करीब एक दशक पहले तक निष्क्रिय रहे संगीत जगत के कारोबार में हाल फिलहाल में जबरदस्त गतिविधियां देखने को मिली हैं। सन 2020 से लेकर इस वर्ष के आरंभ तक वैश्विक संगीत उद्योग में विलय एवं अधिग्रहण की राशि ही 10 अरब डॉलर की राशि का आंकड़ा पार कर गई। विगत तीन वर्षों में नील यंग, शकीरा और बॉब डिलन जैसे संगीतकारों ने अपने गाने हिपनॉसिस, रॉयल्टी एक्सचेंज अथवा यूनिवर्सल जैसी कंपनियों या फंड को उनकी कीमत से 10-15 गुना अधिक मूल्य पर बेचे। सन 2019 में पेरिस की कंपनी बिलीव की भारतीय शाखा ने वीनस की संगीत शाखा के वैश्विक अधिकार करीब 380 करोड़ रुपये में खरीदे। इसके बाद 2021 के अंत में दक्षिण भारत की थिंक म्यूजिक में उसने 1,000 करोड़ रुपये से अधिक का निवेश करके 76 फीसदी हिस्सेदारी खरीदी। लगभग उसी समय देश के सबसे बड़े संगीत ब्रांड में से एक सारेगामा ने 750 करोड़ रुपये जुटाए। संगीत जगत की घटनाओं पर नजर डालिए और समूचे मीडिया और मनोरंजन उद्योग का अतीत, वर्तमान और भविष्य स्पष्ट रूप से सामने आ जाएगा।
मीडिया कारोबार के लिए संगीत हमेशा नवाचारी रहा है। दुनिया के एक हिस्से से संगीत की एक फाइल दूसरी जगह ले जाने के लिए बहुत कम डेटा की आवश्यकता होती है। यह उन शुरुआती कारोबारों में से एक है जिन्हें इंटरनेट ने अव्यवस्थित किया। आश्चर्य नहीं कि यह वापसी करने वाले शुरुआती कारोबारों में से भी एक रहा।
सन 1990 के दशक में एमपी3 की तकनीक से संगीत का आकार और छोटा करने में मदद मिली। जब युवाओं ने सीडी से निकालकर संगीत को आपस में साझा करने का काम शुरू किया और संगीत का कारोबारी मॉडल एक बार फिर ढह गया। सन 2001 के 23.4 अरब डॉलर के वैश्विक राजस्व से घटकर 2011 में यह 14.7 अरब डॉलर रह गया। जल्दी ही आई ट्यूंस (2001), यू ट्यूब (2005) आए तथा 2006 से स्ट्रीमिंग करने वाली ऐप मसलन स्पॉटिफाई आदि ने संगीत रचना करने वाले और श्रोताओं के लिए नए दरवाजे खोले। इससे कारोबार का आर्थिक गणित बदल गया। ब्रिटेन की कंपनी ओमिडा के संगीत विभाग के प्रमुख साइमन डायसन के मुताबिक, ‘पहले अगर आप या मैं कोई एलबम खरीदते थे तो इस बात से फर्क नहीं पड़ता था कि हम इसेकितनी बार इस्तेमाल करते थे। यदि एक एलबम में 10 गाने होते और आप एक गाने को बार-बार सुनते तो भी आपको उतना ही पैसा चुकाना होता। दूसरी ओर, स्ट्रीमिंग में भुगतान और समय के साथ आता है और लंबे समय के दौरान छोटी धनराशि आती है।’
आईट्यून ने हर गाने के डाउनलोड पर शुल्क लिया जबकि स्पॉटिफाई ने सबस्क्रिप्शन शुल्क की व्यवस्था की। इंटरनेट से यह पता लगा पाना संभव हुआ कि कोई गाना कहां और कितनी बार बजाया गया। इससे हर बार सुने जाने का मुद्रीकरण संभव हुआ। विश्व स्तर पर 2016 में राजस्व एक बार फिर बढऩा शुरू हुआ और फिलहाल यह 22 अरब डॉलर है।
