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  लेख  व्यापार गोष्ठी: ब्याज दर घटने से मंदी के बादल छंटेंगे?
लेख

व्यापार गोष्ठी: ब्याज दर घटने से मंदी के बादल छंटेंगे?

बीएस संवाददाता बीएस संवाददाता —November 9, 2008 10:39 PM IST
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सुधार के लिए कटौती जरूरी
एस, एस. भदौरिया
सेवानिवृत बैंक अधिकारी, बीकानेर


वित्त मंत्री चिदंबरम ने बैंकों को ब्याज दर घटाने का संकेत देकर मंदी की कमर तोड़ने का सफल प्रयास किया है। नकदी तरलता बढ़ाने का लाभ उद्योग-व्यवसाय जगत तथा आम उपभोक्ता को तभी मिल सकेगा, जब ब्याज दर उसकी पहुंच में हो।

सस्ती ब्याज दर से सस्ता माल उत्पादित होगा। उद्योग चलते रहेंगे तो रोजगार कायम रहने से क्रय शक्ति बनी रहेगी। सस्ता माल जब तक बनता व बिकता रहेगा मंदी प्रभाव नहीं डाल सकती है। हालांकि भारतीय अर्थव्यवस्था मंदी से मूर्छित होने से पहले ही भारत की सरकार ने उदार ब्याज दरों का इंजेक्शन बैंकों को लगा दिया है।

लेकिन सरकार का यही कदम सिर्फ  काफी नहीं होगा बल्कि और भी काम करने होंगे। लिहाजा सरकार को ग्रामीण इलाकों में नौकरियों का सृजन करना होगा और साथ ही उद्योगों के लिए निवेश करना होगा, तभी आशा की नई उम्मीद की जा सकती है।

अनुकूल वातावरण की उम्मीद जगेगी
डॉ. हेमलता कर्नावट
ए-426, एमआईजी-1, उज्जैन

विगत कुछ वर्षों में जहां एक ओर आनुपातिक रूप से जमा की ब्याज दरों में गिरावट हुई है, उसी अनुपात में ऋणों की ब्याज दर में कमी नहीं आई है। वर्तमान में विभिन्न ऋणों पर प्रचालित ब्याज दरें आम उपभोक्ता या ऋणी की भुगतान क्षमता से कहीं अधिक है।

एक समय ऐसा भी था, जब बैंकों ने प्रतिस्पर्धा अपनाते हुए उदारपूर्वक ऋण बांटे लेकिन पर्याप्त पुनर्भुगतान नहीं होने से तरलता में कमी होती गई। वैश्विक स्तर पर आए आर्थिक संकट ने मंदी को बढ़ाने में आग में घी डालने जैसा काम किया है।

ऐसी स्थिति में यह आशाजनक अवश्य लगता है कि ब्याज दर घटाने से मंदी के बादल छंटने में अनुकूल वातावरण अवश्य बनेगा। इसके अलावा, लोगों का जीवन भी सामान्य होता नजर आएगा।

डूबते को मिला तिनके का सहारा
अनुरुध्द
अंधेरी, मुंबई

वैश्विक मंदी से भारत भी अछूता नहीं रहा है, महंगाई में बढ़ोत्तरी की वजह से जेब पर असर पड़ा है। आमदनी कम हुई है। सैलरी में कटौती भी शुरू हो गई है, ऊपर से नौकरी में हर दिन तलवार लटक रही है। ऐसे में बैंकों द्वारा ब्याज दरों में कटौती से कम से कम लोग बैंकों से ऋण ले सकेगें। बैंकों का यह कदम डूबते को तिनके का सहारा जैसे साबित होगा।

पहले नौकरी के अवसर बढ़ाइए
इंदिरा भट्ट
लेखिका, राजकीय कॉलोनी, लखनऊ

ब्याज दर घटाना महत्वपूर्ण नहीं है, जितनी नौकरी के अवसर बढ़ाना। भारत में हर रोज सैकड़ों बेरोजगार निकल रहे हैं और आज नौकरी का सृजन शून्य है। सरकार ने ब्याज दर घटाई है, यह राहत की बात है लेकिन यह कदम नाकाफी है।

