यह दीवाली पिछले कई मौकों की तुलना में अलग है। केवल इसलिए नहीं कि इस बार सूखे मेवों और मिठाई के डिब्बों के साथ कार्यालय में हास-परिहास नहीं हो पा रहा, बल्कि इसकी अन्य वजह भी हैं। उदाहरण के लिए इस बार यह आशा की जा रही है कि हम न केवल स्थानीय चीजों के बारे में मुखर होकर बात करें, बल्कि स्थानीय वस्तुएं खरीदें भी। हमें अपनी स्थानीय खरीदारी को दीयों तक सीमित नहीं रखना चाहिए बल्कि अपनी खरीदारी में ज्यादा से ज्यादा ऐसी वस्तुएं शामिल करनी चाहिए जो स्थानीय स्तर पर बनी हों।
स्थानीय वस्तुएं खरीदने की अनुशंसा किसी और की नहीं बल्कि स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की है। जब हम ऐसा करें तो हमें यह ध्यान में रखना होगा कि इस त्योहारी मौसम में हम जो भी खरीदारी करें उसमें डिजिटल तौर तरीके अपनाएं और नकदी का प्रयोग कम से कम करें। ऐसा इसलिए क्योंकि सरकार के शीर्ष पर बैठे लोग बार-बार इसकी वकालत करते रहे हैं।
स्थानीय वस्तुएं खरीदने और डिजिटल भुगतान करने के इस दोहरे तरीके के पीछे राष्ट्रीय प्रगति का साझा दर्शन हो सकता है लेकिन इन दोनों के बीच जो विरोधाभास है, उसकी अनदेखी भी नहीं की जा सकती। स्थानीय वस्तुएं खरीदने से तात्पर्य है, छोटे और मझोले क्षेत्र के देसी उपक्रमों को बढ़ावा देना। डिजिटल भुगतान पर ध्यान केंद्रित करने का अर्थ है बड़े वैश्विक कारोबारियों के काम को बढ़ावा देना। इनमें गूगल, फेसबुक और वॉलमार्ट जैसी कंपनियां शामिल हैं। हाल ही में फेसबुक की व्हाट्सऐप पे सेवा को भी भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम (एनपीसीआई) की ओर से चरणबद्ध तरीके से डिजिटल भुगतान करने की इजाजत दे दी गई। करीब दो करोड़ ग्राहकों से इसकी शुरुआत होगी। देश में व्हाट्सऐप के करीब 40 करोड़ उपयोगकर्ता हैं। जाहिर है इसकी डिजिटल भुगतान सेवा की सफलता दुनिया के अन्य हिस्सों तक भी विस्तारित होगी।
फेसबुक के मुख्य कार्याधिकारी मार्क जुकरबर्ग भी इस सेवा की संभावनाओं को स्वीकार कर चुके हैं। उन्होंने पिछले दिनों एक वीडियो पोस्ट में कहा, ‘यूपीआई के रूप में भारत ने वाकई कुछ खास विकसित किया है और इस तरह छोटे और मझोले उपक्रमों के लिए अवसरों का पूरा संसार खुला है जो भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं। भारत दुनिया का पहला देश है जिसने ऐसा कुछ किया है। मुझे प्रसन्नता है कि हम इस प्रयास में सहायक बन रहे हैं और भारत को डिजिटल बनाने की दिशा में मिलकर काम करने जा रहे हैं।’ हां, जुकरबर्ग ने अपनी पोस्ट में यह नहीं बताया कि कैसे भारत में शुरू व्हाट्सऐप पे नामक यह पहल फेसबुक के कारोबारी साम्राज्य को बड़ा करने में मदद करेगी।
