सूचना प्रौद्योगिकी के जमाने में सूचनाओं का दबाव बढ़ता ही जा रहा है। ईएमसी और आईडीसी के अध्ययन के मुताबिक उम्मीद है कि 2010 तक सूचना आवक की वार्षिक वृद्धि 57 प्रतिशत तक बढ़कर 988 एक्जाबाइट हो सकती है।
गौरतलब है कि एक एक्जाबाइट 100 करोड़ अरब बाइट के बराबर होती है। किसी इंसान द्वारा बोले गए सभी शब्द लगभग 5 एक्जाबाइट होते हैं। आप उस समय की कल्पना करें जब आपको बहुत सारे डाटा में से किसी खास डाक्यूमेंट को ढूंढने में बहुत सारा समय और मेहनत जाया करना पड़ता था।
उदाहरण के तौर पर एक सप्ताह में कर्मचारियों द्वारा सूचनाओं को ढूंढने में औसतन लगभग 9.5 घंटे लगते हैं। यानी अगर पूरे सप्ताह के कुल दिन के घंटे को जोड़े तो एक दिन के कार्य दिवस के बराबर का समय जानकारियों को इकट्ठा करने में लग जाता है। आईडीसी के अध्ययन के मुताबिक इसमें से भी 3.5 घंटे का यूं ही जाया हो जाता है क्योंकि जिस सूचना की जरूरत होती है वह जानकारी समय पर नहीं मिल पाती है।
आईबीएम इंडियासाउथ एशिया के सूचना प्रबंधन के कंट्री मैनेजर कौशिक बागची का कहना है, ‘भारत में किसी सूचना के डाटा को इकट्ठा करने में 12 से 14 घंटे लग जाते हैं। यहां के डाटा आपको व्यवस्थित रूप में नहीं मिलेंगे। इसकी वजह यह है कि यहां का आईटी इंफ्रास्टक्चर उतना मजबूत नहीं है जैसा कि आईटी तकनीक से लैस देशों में होता है।’
इस तरह की चीजों ने ही इंटरप्राइज कंटेट सर्च (ईसीएस) के लिए रास्ता तैयार किया है। इंटरप्राइजेज का कंटेंट अलग-अलग डाटा और एप्लीकेशन में बिखरा होता है। हमारे यहां सर्च के जो भी विकल्प है उसमें पहले से ही पैके जिंग होती है। इसमें इंटरप्राइज एप्लीकेशन का ज्यादा जोर दस्तावेजों को खोजने में होता है। इसमें किसी एप्लीकेशन और इंटरप्राइज के लिहाज से कोई चीज नहीं होती।
इंटरप्राइज सर्च का काम लोगों को जरूरी और प्रासंगिक सूचनाओं की खोज में मदद करना है। इसके जरिए किसी संगठन के सूचनाओं के भंडार मसलन फाइल, वेबसाइट, लाइन ऑफ बिजनेस एप्लीकेशन(एलओबी) और डाटाबेस से भी ढूंढा जा सकता है। फिर भले ही यह व्यवस्थित या अव्यवस्थित फार्मेट में हो। इस बीच कंपनियां भी डाटा को बेहतर बनाने की कोशिश में जुटी हुई हैं।
मिसाल के तौर पर पटनी कंप्यूटर सिस्टम ने अपने यहां माइक्रोसॉफ्ट सर्च टूल का इंतजाम किया है ताकि उनकी ज्ञान आधारित प्रबंधन व्यवस्था मजबूत रहे। कंपनी के अधिकारियों को यकीन है कि सर्च इंजन की बड़ी क्षमता और इसमें वर्गीकरण की सुविधा के जरिए ही कर्मचारियों को तेजी से सही जानकारी मिल जाती है। महिन्द्रा एंड महिन्द्रा, यूबी गु्रप और कॉग्निजैंट इस तरह की सेवाओं को पहले लेने वाले लोगों में शामिल में हैं। इस तरह के इंटरप्राइज सर्च सॉफ्टवेयर को लगाने में औसतन 800,000 रुपये खर्च होते हैं।
माइक्रोसॉफ्ट इंडिया के माइक्रोसॉफ्ट बिजनेस डिवीजन के निदेशक का कहना है, ‘आजकल इंटरप्राइज सर्च का ज्यादा काम कॉरपोरेट सिस्टम के बड़े डाटा को निकालने में होता है। लोग अपने इंट्रानेट और कॉरपोरेट सिस्टम के जरिए उन कंटेट को नहीं खोज पाते जिसकी जरूरत होती है। आजकल सर्च का काम केवल इंटरप्राइज पोर्टल तक ही सीमित नहीं है बल्कि यह सोशल कंप्यूटिंग सिस्टम, कंप्लायंस सिस्टम और एओबी एप्लीकेशन का हिस्सा भी बन रही है।’
इंटरप्राइज सर्च बाजार की विकास काफी अधिक है। फिलहाल इसकी वृद्धि दर 25 प्रतिशत है। गार्टनर के सॉफ्टवेयर मार्केट के प्रिंसीपल एनालिस्ट भवेश सूद का कहना है, ‘ग्लोबल मार्केट में 2012 तक कुल सॉफ्टवेयर रेवेन्यू के 1.5 बिलियन डॉलर तक पहुंचने की संभावना है।’ कई बार इंटरप्राइज सर्च की प्रक्रिया काफी जटिल भी हो जाती है। यह नॉलेज मैनेजमेंट, क्लाइंट मैनेजमेंट, सूचना के फैलाव और उत्पादकता को बढ़ाने में सर्च के समय को कम करता है और फैसले लेने की प्रक्रिया को और तेज करता है।
कई कंपनियों का कारोबार अलग-अलग जगहों पर फैला होता है। ऐसे में जरूरत इस बात की होती है कि विभिन्न प्रोजेक्ट से संबंधित सूचनाओं को उनके लोकेशन तक पहुंचाया जाय और सामंजस्य बिठाया जाए। हालांकि यहां बड़ी चुनौतियां भी हैं जिसका सामना अभी करना है। अव्यवस्थित डाटा में से किसी खास जानकारी को खोजना आसान काम नहीं है। लगभग 95 प्रतिशत डिजीटल इंर्फोमेशन में अव्यवस्थित डाटा होती है जिसमें से 80 प्रतिशत के लिए संगठन ही जिम्मेवार हैं।