मंदी को रोकने में अभी और बहुत से काम जरूरी है। महंगाई को रोकना एक बड़ी चुनौती है साथ ही कीमतों पर काबू भी पाना होगा। फौरी तौर पर तो मंदी से राहत भारत में दिखने लगी है। शेयर बाजार सुधरा है, कीमतें घटी हैं और ब्याज दर कम हुआ है लेकिन मेरा अब भी कहना है कि चिदंबरम जी को कि उठो, जागो और आगे बढ़ो।

सरकार ने उठाया है सही कदम
मनीष मोहन सिंह
बिरला सन लाइफ, कानपुर

ब्याज दर में कमी एक शुभ संकेत है, जिसका मंदी पर असर होना तय है। महंगे कर्ज समाज के हर तबके को परेशान करते हैं और खास तौर पर मध्य वर्ग को। अब कम से कम से होम लोन जो मध्यम वर्ग की खास जरूरत थी को, वह सस्ती हो गई है।

हालांकि मंदी एक बड़ा टर्म है और बहुत से लोग इससे प्रभावित हुए हैं। लिहाजा, वहां कोई फर्क पड़ेगा, इसमें मतभेद है लेकिन कदम निस्संदेह स्वागतयोग्य है। छोटे और मझोले उद्योगों को भी ब्याज दर घटाने का फायदा होगा और उनका कारोबार बढ़ेगा।

आय कैसे बढ़े, यह भी सोचिए
डॉ. सुषमा मिश्रा
अध्यक्ष, शिक्षाशास्त्र, कृष्णा देवी गर्ल्स डिग्री कॉलेज, लखनऊ, उत्तर प्रदेश

ब्याज दर घटी अच्छी बात है लेकिन आय कहां से बढ़े यह भी देखने की बात है। मंदी छंटने का मतलब आय बढ़ना और चीजों का सस्ता होना है, जो कि अभी हो नहीं पा रहा है। कर्ज सस्ता होने का क्या फायदा मिलेगा हमें जब क्रय शक्ति ही कमजोर होगी। पहले आय के साधन और नौकरी बढ़े, तभी मंदी पर लगेगी लगाम।

सभी लोग अपनी जवाबदेही समझें
ओ. पी. मालवीय
वेयर हॉउसिंग कॉर्पोरेशन, भोपाल

बैंक अगर छोटे-छोटे बिजनेस, उद्योग, दुकान व्यवसायियों को ब्याज दर घटाकर लोन देते हैं तो उद्योग जगत में रौनक लौट आएगी। सरकारी कर्मचारी, निजी संस्था और उच्च पदों पर बैठे अधिकारी अपनी जवाबदारी समझकर सामने वाले को राहत पहुंचाते हैं तो उसकी तरक्की निश्चित 100 फीसदी समझो।

आम नागरिक भी अपनी-अपनी जवाबदेही के साथ काम करें तो बेहतर रिजल्ट आएगा। बेरोजगारी खत्म हो, इसके लिए बैंकों को अहम रोल अदा करना होगा। ब्याज दर घटाना बहुत ही लाभदायक साबित होगा। मौजूदा दौर में मंदी के  बादल छंटेंगे।

तय करना है अभी लंबा सफर…
अनीता माहेश्वरी
373, विवेक विहार, सोडाला, जयपुर

भारतीय अर्थव्यवस्था में मंदी ने सौ कदमों का सफर तय किया है तो सरकार द्वारा ब्याज दर में कटौती करवाकर दस कदमों का फासला कम किया गया है। यानी कि मंदी को कुचलकर आगे बढ़ने के लिए सरकार को सौ कदमों का सफर तय करना ही पड़ेगा। इसके अलावा सेंसेक्स ऊपर जाने से चारो तरफ खुशहाली आ जाएगी, यह सोच भी मंदी के बादल को छंटने नहीं देंगे।