भारत के डिजिटल भुगतान पर ध्यान केंद्रित करने से जो अन्य बड़े विदेशी उपक्रम लाभान्वित हो रहे हैं वे हैं गूगल पे और फ्लिपकार्ट की भुगतान सेवा फोनपे। फ्लिपकार्ट में अब बहुलांश हिस्सेदारी अमेरिकी कंपनी वॉलमार्ट की है। फोनपे के पास 17 करोड़ उपयोगकर्ता हैं जो बहुत अच्छी तादाद है। गूगल पे जो कथित उल्लंघन के लिए भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग की जांच का सामना कर रहा है उसके 7 करोड़ उपयोगकर्ता हैं। जेफ बेजोस की कंपनी एमेजॉन की एमेजॉन पे भी हाल ही में इस सूची में शामिल हुआ है। अली बाबा और सॉफ्टबैंक द्वारा प्रवर्तित पेटीएम के पास 25 करोड़ ग्राहक हैं और रिलायंस इंडस्ट्रीज के जियो पेमेंट बैंक भी प्रतिस्पर्धा में आ चुका है। दोनों के पास बैंकिंग लाइसेंस हैं।
ताजा आंकड़ों के मुताबिक अक्टूबर में 2.07 अरब से अधिक यूपीआई लेनदेन हुए। इसमें फोनपे की हिस्सेदारी 40 फीसदी रही। गूगल पे दूसरे स्थान पर रहा। भारतीय रिजर्व बैंक के हालिया अनुमानों से यह स्पष्ट होता है कि आखिर क्यों विदेशी कंपनियां भारत में डिजिटल भुगतान में सक्रिय हैं। उनमें से कई यूपीआई प्लेटफॉर्म पर हैं। आरबीआई के मुताबिक डिजिटल माध्यमों से होने वाला भुगतान अगले पांच वर्ष में रोजाना 1.5 अरब लेनदेन तक बढ़ जाएगा जिसमें रोज 15 लाख करोड़ रुपये का लेनदेन होगा। फिलहाल रोज करीब 10 करोड़ लेनदेन होते हैं जिसमें 5 लाख करोड़ रुपये की राशि शामिल होती है।
यूपीआई एक देसी रियल टाइम भुगतान व्यवस्था है जिसे एनपीसीआई ने विकसित है। इसका गठन 2016 में नोटबंदी के कुछ महीने पहले किया गया था। यह भारत का एक सफल प्रयोग साबित हुआ। परंतु देश में डिजिटल भुगतान को सरल बनाने वाले इस भारतीय मंच पर भी सारे अहम खिलाड़ी विदेशी हैं। यह विदेशी ऑनलाइन बाजार मंच मसलन वॉलमार्ट और एमेजॉन से अलग नहीं है। इन मंचों पर भी हजारों भारतीय कारोबारी, कारोबार कर रहे हैं और दीवाली की बिक्री या वैसे भी अन्य सामान को दूरदराज इलाकों तक पहुंचा रहे हैं। इन प्लेटफॉर्म के मालिक और लेनदेन करने वाले सभी एक ही कारोबार में साथ हैं, भले ही उनका मूल और उनकी राष्ट्रीयता कुछ भी हो। हाल ही में जब फ्लिपकार्ट द्वारा आयोजित बिग बिलियन सेल में 70 भारतीय विक्रेता करोड़पति बने तो उत्सव का माहौल था। ऐसे में जब फोनपे, गूगल पे, व्हाट्सऐप पे और अन्य ऐसे मंच भारतीय यूपीआई पर सफल हो रहे हैं तो उत्सव तो होना ही चाहिए।
दीवाली पर स्थानीय वस्तुएं खरीदते समय और बिल भुगतान के लिए डिजिटल तरीके अपनाते समय संदर्भ वही रहना चाहिए। आखिरकार स्थानीय, वैश्विक और स्थानीय सब आपस में गड्डमड्ड हैं, भले ही दीवाली पर चीनी झालरों और चीनी उपकरणों से बचने के लिए हम यह जोर दे रहे हैं कि ई-कॉमर्स साइट पर बिकने वाले हर उत्पाद पर यह लिखा होना चाहिए कि वह कहां बना है।
