मध्य अक्टूबर तक तीव्र प्रायिकता वाले संकेतकों ने ऐसे संकेत दिए थे कि उस महीने श्रम बाजार जड़ता का शिकार होगा या उसकी हालत बिगड़ेगी। हमने 19 अक्टूबर को कहा था कि श्रम बाजार के तीन प्रमुख अनुपात- श्रमशक्ति भागीदारी दर, बेरोजगारी दर और रोजगार दर ने अक्टूबर के तीसरे हफ्ते तक स्थिति थोड़ा बिगडऩे का रुझान दिखाया था। उस समय तक ये तीनों अनुपात सितंबर के अपने स्तरों की तुलना में थोड़े खराब नजर आ रहे थे।
लेकिन अक्टूबर का चौथा सप्ताह बेहतर साबित हुआ। श्रम भागीदारी दर में अच्छी बढ़ोतरी हुई है और बेरोजगारी दर बढऩे के बावजूद यह इतनी अधिक नहीं थी कि सबसे अहम संकेतक यानी रोजगार दर को लाभ की स्थिति में जाने से रोक सके। गत 1 नवंबर को समाप्त इस सप्ताह में भी स्थिति कमोबेश ऐसी ही रही। श्रम भागीदारी दर और बेरोजगारी दर में बढ़त होने के साथ ही रोजगार दर में सुधार देखा गया। पिछले दो सप्ताह में दर्ज इन सुधारों ने अक्टूबर के श्रम परिदृश्य में दिख रही शुरुआती ह्रासोन्मुख रुझान के असर को कम किया है। लेकिन इसके बाद भी अक्टूबर के समग्र श्रम आंकड़ों में बदलाव नहीं आया।
1 नवंबर को जारी अक्टूबर महीने के औपबंधिक अनुमानों ने इसकी पुष्टि की कि मई, जून और जुलाई से जारी अच्छी रिकवरी का दौर अब खत्म हो चुका है। अगस्त, सितंबर एवं अक्टूबर के आंकड़े इसमें और सुधार होता हुआ नहीं दिखा रहे हैं। और अभी तक की सकारात्मक प्रतिक्रिया भी लॉकडाउन के पहले के स्तर तक नहीं पहुंच पाई है।
अक्टूबर का महीना त्योहारों से भरा था और इस दौरान खरीफ की फसल की कटाई भी हुई। इसके अलावा इस महीने में बिहार, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में चुनावों से जुड़ी हलचल भी होती रही। लेकिन इनमें से कोई भी कारक श्रमिकों की मांग में सुधार नहीं ला सका।
अक्टूबर 2020 में 40.66 फीसदी पर रही श्रम भागीदारी दर एकदम सितंबर 2020 के बराबर रही। एक साल पहले अक्टूबर 2019 के 42.9 फीसदी से तो यह काफी कम है। संदर्भ के लिए, श्रम भागीदारी दर लॉकडाउन के पहले कभी भी 42 फीसदी से नीचे नहीं आई थी। लिहाजा अक्टूबर 2020 तक श्रम भागीदारी दर फरवरी 2020 तक की भागीदारी दर से काफी नीचे बनी हुई है।
अप्रैल के महीने में श्रम भागीदारी दर 7.08 फीसदी तक गिर गई थी। मई और जुलाई के दौरान इसमें 5.04 प्रतिशत अंकों का सुधार आया। लेकिन पिछले तीन महीनों में इस दर में सुधार नगण्य रहा है। इस तरह भारत अब भी लॉकडाउन से पहले की तुलना में करीब 2 फीसदी अंक पिछड़ा हुआ है।
