क्या कभी किसी राज्य के मुख्यमंत्री ने अपने ही पिता को किसी समुदाय के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी करने के लिए न्यायिक हिरासत में भेजा है? यह ऐसा पहला मामला है। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के पिता नंद कुमार बघेल को ब्राह्मण समुदाय के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी करने पर रायपुर की एक अदालत ने 15 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया। शुरू में उन्होंने जमानत लेने से इनकार कर दिया था।
अपनी शिकायत में ब्राह्मण समुदाय ने आरोप लगाया कि नंद कुमार बघेल ने ब्राह्मणों को ‘बाहरी’ (विदेशी) बताया जिन्हें या तो खुद में सुधार लाना चाहिए या गंगा से वोल्गा जाने के लिए तैयार हो जाना चाहिए। थाना प्रभारी ने कहा, ‘ब्राह्मण समाज ने नंद कुमार बघेल द्वारा दिए गए बयान पर आपत्ति जताई और समाज में तनाव पैदा करने और नफरत फैलाने का आरोप लगाते हुए पुलिस से शिकायत की है।’
वहीं भूपेश बघेल ने अपने पिता के बारे में कहा, ‘मैं बेटे के तौर पर अपने पिता का सम्मान करता हूं लेकिन मुख्यमंत्री होने के नाते उनकी किसी भी गलती को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता जिससे सामाजिक व्यवस्था को नुकसान हो सकता है। हमारी सरकार में कोई भी कानून से ऊपर नहीं है, भले ही वह मुख्यमंत्री के पिता ही क्यों न हों।’ बघेल के पिता की उम्र 80 साल से अधिक है और उन्होंने कई साल पहले बौद्ध धर्म अपना लिया था।
संभव है कि कुछ लोग इसे राजनीतिक ड्रामा बताकर खारिज करेंगे। यह भी सच है कि यह वाकया ऐसे समय पर हुआ है जब मुख्यमंत्री अपनी ही पार्टी की तरफ से राजनीतिक चुनौतियों का सामना कर रहे हैं।
लेकिन भूपेश बघेल के सामने विपक्ष की कोई चुनौती नहीं है। साल 2018 के विधानसभा चुनाव के बाद भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की हालत खस्ता हो गई जब वह विधानसभा की 90 में से केवल 15 सीट ही जीत सकी थी। पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह को राष्ट्रीय उपाध्यक्ष के रूप में पार्टी में काम करने के लिए तैयार किया गया है।
आंध्र प्रदेश के नेता और कांग्रेस से भाजपा में आए डी पुरंदेश्वरी और बिहार के बांकीपुर से चार बार विधायक रहे नितिन नवीन को राज्य का प्रभार सौंपा गया है जो केंद्र को बताएंगे कि राज्य में पार्टी के सामने किस तरह की दिक्कत आ रही है। यह कार्य अभी प्रगति पर है।
लेकिन कांग्रेस में जहां समस्या न भी हो वहां भी पैदा हो जाती हैं। वर्ष 2018 में छत्तीसगढ़ चुनाव होने के बाद राज्य में कांग्रेस के नए चेहरों को पेश करने की राहुल गांधी की योजना के तौर पर ताम्रध्वज साहू को मुख्यमंत्री पद के लिए चुना गया था। बघेल और राज्य में कांग्रेस के एक अन्य बड़े नेता टी एस सिंह देव दिल्ली से छत्तीसगढ़ लौटे क्योंकि उन्हें रायपुर पहुंचने पर सरकार में प्रमुख दायित्व देने का आश्वासन दिया गया था। लेकिन राज्य में पहुंचने पर पता चला कि साहू के समर्थक जश्न मनाते हुए आतिशबाजी कर रहे हैं।
वे हवाईअड्डे पर वापस लौटे और दिल्ली चले आए जहां पार्टी में बने सभी विरोधाभासों को खत्म करते हुए अहमद पटेल ने मुख्यमंत्री पद के संकट का हल निकालते हुए दोनों को मुख्यमंत्री पद के कार्यकाल का आधा-आधा समय देने का वादा किया था। इसी रणनीति के तहत साहू को गृह मंत्री बनाया गया था। इसके बाद कोविड-19 महामारी का दौर आया और इस दौरान अहमद पटेल का निधन हो गया। अब सिंह देव के पास कहने के लिए बस यही आश्वासन बचा था कि उनसे आधा कार्यकाल पूरा होने के बाद मुख्यमंत्री बनाने का वादा किया गया था। जब बघेल ने बड़ी मासूमियत से इनकार के संकेत दिए तब सिंह देव ने अपना विरोध बढ़ाना शुरू कर दिया। अब छत्तीसगढ़ में भी नेतृत्व को लेकर टकराहट बढऩे लगी जैसा कि कांग्रेस शासित पंजाब और राजस्थान में हो रहा है।
बीच-बीच में घोटालों की खबरें सामने आईं कि संकट में फंसे दुर्ग के एक मेडिकल कॉलेज को बचाने के लिए सरकार सार्वजनिक संसाधन लगाने जा रही थी। इसे महज संयोग नहीं माना जा सकता है कि इस कॉलेज का मालिकाना हक बघेल के रिश्तेदारों के पास था। स्वास्थ्य और पंचायती राज मंत्री रहे सिंह देव मुख्यमंत्री को याद दिलाते रहते हैं कि कांग्रेस के घोषणा पत्र में किए गए वादों को अधूरा नहीं छोड़ा जा सकता।
केंद्र सरकार भी दुर्ग में हुए भूखंड आवंटन को लेकर बघेल के पीछे पड़ी है। मुख्यमंत्री के रूप में बघेल यथार्थवादी और हठधर्मिता से मुक्त हैं। उनकी सरकार की आर्थिक नीति के केंद्र में ग्रामीण अर्थव्यवस्था है। किसानों से गोबर खरीदने की योजना के चलते सरकार पर नरम हिंदुत्व को तुष्ट करने के आरोप भी लगे। पिछले साल जुलाई में गोधन न्याय योजना शुरू की गई थी।
उस वक्त से ही अब तक सरकार ने 1,40,000 गाय मालिकों से गोबर एकत्र करने के एवज में 64 करोड़ रुपये दिए हैं। इसके बाद इसे 3,500 से अधिक सरकार द्वारा संचालित गोशालाओं में ले जाया जाता है जहां इसे उर्वरक और अन्य उत्पादों में बदल दिया जाता है।
अगर रमन सिंह की सरकार की जीत में सार्वजनिक वितरण सेवा (पीडीएस) में किए गए सुधार का हाथ रहा तो बघेल द्वारा किसानों से अनाज खरीदने का वादा सफल रहा जिसके तहत छत्तीसगढ़ ने वर्ष 2020-21 के खरीफ विपणन वर्ष के दौरान न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के आधार पर धान खरीदने का रिकॉर्ड बनाया है। छत्तीसगढ़ का कोई भी किसान विरोध नहीं कर रहा है या एमएसपी की गारंटी की मांग नहीं की जा रही है क्योंकि उन्हें अंदाजा है कि राज्य सरकार उनकी सभी फसल खरीद लेगी।
लेकिन समस्याएं पैदा करने की अपनी प्रतिभा के साथ कांग्रेस सरकार कई विवादों में उलझी हुई है जिसकी वजह से पार्टी अलाकमान को मध्यस्थ के रूप में सक्रिय रहना पड़ता है। अपने पिता को जेल में डालना भी सत्ता के इस जटिल खेल के प्रति बघेल की प्रतिक्रिया ही मानी जा सकती है।