देशव्यापी लॉकडाउन के दौरान कारोबार बंद पड़े रहे और प्रवासी श्रमिक शहर छोडऩे को मजबूर हुए। बाद में अर्थव्यवस्था को खोला गया और रेलवे, विमानन कंपनियों, दुकानों, मॉल और रेस्तरां आदि ने शारीरिक दूरी के कड़े मानकों का पालन करते हुए काम शुरू किया। कंपनियों से कहा गया कि वे कर्मचारियों से घर से काम करने को कहें। आतिथ्य एवं पर्यटन उद्योग और यात्राओं पर प्रतिबंध लागू है। कारखाने खुल चुके हैं लेकिन इस तरह संचालित हो रहे हैं कि आपको लग सकता है कि भारत लाइसेंस राज में वापस लौट चुका है। लब्बोलुआब यह कि अर्थव्यवस्था जीवन रक्षक प्रणाली पर है।
परंतु ऐसा लग रहा है कि 21वीं सदी में कोविड-19 के दौर में भारत में धर्म को खुली छूट मिली हुई है। सर्वोच्च न्यायालय ने चार दिन के भीतर अपने निर्णय को जिस तरह बदला उससे तो कम से कम यही निष्कर्ष निकलता है। पहले उसने सात दिवसीय जगन्नाथ यात्रा उत्सव पर रोक लगाई फिर उसे सीमित स्वरूप में मंजूरी दे दी। तीन सदस्यीय पीठ मेंं शामिल मुख्य न्यायाधीश एस ए बोबडे ने 18 जून को कहा था कि अगर यात्रा की अनुमति दी गई तो भगवान जगन्नाथ हमें माफ नहीं करेंगे।
तीन पृष्ठों का पहला निर्णय ओडिशा सरकार की इस घोषणा के बाद आया था जिसमेंं कहा गया था कि इस उत्सव के लिए एकत्रित होने वाले 100,000-120,000 लोगो को रोक पाना मुश्किल होगा। तब न्यायमूर्ति बोबड़े, दिनेश माहेश्वरी और ए एस बोपन्ना ने संविधान के अनुच्छेद 25 को उद्धृत किया जिसके तहत भारतीयोंं की धार्मिक आजादी को सीमित किया जा सकता है, उनमें एक वजह स्वास्थ्य भी है।
परंतु 22 जून को आठ पृष्ठों के आदेश में कहा गया कि केवल पुरी में यात्रा आयोजित की जाएगी जहां जगन्नाथ मंदिर स्थित है। कहा गया कि इसमें आम जनता की भागीदारी नहीं होगी। राज्य सरकार और मंदिर प्रबंधन ने भी आश्वासन दिया कि इसे सीमित तरीके से आयोजित किया जा सकता है। इसके बाद 12 बिंदुओं में यह बताया गया कि कैसे आयोजक सुरक्षा सुनिश्चित कर सकते हैं। इसमें रथ खींचने वालों की कोविड-19 जांच कराना और रथ खींचने के दौरान दूरी का ध्यान रखना, भीड़ दूर रखने के लिए रथयात्रा शुरू होने की पिछली रात 8 बजे से कफ्र्यू लगाना शामिल थे।
यात्रा को अनुमति न देने की पहली याचिका एक स्वयंसेवी संगठन ओडिशा विकास परिषद ने दायर की थी। भुवनेश्वर में इस संगठन के अध्यक्ष पर अंडे फेंके गए और घर में भी थोड़ी तोडफ़ोड़ की गई।
ऊपरी अदालत के फैसले में संशोधन के लिए 18 अपीलेंं दायर की गईं जिनमें राजनीतिक और धार्मिक सत्ता प्रतिष्ठान की शक्ति शामिल थी। राज्य सरकार, जगन्नाथ संस्कृति जन जागरण मंच, यहां तक कि एक मुस्लिम श्रद्धालु और भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता संबित पात्रा भी इनमें से एक थे। पात्रा को 2019 के लोकसभा चुनाव में पुरी संसदीय सीट से बीजू जनता दल के प्रत्याशी से पराजय झेलनी पड़ी थी।
