यूक्रेन में युद्ध तीसरे और काफी हद तक एक अलग चरण में प्रवेश कर चुका है। इस युद्ध के चरण में रूस एवं इसके स्वघोषित दोनेत्स्क और लुहांस्क गणराज्यों की सेनाएं यूक्रेन में घनी आबादी वाले दक्षिणी, पूर्वी और उत्तरी हिस्से की तरफ बढ़ी हैं। रूस के हवाई सैनिक यूक्रेन सीमा से काफी अंदर प्रवेश कर गए और कीव, मारियुपोल, खेरसन, मिकोलायिव, जापोरिशिया और खारकीव की तरफ तेजी से आगे बढ़ते गए। हालांकि अब पूरी तरह स्पष्ट हो गया है कि यूक्रेन पर चढ़ाई करने के लिए रूस ने जो समय चुना था वह उसके लिए सही साबित नहीं हुआ। रूस की सेना के टैंकों एवं साजो-सामान को भारी नुकसान पहुंचा और उसकी सेना को मिली खुफिया जानकारियां भी पुख्ता नहीं थीं। यूक्रेन के उन क्षेत्रों में भी रूस की सेना को भारी प्रतिरोध का सामना करना पड़ा जहां रूसी भाषा बोलने वाले लोग अधिक संख्या में रहते थे। रूसी सेना के आक्रमण के बाद यूक्रेनी सेना तो सहम गई मगर जैसे-जैसे लड़ाई आगे बढ़ी उन्होंने साहस बटोरते हुए एक प्रशिक्षित एवं पेशेवर सेना की तरह जमकर उम्मीद से कहीं अधिक बढ़कर मुकाबला किया।
इसका नतीजा यह हुआ कि युद्ध के पहले चरण में रूसी सेना ने दक्षिण-पूर्व में मारियुपोल पर कब्जा कर लिया मगर दो प्रमुख शहरों खेरसन और कीव को घेरने में बुरी तरह विफल रही। क्राइमिया पर रूस का नियंत्रण होने से दक्षिण यूक्रेन में रूसी सेना तेजी से आगे बढ़ पाई। रूसी सेना के आक्रमण से पहले यूक्रेनी सेना की तैयारी में कमी और अच्छी सड़कें इसकी मुख्य वजह रही। यूक्रेन अधिक खुला है और टैंक सेना के लिए अनुकूल था। बख्तरबंद गाडि़यां आम तौर पर संकरी सड़कों पर धीमी गति से आगे बढ़ती हैं। इस वजह से दक्षिणी हिस्से में रूसी सेना तेजी से आगे बढ़ती गई। मगर कीव के दक्षिण-पश्चिम में सड़कें बहुत खुली नहीं थीं इसलिए रूस की सेना को काफी मशक्कत करनी पड़ी और बाद में तो उन्हें हटना भी पड़ा।
युद्ध के दूसरे चरण में रूस ने पहले चरण में हासिल बढ़त को बनाए रखने का प्रयास किया। बाद में पूर्वी और दक्षिणी हिस्से पर अपना ध्यान केंद्रित करने की एक तय रणनीति के तहत रूसी सेना यूक्रेन के उत्तरी हिस्से से पीछे हट गई। इन क्षेत्रों में रूसी भाषा बोलने वाले लोगों की खासी तादाद है। ये लोग रूसी साम्राज्य और सोवियत संघ के शासन के दौरान इन क्षेत्रों में रहे हैं। राष्ट्रपति व्लादीमिर पुतिन के निशाने पर ये क्षेत्र खास तौर से आते है। दक्षिणी एवं पूर्वी यूक्रेन पर नियंत्रण स्थापित होने के स्पष्ट लाभ हैं। पहली बात तो पूर्वी यूक्रेन देश का सबसे अधिक औद्योगिक गतिविधियों वाला हिस्सा है और दूसरी बात यह है कि काला सागर के मारियुपोल जैसे बंदरगाहों पर नियंत्रण होने के बाद रूस धीरे-धीरे यूक्रेन को आर्थिक रूप से कमजोर कर देगा। तीसरी बात यह है कि दक्षिण पूर्व में दोनेस्क और क्राइमिया प्रायद्वीप के बीच भूमि पुल तैयार होने से रूस नियंत्रित दोनों क्षेत्रों की सुरक्षा काफी बढ़ जाएगी। कीव के इर्द-गिर्द से रूसी