आम आदमी को मिलेगा लाभ
श्रवण कुमार ठाकुर
भोपाल

सीआरआर, रेपो और एसएलआर में कटौती का लाभ अपेक्षाकृत सस्ते लोन के रूप में वाणिज्यिक बैंकों द्वारा आम आदमी को मिलता है। मोटे तौर पर आरबीआई ने पिछले एक महीने में मंदी से निपटने के लिए देश के बैंकिंग ढांचें में लगभग 2 लाख 40 हजार करोड़ रुपये का अतिरिक्त प्रवाह किया है।

सही वितरण बेहद जरूरी है
विकास कासट
पी-8, तिलक मार्ग, जयपुर

भारतीय अर्थव्यवस्था को लगी मंदी की बीमारी से तुरंत राहत देने के लिए सरकार द्वारा ब्याज दर में कटौती की गई है लेकिन जड़-मूल से कई तरह के परहेज करने होंगे। जैसे कि एक उद्योगपति द्वारा निर्माण, वितरण एवं रिटेल सारे कार्य कर लेने से रुपयों का सही वितरण नहीं होता है, जिसे अर्थव्यवस्था में मंदी नामक बीमारी के शुरुआती लक्षण के रूप में देखा जा सकता है।

फौरी राहत ही है यह इलाज
संजय
भायंदर, थाणे, महाराष्ट्र

ब्याज दरों में कमी से थोड़ी राहत तो जरूर मिलेगी, लेकिन एक के बाद एक कंपनियों द्वारा जिस तरह से कर्मचारियों की छंटनी और वेतन में कटौती की जा रही है, उसे देखते हुए लगता है कि सरकारी मरहम सिर्फ फर्स्ट रिलीफ ही साबित होगा, क्योंकि लोगों के पास जब कर्ज लेने का आधार और चुकता करने की कुव्वत ही नहीं बचेगी तो बैंक किस आधार पर ऋण देंगे।

जरूर छंटेंगे बादल
इंद्रजीत कौशिक
चंदन सागर वैल, बीकानेर, राजस्थान

मंदी को दूर करने के लिए ब्याज दर में कटौती करना वास्तव में उचित कदम है। सरकार के इस कदम का सभी क्षेत्रों ने स्वागत किया है। वहीं शेयर बाजार में छाई उदासी भी दूर होने लगी है। खासकर रियल्टी क्षेत्र को जरूर एक पुनर्जन्म मिलेगा, जो बहुत बुरी तरह प्रभावित हुआ है। हमारी मजबूत अर्थव्यवस्था पर वैश्विक मंदी के कारण छाए बादल छंटकर रहेंगे।

और कम हो दर, तो बात बनेगी
भरत कुमार जैन
अध्यक्ष, फोरम ऑफ एग्रो इंडस्ट्रीज, मध्य प्रदेश

ब्याज दर उद्योग, व्यापार, व्यवसाय की सतत लागत बढ़ाने वाला महत्वपूर्ण अंश है। उद्योग, व्यवसाय चले न चले, ब्याज चौबीसों घंटे निरंतर लगता रहता है। आ रही वैश्विक मंदी के मुकाबले के लिए भारी-भरकम लागत पर अधिक उत्पादन का मूल मंत्र अपनाना होगा। ब्याज दरें निम्नतम स्तर पर लानी होगी।

रिजर्व बैंक द्वारा बैंकों को जिस दर से रुपया उपलब्ध कराया जा रहा है, उससे तीन फीसदी अधिक दर पर उद्योग व्यवसाय और विशेष कर लघु उद्योगों को ऋण उपलब्ध कराया जाए। सरकार केवल शेयर बाजार की ही चिंता में न रहे बल्कि देश की चिंता करते हुए जो देश गरीब, छोटे और मध्यम तथा कुटीर उद्योग विकास की दौड़ में पीछे रह गए हैं, उन्हें भी मजबूती प्रदान करें।

