जैव-सुदृढ़ीकरण की संकल्पना को हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का तगड़ा समर्थन मिला जब उन्होंने आठ खाद्य फसलों की 17 जैव-सुदृढ़ किस्मों को जारी किया। जैव-सुदृढ़ीकरण का आशय एक फसल के अंतर्निहित पौष्टिक गुणों को आनुवांशिक सुधार के माध्यम से बढ़ाने से है। प्रधानमंत्री ने इस तकनीक को कुपोषण दूर करने वाला और किसानों की आय बढ़ाने वाले एक किफायती तरीका बताया। इसके पहले सरकार की जेनेटिक इंजीनियरिंग आकलन समिति (जीईएसी) ने आनुवांशिक रूप से संवद्र्धित (जीएम) बीटी-बैगन के खेतों में परीक्षण की अनुमति दी थी। बीटी-बैगन में एक गैर-पादप स्रोत से लिया गया बाहरी जीन बैसिलस थ्यूरिंजीन्सिस (बीटी) समाहित है जो कि मिट्टी में पाया जाने वाला एक बैक्टीरिया है। जीएम फसलों के मैदानी परीक्षण पर वर्ष 2010 से ही रोक लगी हुई है। लेकिन हालिया घटनाक्रम ने इस अटकल को भी जन्म दिया है कि आनुवांशिक रूप से संवद्र्धित उत्पादों पर सरकार की नीति में कोई बड़ा बदलाव तो अघोषित रूप से नहीं हो गया है। अगर ऐसा हुआ भी है तो इसका स्वागत किया जाना चाहिए। अगर ऐसा नहीं है तो फिर ऐसा करने के बारे में सोचने का वक्त है। आधुनिक जैव-प्रौद्योगिकीय साधनों से जैव-सुदृढ़ बीजों का विकास जीन-संपादन एवं एक से दूसरी प्रजाति में जीन हस्तांतरण के माध्यम से कहीं अधिक आसान और परंपरागत तौर-तरीकों से अधिक जल्द हो जाता है।
निस्संदेह भारत भुखमरी पर लगाम लगा पाने में सफल हुआ है जिसका श्रेय खाद्यान्न की प्रचुर उपलब्धता और भोजन-आधिरत कई कल्याण कार्यक्रमों की शुरुआत को जाता है। खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत दो-तिहाई आबादी को रियायती दर पर खाद्यान्न मुहैया कराने के लिए सरकार आबद्ध है। लेकिन कुपोषण (असंतुलित पोषण) और अल्पपोषण (अपर्याप्त पोषण) की समस्या अब भी बदस्तूर कायम है। यह अचरज की बात नहीं है कि भारत वैश्विक भूख सूचकांक 2020 में 107 देशों में से बेहद नीचे 94वें स्थान पर मौजूद है और बांग्लादेश, पाकिस्तान एवं नेपाल जैसे पड़ोसी भी उससे बेहतर स्थिति में हैं। इस खराब स्थिति का असर मुख्य रूप से कम वजन, ऊंचाई में कमी और पांच साल से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु दर अधिक होने के रूप में सामने आता है। दुनिया में अल्प-पोषित लोगों की सबसे बड़ी संख्या 19.46 करोड़ भारत में ही है। करीब 38.4 फीसदी बच्चों का कद छोटा रह जाता है और 35.7 फीसदी बच्चों का वजन मानक से कम है।
खाद्य अनुपूरक योजनाओं में मुख्यत: अनाज दिए जाते हैं और एक संतुलित एवं संपूर्ण आहार की जरूरत को नजरअंदाज किया जाता है जबकि सामान्य वृद्धि एवं अच्छी सेहत के लिए यह महत्त्वपूर्ण है। गरीब परिवारों के सामान्य आहार में भी अनाजों की अधिकता होती है। इसका परिणाम यह होता है कि प्रोटीन, विटामिन और आयरन, जिंक एवं आयोडीन जैसे आवश्यक खनिजों की भारी कमी हो जाती है। इसका समाधान या तो फल-सब्जी एवं मांसाहारी खाद्य उत्पादों जैसे पौष्टिक पदार्थों का सेवन बढ़ाने में निहित है या फिर अनाजों में ही प्रोटीन, विटामिन एवं खनिजों के गुणों को समाहित कर एक पौष्टिक आहार तैयार किया जाए। जैव-सुदृढ़ीकरण के जरिये दूसरे विकल्प को हासिल किया जा सकता है और यह लागत के लिहाज से भी किफायती एवं व्यावहारिक समाधान है। प्रधानमंत्री मोदी भी स्कूलों एवं आंगनबाड़ी केंद्रों में दिए जाने वाले दोपहर के भोजन में जैव-सुदृढ़ीकृत अनाजों को शामिल करने की वकालत करते हुए दिखे।
