अंबानी बंधुओं के मामले (रिलायंस इंडस्ट्रीज बनाम रिलायंस नैचुरल रिसोर्सेज ) में सरकार का ताजा हलफनामा एक नया हंगामा खड़ा कर सकता है।
दरअसल, इस हलफनामे की वजह से गैस व तेल के कुएं हासिल करने वाली कंपनियों और सरकार के बीच होने वाले प्रोडक्शन शेयरिंग कॉन्ट्रैक्ट (पीएससी) का पूरा का पूरा नजरिया ही बदल जाता है।
असल में सरकार ने यह हलफनामा एक ऐसे पीएससी के बारे में दिया है, जिस पर सालों पहले दस्तखत किए गए थे। इसलिए वह इसे पिछली तारीख से ही बदलना भी चाहती है। हालांकि, इस हफलनामे से रिलायंस इंडस्ट्रीज को काफी फायदा हो सकता है।
लेकिन इससे नुकसान सिर्फ आरएनआरएल या फिर एनटीपीसी को ही नहीं होने वाला। इसका असर तो उन सभी खिलाड़ियों पर पड़ेगा, जो मुल्क में तेल और गैस के ब्लाक खरीदने के लिए बोली लगाना चाहते हैं। सरकार का यह कदम आगे भविष्य में भी काफी अहम साबित हो सकता है।
दरअसल, पीएससी में यह तय किया जाता है कि कितना तेल या गैस, लाइसेंस हासिल करने वाली कंपनी सरकार को देगी। ऐसी कंपनियों से शुरुआत में मोटी कीमत मांगने के बजाए यह रास्ता इसलिए चुना गया क्योंकि कहीं भी एक निश्चित मात्रा में तेल या गैस मिलने की कोई गारंटी नहीं होती है।
पीएससी में यह बात साफ है कि कंपनी उस जगह से मिलने वाले तेल या गैस को खुले बाजार में बेच सकती है। वहीं उस तेल या गैस की कीमत तय करने के मुद्दे पर इसका कहना है कि यह प्रतिस्पध्र्दा को ध्यान में रखकर किया जाएगा।
दूसरी तरफ, इसके एक दूसरे नियम का सरकार के हिस्से के तेल और गैस के बारे में कहना है कि तय कीमतें सिर्फ सरकारी हिस्से पर ही लागू होंगी। दूसरे शब्दों में कहें तो सरकार को सिर्फ अपने हिस्से के तेल और गैस की कीमतों की ही चिंता थी। यह बात है, जिसे सरकार बार-बार दोहराती भी रही है।
लोकसभा में 30 अगस्त, 2007 को दिए एक जवाब में पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस राज्य मंत्री दिनशा पटेल ने भी कहा था कि, ‘सरकार गैस की कीमतें तय नहीं करती। सरकार का काम सिर्फ अपने हिस्से की गैस की कीमतों को तय करना भर है।’ इस बात को उन्होंने इस मामले पर पूछे गए सवालों के जवाब में बार-बार दोहराया है।
इस बात को पेट्रोलियम मंत्री मुरली देवड़ा ने इस साल 21 अक्टूबर को भी दोहराया था। उनका कहना था कि, ‘जिस तरीके से सरकार के हिस्से की कीमत तय की जाएगी, उसके बारे में गैस की बिक्री से पहले सरकार की इजाजत लेनी पडेग़ी।’ यह बात भी काफी जायज थी।
मिसाल के तौर पर अगर रिलायंस इंडस्ट्रीज, केजी बेसिन की सारी गैस को बाजार में बेचने के बजाए उसका इस्तेमाल पेट्रोकेमिकल उत्पाद बनाने में करती है, तो उससे पूरी गैस के लिए प्रतिस्पध्र्दा के आधार पर कीमत तय करने के लिए कहा ही नहीं जा सकता है।