नवंबर 2021 के कॉमस्कोर के आंकड़ों के मुताबिक भारत में 19.2 करोड़ से अधिक भारतीय 15 प्रमुख संगीत स्ट्रीमिंग ऐप का इस्तेमाल करते हैं। इनमें से सबसे बड़ी यूट्यूब, जियो सावन, गाना आदि विज्ञापन आधारित हैं। केवल 20 लाख भारतीयों के पास संगीत ऐप का सबस्क्रिप्शन है। दुनिया का सबसे बड़ा यूट्यूब चैनल टी-सिरीज एक भारतीय संगीत कंपनी का है। जोश और मोज जैसे शॉर्ट वीडियो ऐप ने लाखों गानों का लाइसेंस लिया और राजस्व की एक नई राह खोली।
इन तमाम बातों के बावजूद भारतीय संगीत कारोबार का आकार छोटा है। 1,800 करोड़ रुपये के राजस्व के साथ यह फिल्मों के आकार का 10 फीसदी या टेलीविजन प्रसारण के दो फीसदी के आकार का है। इसकी एक बड़ी वजह यह है कि इसका मुद्रीकरण बहुत कम हुआ है। हर बार जब कोई गाना बजता है तो उसे बनाने वाली कंपनी को चार से 10 पैसे मिलते हैं जबकि विश्व स्तर पर यह औसत 50 से 90 पैसे का है। भारत में एक संगीत लेबल के पास औसतन 60,000 से 70,000 गाने हैं। यानी कोई गाना भले ही लाखों बार बजाया जाए, चार पैसे की राशि बहुत कम होती है। आश्चर्य नहीं कि एयरटेल के विंक से लेकर टाइम्स इंटरनेट के गाना तक सभी सबस्क्रिप्शन की राह पर बढ़ रहे हैं। वे कृत्रिम मेधा में निवेश करने के लिए धनराशि जुटा रहे हैं। वे अभी नि:शुल्क गाना सुनने वालों के एक बड़े हिस्से को भुगतान करने वालों में बदलना चाहते हैं। क्या यह कुछ जाना-पहचाना लग रहा है।
प्रकाशन जगत में ऐसा प्रयास महामारी की पहली लहर के बाद हुआ था। वीडियो में यह पहले ही शुरु हो चुका था: वीडियो में दुनिया की सर्वाधिक सफल कंपनियों में से कुछ सबस्क्रिप्शन आधारित हैं। नेटफ्लिक्स और हूलू इसके उदाहरण हैं। भारत में अब 10 करोड़ से अधिक ओटीटी सबस्क्राइबर हैं।
संगीत में सबस्क्रिप्शन पर जोर दिए जाने के बाद विज्ञापन लोगों को इन सेवाओं के इस्तेमाल के लिए प्रेरित करने का जरिया रह जाएंगे। जो भी पूंजी जुटाई जाएगी उसका इस्तेमाल लोगों को भुगतान के लिए प्रेरित करने में होगा। भारत में विज्ञापन का बाजार बड़ा रहना तय है क्योंकि हमारे यहां आंकड़े बहुत बड़े हैं। देश में 46.8 करोड़ लोग किसी न किसी तरह ऑनलाइन मनोरंजन या समाचार का इस्तेमाल कर रहे हैं। अगर सेवा नि:शुल्क हो तो इतने लोगों को आसानी से जोड़ा जा सकता है। इससे पता चलता है कि आखिर क्यों भारत उन गिनेचुने देशों में शामिल है जहां दुनिया का सबसे बड़ा भुगतान आधारित संगीत ऐप स्पॉटिफाई नि:शुल्क और विज्ञापन आधारित सेवा भी देता है। विज्ञापन और शुल्क का संतुलन यह सुनिश्चित करेगा कि वीडियो, संगीत या समाचार बड़ी तादाद में लोगों को अपने साथ जोड़ें और प्रति व्यक्ति मुद्रीकरण में भी सुधार हो।