ब्याज दर घटाए जाने से मंदी के बादल बरसने की अपनी तूफानी क्षमता जरूर खो देंगे। सरकार को समय रहते सुरक्षा के उपाय निकालने होंगे, नहीं तो समस्या और भी विकट रूप ले सकती है।

इस पहल से होगा कुछ तो समाधान
निरंजन लाल अग्रवाल
रिटायर्ड बैंक अधिकारी, लखनऊ

बैंकों द्वारा दिए जाने वाले व्यावसायिक ऋणों पर पड़ने वाले ब्याज की दर में कमी उत्पादित वस्तुओं की लागत मूल्य में अपना विशेष महत्व रखती है। रिजर्व बैंक द्वारा बैंकों को इन ऋणों पर ब्याज दर निर्धारित करने की स्वायतत्ता दे दी गई है। अभी तक केवल कुछ बैकों ने ही इस दिशा में कदम उठाए हैं।

अगर हम बाजार में छायी हुई मंदी का विश्लेषण करें तो पाएंगे कि इसके अनेक कारण हैं, जिसमें विदेशी विनियोजकों द्वारा धन की निकासी व अन्य विनियोजकों के विश्वास में कमी के कारण भयपूर्ण बिकवाली महत्वपूर्ण है। बैंकों द्वारा अगर ब्याज दर में कमी कर दी जाए तो निश्चित रूप से बाजार में छायी मंदी के बादल छंटेंगे।

इन नीतियों का असर जरूर होगा
मुकुंद माधव
चंडीगढ़

आर्थिक मंदी पर लगाम लगाने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक कई तरह की मौद्रिक नीतियों की घोषणा कर रहा है, लेकिन स्थिति में बहुत ज्यादा अंतर नहीं दिख रहा है। वैसे रिजर्व बैंक जिस भी प्रकार की नीतियां अपनाता है, उसका असर दिखने में कुछ वक्त लगता है। लेकिन शेयर बाजार के धराशायी होने और महंगाई के बेलगाम बढ़ने की वजह से लोगों का धैर्य डोल गया है।

ज्यादातर लोग यह समझने लगे हैं कि मंदी का इलाज करने के लिए रिजर्व बैंक जिस तरह के नुस्खे अपना रहा है, वह कारगर नहीं है। लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं है कि इसका असर जरूर होगा। बाजार में तरलता में जो कमी आ गई है, उसे दूर करने के लिए ब्याज दरों में कटौती लगातार की जा रही है। यह वक्त धैर्य रखने का है और अगर बीमारी गंभीर हो, तो उसे ठीक होने में थोड़ा समय जरूर लगता है।

खिल उठेगी देश की अर्थव्यवस्था
डॉ. एम. एस. सिद्दीकी
पूर्व विभागाध्यक्ष-अर्थशास्त्र, फर्रूखाबाद

भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा सीआरआर, रेपो दर तथा वैधानिक तरलता अनुपात  में कटौती सही दिशा में उठाया गया कदम है। इस नियति से अन्य बैंकें भी ब्याज दर घटाने के लिए प्रेरित होंगे। तरलता बढ़ाने के उद्देश्य से रिजर्व बैंक अक्टूबर से अब तक 2,70, 000 करोड़ रुपये झोंक चुका है।

केंद्रीय बैंक के इस क दम से होम लोन व ऑटो लोन के साथ-साथ अन्य पर्सनल लोन भी सस्ते होने की उम्मीद है। इसका देश की अर्थव्यवस्था पर गुणात्मक प्रभाव पड़ेगा और मंदी के बादल छंटने में सहायता मिलेगी। अब ब्याज दरों में कटौती का दौर आ गया है और इससे अर्थव्यवस्था पर मंदी का दबाव अवश्य कम होगा।