इसमें कोई संदेह नहीं है कि अनाजों को भी विटामिन, खनिज एवं प्रोटीन के साथ मिलाकर या उनकी परत चढ़ाकर अधिक पौष्टिक बनाया जा सकता है लेकिन जैव-सुदृढ़ीकृत अनाज अपने दम पर ही ये पौष्टिक तत्त्व पैदा कर पाने में सक्षम होते हैं और उनके नतीजे कहीं बेहतर रहे हैं। प्राकृतिक अवस्था में मौजूद पौष्टिक तत्त्व कृत्रिम विकल्पों से कहीं अधिक मात्रा में अवशोषित कर लिए जाते हैं। यह बात विटामिन-ए, आयरन और जिंक के मामले में खास तौर पर सही है। अध्ययनों से पता चला है कि प्राकृतिक रूप से संश्लिष्ट पोषक तत्त्वों से बीमार पडऩे की दर, कामकाजी प्रदर्शन और मस्तिष्क की क्षमता में अधिक सुधार आता है।
भारत प्रच्छन्न भूख से लडऩे में जैव-सुदृढ़ीकरण की संभावनाओं का सार्थक इस्तेमाल करने की होड़ में देरी से शामिल हुआ है। अफ्रीका एवं अन्य क्षेत्रों के करीब 40 निम्न आय एवं मध्यम आय वाले देश इस मामले में भारत से कहीं आगे हैं। दुनिया भर में जैव-सुदृढ़ीकृत फसलों के विकास एवं प्रोत्साहन कार्यों में संलग्न शोध फर्म हार्वेस्टप्लस कहती है कि करीब 1.5 करोड़ छोटे एवं सीमांत किसानों ने इन फसलों की खेती करनी शुरू कर दी है।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के महानिदेशक टी महापात्र के मुताबिक भारत ने विभिन्न फसलों की करीब 35 जैव-सुदृढ़ किस्में विकसित कर ली हैं और कई अन्य किस्मों के विकास का काम जारी है। इन्हें ‘कुपोषण-मुक्तभारत’ बनाने के लिए हमारी खाद्य शृंखला में शामिल किया जा सकता है। प्रधानमंत्री की तरफ से जारी 17 फसल किस्मों में धान की प्रजाति सीआर धान-315 और गेहूं की तीन किस्में (एचडी 3298, एचडी 303 और डीडीडब्ल्यू 48) भी शामिल हैं। मोटे अनाजों में से मक्के की तीन हाइब्रिड किस्मों में लाइसिन एवं ट्रिप्टोफान जैसे प्रोटीन की मात्रा काफी अधिक है। रागी की दो किस्में सीएमएफवी 1 एवं 2 कैल्शियम, आयरन एवं जिंक जैसे खनिजों से भरपूर हैं जबकि कुटकी की सीएलएमवी किस्म में आयरन एवं जिंक की प्रचुरता है। तिलहनों में से पूसा मस्टर्ड 32 को इस तरह से संवद्र्धित किया गया है कि इसमें नुकसानदेह इरुसिक एसिड की मात्रा कम हो गई है। मूंगफली की गिरनार 4 एवं 5 किस्मों में आनुवांशिक संवद्र्धन के माध्यम से ओलिक एसिड की मात्रा बढ़ा दी गई है। अरवी की श्री नीलिमा एवं डीए 340 किस्मों में जिंक, आयरन एवं ऐंथोसियानिन की मात्रा बढ़ा दी गई है जिससे मधुमेह, कैंसर और मोटापे से बचाव होगा।
जब प्रधानमंत्री ने जैव-सुदृढ़ीकृत फसलों की अहमियत स्वीकार ली है और पौष्टिकता बढ़ाने में इनका प्रयोग बढ़ाने की बात भी कही है तब इस दिशा में आगे बढऩे में कोई रोड़ा नहीं आना चाहिए।
