ण रूप से तेजी है।
हीरो होंडा ने जिस तरह का प्रदर्शन किया है उससे लगता है कि इसने ग्रामीण बाजार का काफी दोहन किया है, जो कि अर्थव्यवस्था के दूसरे हिस्से में हो रही गड़बड़ी से अप्रभावित रहा है। इस साल मानसून के सामान्य रहने की भविष्यवाणी ग्रामीण उपभोक्ताओं की क्षमता में बढ़ोतरी करेगी और यह अर्थव्यवस्था में गिरावट को कम करने में योगदान देगी।
सार्वजनिक क्षेत्र के कर्मचारियों की तनख्वाह में हुई बढ़ोतरी भी उपभोक्ता मांग में इजाफा करेगी। अंत में कुछ और तत्व जैसे ब्याज की दर और विनिमय दर आने वाली तिमाही में अनुकूल होंगी। दरों में कमी की खातिर मौद्रिक नीति में परिवर्तन हो रहा है। यह वक्त की बात रह गई है जब उधार लेने वाले इसका असर देखना शुरू करेंगे।
साथ ही पूंजी प्रवाह का पैटर्न, जिसने रुपये के उतार-चढ़ाव में भारी योगदान दिया है, स्थिर होना चाहिए। अगर चौथी तिमाही के आंकड़े वास्तव में विपरीत परिस्थितियों के असर को प्रतिबिंबित कर रहे हैं तो फिर इससे कॉरपोरेट सेक्टर के आत्मविश्वास में थोड़ा बहुत परिवर्तन आएगा।