वह अपनी जरूरत के हिसाब से गैस का इस्तेमाल कर सकती है और उसे सरकारी हिस्से के गैस के लिए प्रतिस्पध्र्दा के आधार पर कीमत तय करनी होगी। या फिर वह बस सरकार को उसके हिस्से की गैस सीधे-सीधे देकर इस सभी मुसीबतों से ही छुटकारा पा सकती है।
लेकिन इस नए हलफनामे ने तो पूरी की पूरी तस्वीर ही बदलकर रख डाली है। इसके मुताबिक सिर्फ सरकारी हिस्सा ही नहीं, बल्कि सारी गैस की कीमत भी सरकारी सहमति के आधार पर बने तरीके से तय की जाएगी। यह कीमत इस मामले में 4.2 डॉलर प्रति मिलियन ब्रिटिश थर्मल यूनिट (एमएमबीटीयू) है।
इस बारे में इस हलफनामे में मंत्रियों के एक विशेषाधिकार प्राप्त समूह के पिछले साल के फैसले का भी जिक्र किया गया है। इस बारे में हलफनामे का कहना है कि, ‘इस विशेषाधिकार प्राप्त समूह का यह फैसला सिर्फ केजी बेसिन से हुए गैस उत्पादन पर ही लागू होता है। इसमें सरकार के अपने हिस्से और कंपनी के शेयर में कोई अंतर नहीं किया गया है।’
यह वाकई काफी हैरानी वाली बात है। यह हलफनामा चीजों को एक नई शक्ल देने के साथ-साथ खुद सरकार की एक कॉन्ट्रैक्ट के बारे में गठित की गई एक कमेटी के फैसले को बदलने की कोशिश कर रहा है। अगली सरकार में अगर मंत्रियों की एक दूसरी विशेषाधिकार कमेटी इससे बिल्कुल फैसला देती है, तो क्या उसे पहली वाली से ज्यादा अहम माना जाएगा?
ऐसे में फिर किसी के साथ समझौता करने की भी क्या जरूरत है? बस विशेषाधिकार कमेटियों को बिठाकर सरकार और निजी कंपनियों के बीच रिश्ते की समय-समय पर परिभाषा लिखी जा सकती है। इससे भी ज्यादा अजीब बात वह है, जो खुद उस कमेटी ने कही है।
कमेटी की बैठक के दौरान कुछ सदस्यों ने पीएससी, अंबानी बंधुओं के बीच चल रही अदालती जंग और रिलायंस इंडस्ट्रीज के नए प्राइसिंग फॉर्मूले का मुद्दा भी उठाया था। उन्होंने यह भी पूछा था कि कमेटी के फैसलों का असल इन मामलों पर कैसे पड़ेगा।
आखिरकार आज जो 4.2 डॉलर प्रति एमएमबीटीयू की कीमत मांगी जा रही है, वह पांच साल पहले एनटीपीसी की तय की गई 2.34 डॉलर प्रति एमएमबीटीयू से काफी ज्यादा है। दूसरी तरफ, आरएनआरएल ने भी एनटीपीसी की तय की गई कीमत के आधार पर ही कॉन्ट्रेक्ट किया था, इसलिए यह कीमत उसके लिए काफी ज्यादा है।
कमेटी की बैठक में कानून मंत्री ने साफ किया था कि कमेटी का यह फैसला एनटीपीसी या फिर आरएनआरएल के खिलाफ किसी पूर्वाग्रह के आधार पर नहीं लिया गया है। इसके बाद उस कमेटी ने फैसला लिया था कि, ‘पीएससी के पल्ला झाड़ना मुल्क के लिए अच्छा नहीं होगा। किसी भी समझौते की पवित्रता को बरकरार रखना चाहिए। इस कमेटी के बैठक में जो भी फैसले लिए गए हैं, वे एनटीपीसी बनाम रिलायंस इंडस्ट्रीज या आरएनआरएल बनाम रिलायंस इंडस्ट्रीज मामलों में किसी पूर्वाग्रह के तौर पर नहीं लिए गए हैं।’ हालांकि, हलफनामे के मुताबिक कमेटी ने पूर्वाग्रह का भाव दिल में रखा था।