गृह मंत्री अमित शाह ने तत्काल इस निर्णय का श्रेय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रयासों को दिया। क्या हमें उन्हें माफ कर देना चाहिए क्योंकि वह नहीं जानते कि वह क्या कह रहे हैं? सर्वोच्च न्यायालय का संशोधित आदेश कई सवालों को जन्म देता है। पहला सवाल तो इस निर्णय के कुछ घंटे बाद ही उठ गया जब गुजरात में याची अहमदाबाद में एक रथ यात्रा पर लगी रोक को हटवाने के लिए अदालत पहुंच गए। गौरतलब है कि अहमदाबाद में कोविड संक्रमण तेज है।
अब देश भर से ऐसी मांग उठनी शुरू हो जाएगी क्योंकि शारीरिक दूरी के कारण मंदिरों की आय लंबे समय से ठप पड़ी हुई है। अब किसी न किसी त्योहार के बहाने बंदी हटाने की मांग होगी। धार्मिक क्रियाकलाप में शारीरिक दूरी या भीड़ न होने देने की मांग बेतुकी है। यकीनन पुरी से आई तस्वीरें भी बता रही हैं कि मानकों का उल्लंघन हुआ। देश में कोविड जांच की क्षमता इतनी नहीं है कि हजारों श्रद्धालुओं की जांच कम समय में की जा सके। हालांकि ओडिशा में वायरस का असर कम है और वहां केवल 5,470 मामले और 17 मौतें हुई हैं। प्रदेश में केवल 17 कोविड जांच केंद्र हैं।
अगले छह महीनों में कई त्योहार आने वाले हैं। अगर कोविड का कोई टीका नहीं आया तो अनुमान लगाया जा सकता है कि यह निर्णय कैसी नजीर पेश करेगा। दुर्गा पूजा का त्योहार 10 दिनोंं तक देश के हर उस हिस्से में उत्साह से मनाया जाता है जहां बंगाली समुदाय के लोग रहते हैं। इसके अलावा दशहरा और दीवाली के त्योहार भी आएंगे। फरवरी 2021 में हरिद्वार में महाकुंभ भी लगना है।
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री ने समझदारी दिखाते हुए कहा है कि इतनी जल्दी कुंभ के बारे में कोई निर्णय नहीं लिया जा सकता। परंतु जगन्नाथ यात्रा पर लिए गए फैसले का असर कुंभ जैसे बड़े आयोजन पर भी पड़ेगा जिसमें दुनिया भर से लोग आते हैं। वहां विभिन्न स्नानों में शारीरिक दूरी का पालन कैसे होगा?
अन्य धर्मों का असहज करने वाला प्रश्न भी बाकी है। यदि सैकड़ों लोग रथ खींचने के लिए एकत्रित हो सकते हैं तो आगामी 31 जुलाई-1 अगस्त को बकरीद के अवसर पर मुस्लिम शारीरिक दूरी के साथ नमाज क्यों नहीं पढ़ सकते? 25 दिसंबर को चर्च मेंं प्रार्थना के आयोजन को लेकर भी ऐसी ही मांग उठ सकती है।
आखिर में यदि भारत के लोग बोलने की आजादी और शांतिपूर्ण ढंग से एकत्रित होने की आजादी की मांग करें तो अनुच्छेद 25 की व्याख्या का क्या होगा। इस अधिकार पर भी प्रतिबंध लागू होते हैं, हालांकि इसमें जन स्वास्थ्य का अलग से उल्लेख नहीं है। ऐसे में अगर लोग शारीरिक दूरी के मानक का पालन करते हुए सीएए या एनसीआर के खिलाफ प्रदर्शन करने के लिए दोबारा एकत्रित होते हैं तो इस अनुच्छेद का कौन सा भाग लागू होगा?