जहां तक बेरोजगारी दर का सवाल है तो वह वर्ष 2019-20 के 7.6 फीसदी से बढ़कर अप्रैल 2020 में 23.5 फीसदी तक उछल गई थी। सख्त लॉकडाउन के इस महीने में बेरोजगारी दर में 15.9 फीसदी की भारी उछाल आई थी। लेकिन मई, जून और जुलाई की अवधि में यह पूरा अंतराल खत्म हो गया था। इसका परिणाम यह हुआ कि सितंबर एवं अक्टूबर में बेरोजगारी दर अप्रैल 2019 के बाद के किसी भी महीने से कम रही है। बेरोजगारी दर सितंबर में गिरकर 6.7 फीसदी पर आ गई लेकिन अक्टूबर में यह थोड़ी बढ़त के साथ 7 फीसदी हो गई। यह वृद्धि अक्टूबर में श्रम बाजार संकेतकों की हालत बिगडऩे के अनुरूप ही है।
अक्टूबर में रोजगार दर की हालत भी खराब रही। सितंबर में 38 फीसदी पर रही रोजगार दर अक्टूबर में गिरकर 37.8 फीसदी पर आ गई। यह एक स्थिर श्रम भागीदारी दर और बेरोजगारी दर में बढ़त का मिलाजुला नतीजा है। रोजगार दर ने अप्रैल में 12.2 फीसदी की तीव्र गिरावट देखी थी। हालांकि इसका एक बड़ा हिस्सा यानी 10.4 फीसदी का सुधार मई, जून एवं जुलाई में देखा गया। लेकिन उसके बाद से रिकवरी कुछ खास नहीं रही है। अक्टूबर 2020 में 37.8 फीसदी पर रही रोजगार दर वर्ष 2019-20 के स्तर से 1.56 फीसदी अंक नीचे है।
वैसे 1.56 फीसदी अंक की यह गिरावट पूरी तरह असामान्य भी नहीं है क्योंकि यह लॉकडाउन से मुक्त होने के बाद रोजगार दर में गिरावट की प्रवृत्ति के भी झलकने की संभावना है। वर्ष 2016-17 के बाद से हर साल रोजगार दर गिरती रही है। वर्ष 2017-18 में इसमें 1.13 फीसदी की कमी आई, 2018-19 में 1.46 फीसदी और 2019-20 में यह 0.46 फीसदी अंक की गिरावट पर रहा। अगर यह सिलसिला जारी रहता तो वर्ष 2020-21 में रोजगार दर में करीब एक फीसदी अंक की गिरावट और आती, कोई लॉकडाउन न होने पर भी। निस्संदेह, चालू वित्त वर्ष के पहले सात महीनों में रोजगार दर 55 आधार अंक कम हो चुकी होती। लेकिन इस साल अभी तक 156 आधार अंकों की बड़ी गिरावट आना पहली नजर में इस रुझान के विश्लेषण से कहीं आगे है। इस बड़े फासले को लांघने के लिए जरूरी आवेग खत्म होता हुआ दिख रहा है।
रिकवरी में आई सुस्ती कुल रोजगार आंकड़ों में काफी अच्छी तरह झलकती है। अक्टूबर 2020 मई में शुरू हुई रिकवरी के बाद का यह पहला महीना है, जब रोजगार में गिरावट दर्ज की गई है। हालांकि यह गिरावट 5.5 लाख रोजगार के अपेक्षाकृत कम स्तर तक ही है, फिर भी यह बात अहम है कि मई-जून-जुलाई में तेज रही नौकरियों की बहाली की प्रक्रिया जो अगस्त एवं सितंबर में थोड़ी सुस्त पड़ गई थी, अब अक्टूबर में वह पलट चुकी है और इस महीने रोजगार में कमी आई है। अप्रैल में रोजगार गंवाने वाले 12.1 करोड़ लोगों में से करीब 11 करोड़ लोगों को मई, जून एवं जुलाई के दौरान काम वापस मिल गया। फिर अगस्त एवं सितंबर में महज 50 लाख नए रोजगार ही मिले। अब अक्टूबर में रोजगार मिलने की दर गिर गई।
रोजगार में यह गिरावट उस समय आई है, जब रोजगार की मांग बढ़ रही है। रोजगार मांगने वाले बेरोजगारों की गिनती अक्टूबर में 1.2 करोड़ बढ़ गई।
(लेखक सीएमआईई के प्रबंध निदेशक एवं मुख्य कार्याधिकारी हैं)