पुरस्कृत पत्र

केवल दर्द भुलाने वाली दवा!
डॉ. जी. एल. पुणताम्बेकर
रीडर, वाणिज्य विभाग, सागर, मध्य प्रदेश

सबसे पहले सस्ते और सुलभ ‘कर्ज की सुविधा’ तथा ‘कर्ज प्रेरित विकास दर हासिल करने की सनक’ के बीच भेद किया जाना आवश्यक है। मंदी का मूल कारण असुरक्षित कर्जों और उससे बनाए गए वित्तीय उत्पादों की सट्टेबाजी है। इसे रोकने के उपाय करने के लिए ब्याज दर घटाना मात्र दर्द भुलाने वाली दवा हो सकती है, मर्ज मिटाने वाली नहीं। हमें विकास के लिए कर्जों को एक्सीलेटर बनाना भले ही स्वीकार करना पड़े, उसे इंजन बनाना तो पुन: खतरा मोल लेना ही होगा।

सर्वश्रेष्ठ पत्र

कई हैं कारण
रणविजय कुमार सिंह ‘राजपूत’
16, तृतीय तल इंद्रा विकास कॉलोनी, नई दिल्ली

बाजार को पैसा पहुंचने से सुदृढ़ता तो जरूर देखने को मिलेगी लेकिन मंदी अपने आप में एक चक्र का पालन करती है। मसलन मंदी कई कारणों से प्रभावित होती है। इसके अंत में हर कारण उचित रूप से जिम्मेदार होगा। जब तक यह चक्र अपनी प्रक्रिया पूरी नहीं करेगा यह मंदी का दौर इसी तरह बाजार में वर्तमान रहेगा और इसका असर अगले वर्ष तक रहेगा।

रौनक लौटेगी
ऋषि डी. भासिन
गोरेगांव, मुंबई

ब्याज दरों में कमी किये जाने से मंदी पर असर जरूर पड़ेगा। कम दर पर ऋण मिलने से लोग बैंकों से ऋण फिर से लेना शुरू करेंगे, इससे तरतला बढ़ेगी और सूने पड़े बाजारों में रौनक देखने को भी मिलेगी। पहले से ऋण लिए लोगों को ऋण अदायगी में आसानी होगी, जिससे कुछ दिनों से बढ़ती आत्महत्या जैसी दुखद बातों पर भी विराम लगेगा।

बकौल विश्लेषक

इससे मंदी खत्म होगी, यह कहना अभी जल्दीबाजी !
डॉ. अजय प्रकाश
लेक्चरर, व्यापार प्रशासन विभाग, लखनऊ विश्वविद्यालय

ब्याज दर घटाना एक अच्छा कदम है और हफ्ते भर में इसके परिणाम दिखने लगे हैं। सीआरआर में कटौती और ब्याज दर में कमी का असर बाजार में दिखने लगा है। हालांकि यहां यह कहना कि इस कदम से मंदी खत्म हो जाएगी, थोड़ी जल्दीबाजी होगी। मंदी के कारण दीर्घकालिक हैं और यह आज-कल की देन नहीं है।

लिहाजा मात्र ब्याज दर में कमी मंदी को रोक पाएगी यह कहना गलत होगा। भारत जैसे देश में चिदंबरम और मनमोहन सिंह की कई लोग आलोचना कर रहे हैं पर यह भी तो देखें कि मंदी से सबसे कम प्रभावित हमारी जनसंख्या रही है। यूपीए सरकार को मंदी को संभालने का पूरा क्रेडिट है, इसे कोई नकार नहीं सकता है। पर मंदी केवल भारत का खेल नहीं सारी दुनिया का बखेड़ा है।

हां, ब्याज दरों में कमी मध्यम वर्ग को राहत देगी और उन्हें जरूरत के मुताबिक सस्ता कर्ज मिल सकेगा जो कि उनके लिए राहत की बात है। पर वैसे देखें तो मांग घटी है, बाजार हल्का है और साथ में नौकरी के नए अवसर नहीं आ रहे हैं। अकेले ब्याज दर घटाना मंदी का इलाज नहीं है।