सैनिकों की वापसी का यह कहकर बचाव किया जा सकता है कि मास्को पश्चिमी यूक्रेन में दिलचस्पी नहीं रखता है। मगर खारकीव से यूक्रेन की सेना से कड़ा प्रतिरोध मिलने की बात को पचाना रूस के लिए आसान नहीं है। मई के तीसरे सप्ताह तक रूसी सैनिक उत्तरी यूक्रेन से पीछे हट गए थे और लड़ाई यूक्रेन के पूर्वोत्तर हिस्से में केंद्रित हो गई। रूसी सैनिक सेवेरोदोनेत्स्क पर कब्जा जमाने की ताक में लगे हुए थे। कई सप्ताहों तक सैन्य गतिविधियां चलाने के बाद रूसी सेना सेवेरोदोनेत्स्क पर पूरी तरह नियंत्रण करने के करीब है। फिलहाल यह कहा नहीं जा सकता कि इस शहर पर कब्जे का मतलब बड़ी संख्या में यूक्रेन के सैनिकों के घेराव एवं उनके समर्थन होगा या नहीं। युद्ध के तीसरे चरण के अंत में रूसी सेना का संभवतः पूर्वी यूक्रेन में एक बड़े हिस्से पर नियंत्रण होगा और दोनेस्क और लुहांस्क गणराज्यों का आकार भी काफी बड़ा हो जाएगा। अब प्रश्न है कि आगे क्या होगा! क्या मास्को के लिए इतनी सफलता के बाद जीत की घोषणा करना काफी होगा! इस प्रश्न का जवाब केवल एक व्यक्ति को पता है और वह हैं रूस के राष्ट्रपति पुतिन मगर वह कुछ नहीं कह रहे हैं।
हालांकि कुछ कयास तो लगाए जा रहे हैं जिन पर ध्यान नहीं देना मुमकिन नहीं होगा। पहली बात तो सेवेरोदोनेत्स्क को चारों तरफ से घेरने का एक मतलब यह होगा कि खारकीव के उत्तर के हिस्सों का मोह छोड़ देना होगा और उत्तरी शहर इजियुम से घेराबंदी का चल रहा बड़ा अभियान समाप्त हो जाएगा। इजियुम अब भी रूस के कब्जे में है। रूस के लिए इससे भी अधिक चिंता की बात यह है कि यूक्रेन के दक्षिणी हिस्से पर किया गया कब्जा भी पुख्ता रह पाएगा इसकी कोई गारंटी नहीं है। यूक्रेन की सेना ने अपनी खोई जमीन छीनने के लिए बड़ा अभियान चलाया है और वह क्राइमिया के ठीक उत्तर खेरसन में रूसी सेना के खिलाफ कदम उठा रही है। हालांकि खेरसन युद्ध पूर्व रूस के साथ नजदीकी संबंध रखने वाले राजनीतिज्ञों का शहर है मगर अब वहां दो गुट स्पष्ट रूप में दिखने लगे हैं और राजनीतिक मतभेद भी उभरने लगे हैं। ये इस बात का संकेत हैं कि दोनेस्क और लुहांनस्क गणराज्यों में किसी एक में कब्जा किए हुए इलाके को शामिल करना इतना आसान नहीं रहने वाला है।
पूर्व में युद्ध भले ही थम सकता है और दोनों देशों की सेनाओं एक दूसरे के आमने-सामने मगर स्थिर रह सकती हैं मगर दक्षिण में लड़ाई थमने के आसार नहीं दिखाई दे रहे हैं। रूस-यूक्रेन लड़ाई के चौथे चरण में मास्को को खेरसन में कब्जा किए हुए इलाकों को बचाना होगा मगर इतने भर से काम बनने वाला नहीं है। रूस ओडेसा के बड़े हिस्से पर नियंत्रण करना चाहता है क्योंकि तब भी यह यूक्रेन की अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान पहुंचा सकता है। सागर में अपना एक युद्धपोत गंवाने के बाद भी रूस का काला सागर पर नियंत्रण है। यह सोचना शायद सही नहीं होगा कि पूर्वी यूक्रेन में रूस का अधिकार होने के बाद अगले कुछ हफ्तों में युद्ध समाप्त हो जाएगा।
