मंगलवार को जारी हुए जून के औद्योगिक उत्पादन सूचकांक के आंकड़े मई के मुकाबले बेहतर तो हैं, लेकिन इससे यह आशंका और भी मजबूत हो गई है कि हमारा मुल्क इस वक्त मंदी की चपेट में है।
यह बिल्कुल भी अप्रत्याशित नहीं है। अब तो चिंता इस मंदी के प्रभाव और इसकी अवधि को लेकर है। हालांकि, अब भी कई मामलों में इसमें काफी इजाफे की गुंजाइश है, लेकिन इस सूचकांक का मई के मुकाबले जून में ज्यादा अच्छे रहने का मतलब यही है कि बुरे दौर का सबसे बुरा वक्त अब बीत चुका है।
अब यह आंकड़ा आने वाले वक्त में इस स्तर पर या फिर इसके आस-पास ही रहेगा, लेकिन इसके और नीचे जाने की आशंका कम ही है। दूसरी तरफ, पिछले वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही से ही मंदी के लक्षण दिखाई देने लगे थे। इसलिए इस साल जुलाई से लो बेस इफेक्ट की वजह से इस आंकड़े में इजाफा शुरू हो जाएगा। इसी वजह इस साल के बाकी के महीनों में औद्योगिक उत्पादन सूचकांक में और गिरावट नहीं होगी।
अगर अलग सेक्टरों की बात करें तो सामान्य सूचकांक में जून, 2007 की तुलना में 5.4 फीसदी का इजाफा हुआ है। इस वजह से इस वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही में अपनी अर्थव्यवस्था 5.2 फीसदी की रफ्तार से आगे बढ़ी है। पिछले वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही की 10.3 फीसदी की विकास दर की तुलना में यह तेज गिरावट है।
लेकिन यह अगर बुरे दौर का सबसे बुरा दौर है तो हमारी अर्थव्यवस्था का प्रदर्शन काफी सही है। जरा 1998 से लेकर 2003 के उस वक्त को तो याद करिये, जब इस सूचकांक में इजाफा केवल तीन फीसदी के स्तर पर पहुंचा था। इस सूचकांक के सबसे बड़े हिस्से विनिर्माण यानी मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर में सामान्य सेक्टर का ही खुशनुमा मूड झलकता है।
हालांकि, बिजली क्षेत्र में विकास की धीमी रफ्तार चिंता की एक बड़ी वजह बन सकती है। 2007-08 की पहली तिमाही में इस सेक्टर में आठ फीसदी की तेज रफ्तार से विकास हो रहा था, लेकिन इस वित्त वर्ष की पहली तिमाही में इसका विकास का रथ पर ब्रेक लग चुका है। इस साल की पहली तिमाही में इसमें केवल दो फीसदी का इजाफा हुआ है।
डिमांड में कमी इसकी एक बड़ी वजह हो सकती है, लेकिन बारह मास बिजली की कमी झेलने वाले एक मुल्क के लिए यह दिक्कत का सबब बन सकता है। वैसे, अगर अलग-अलग उद्योगों के प्रदर्शनों पर नजर डालें तो इसमें भी काफी उतार-चढ़ाव है। अब ट्रांसपोर्ट उपकरणों को ही ले लीजिए। इस पर ऊंचे ब्याज दरों और तेल की ऊंची कीमतों की वजह से इस पर संकट के घने बादल छाए हुए हैं।
लेकिन फिर भी इस तिमाही में इसने 11.9 की तेज रफ्तार के साथ तरक्की की है। वैसे मशीनरी और उपकरणों के सेक्टर में पिछले साल जैसी तेजी तो नहीं है, फिर यह इस तिमाही में 6.8 फीसदी की रफ्तार से बढ़ा है। दूसरी तरफ, उपभोक्ता टिकाऊ वस्तुओं के सेगमेंट में केवल 3.8 फीसदी की रफ्तार से प्रगति हुई है। वहीं, रुपये की कमजोर सेहत के बावजूद भी टेक्सटाइल और गार्मेंट सेगमेंट में तरक्की की पहिया धीमे ही घूमा।
वैसे, आईआईपी के आंकड़ों को देखकर यह तो बिल्कुल नहीं लगता कि अपनी अर्थव्यवस्था सीधे गर्त में जा रही है। माना कि रिजर्व बैंक के कड़े कदमों की वजह विकास की रफ्तार धीमी हो चुकी है, लेकिन अपनी अर्थव्यवस्था मजबूत होने के वजह से तरक्की तो कर रही है।