प्रयास विश्वव्यापी और व्यापक होने चाहिए। फिर भी मैं मनमोहन सरकार को पूरे अंक दूंगा कि उसने मंदी की मार से अपने देश को कम प्रभावित होने दिया। अब मंदी वैश्विक है और अमेरिका की आंच भारत तक आती है। वित्तीय संस्थानों के अंधाधुंध कर्ज बांटने पर अंकुश लगाना होगा।  
बातचीत: सिध्दार्थ कलहंस

इलाज मुकम्मल नहीं, मगर मजबूत बुनियाद से है आस
आनंद भौमिक
वरिष्ठ निदेशक, फिच रेटिंग

बैकों द्वारा ब्याज दरों में कटौती का महंगाई पर कितना फर्क पडने वाला है, इसका सही-सही आकलन करने के लिए दो-तीन सप्ताह का समय चाहिए। लेकिन एक बात तो तय है कि बैंकों के माध्यम से मंदी पर लगाया जाने वाला यह सरकारी मरहम कुछ तो असर दिखायेगा ही।

बाजार में तरलता बढ़ेगी, जिससे पूंजी का रोना रो रहे कई क्षेत्रों को राहत जरूर मिलेगी। हांलाकि बैंको द्वारा नकदी की कमी का रोना अभी भी रोया जा रहा है। मंदी की जो काली छाया लगभग सभी उद्योगों में इस समय छाई हुई है, उसके लिए घरेलू कारण नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय कारक जिम्मेदार हैं और वैश्विक स्तर पर अभी भी मंदी के बादल छंटे नहीं हैं।

बैंकों से ऋण मांगने वाले आम आदमियों की संख्या में कमी आई है लेकिन कॉर्पोरेट सेक्टर की ओर से ऋण की मांग लगातार बढ़ती ही जा रही है, क्योंकि वैश्विक फंडिंग स्रोत लगभग खत्म हो चुके हैं, जिससे ज्यादातर कंपनियां बैंकों के सामने झोली फैलाकर खड़ी हो गई है।

वैश्विक मंदी का ही असर है कि इस बार देश की विकास दर 6 फीसदी के आसपास रहने वाली है। भारतीय बैंकों की स्थिति ठीक है और ब्याज दरों में कमी होने से मिडिल क्लास एक बार फिर से ऋण लेकर काम धंधा शुरू करेगा, जिससे बाजार में तरलता बढ़ेगी, परिणामस्वरूप मंदी कुछ कम हो जाएगी।  
बातचीत: सुशील मिश्र

…और यह है अगला मुद्दा

सप्ताह के ज्वलंत विषय, जो कारोबारी और कारोबार पर गहरा असर डालते हैं। ऐसे ही विषयों पर हर सोमवार को हम प्रकाशित करते हैं व्यापार गोष्ठी नाम का विशेष पृष्ठ। इसमें आपके विचारों को आपके चित्र के साथ प्रकाशित किया जाता है। साथ ही, होती है दो विशेषज्ञों की राय।

इस बार का विषय है किस दल की आर्थिक नीतियां देश को बचा सकती हैं मंदी से? अपनी राय और अपना पासपोर्ट साइज चित्र हमें इस पते पर भेजें:बिजनेस स्टैंडर्ड (हिंदी), नेहरू हाउस, 4 बहादुरशाह जफर मार्ग, नई दिल्ली-110002 फैक्स नंबर- 011-23720201 या फिर ई-मेल करें
goshthi@bsmail.in

आशा है, हमारी इस कोशिश को देशभर के हमारे पाठकों का अतुल्य स्नेह मिलेगा।

vyapar goshthi
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Vijaya Diagnost.409.206.37
EPL Ltd164.605.31
Lupin671.854.98
Biocon206.403.88
Uno Minda455.003.62
Aurobindo Pharma517.853.48
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