ऐसा प्रतीत होता है कि संघ परिवार को 21वीं सदी के अपने अवतार में भारतीय कारोबारी जगत को लेकर कुछ खास मनोवैज्ञानिक समस्या है। सन 2014 में मेक इन इंडिया की जोरदार चर्चा के साथ ऐसी स्थिति निर्मित हुई मानो भारतीय कारोबारी जगत देश की आर्थिक वृद्धि का भविष्य का इंजन होगा। सन 2020 और 2021 के दौरान अनेक ऐसी नीतियां बनीं जिन्होंने देश के कारोबारी जगत को आमंत्रित किया कि वे सरकारी परिसंपत्तियों को विनिवेश के जरिये सरकारी परिसंपत्तियों को खरीदें या राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन (एनएमपी) की घुमावदार राह लें। परंतु इसके बावजूद एक महीने के भीतर सत्ताधारी दल के उद्योग एवं वाणिज्य मंत्री तथा उसके मातृ संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने दो प्रतिष्ठित घरेलू कारोबारियों पर अलग-अलग मौकों पर जोरदार हमले किए। दोनों हमलों से यही संकेत निकलता है कि परिवार के भीतर यह धारणा है कि भारतीय कारोबारों ने अर्थव्यवस्था में बदलाव लाने और भारतीय जनता पार्टी तथा उसके ‘सीईओ’ प्रधानमंत्री की छवि चमकाने में अपेक्षित भूमिका नहीं निभाई है। बल्कि प्रधानमंत्री खुद 2016 और 2021 में दो बार कारोबारियों से कह चुके हैं कि वे ज्यादा जोखिम उठाएं और निवेश करें लेकिन इन बातों का कोई प्रभाव देखने को नहीं मिला।
सरकार ने अपनी कमजोरियों पर कभी आत्मावलोकन नहीं किया। ऐसे में जब वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल, जिनके प्रधानमंत्री के साथ रिश्ते अच्छे माने जाते हैं, तथा आरएसएस परिवार की हिंदी पत्रिका पांचजन्य ने क्रमश: टाटा समूह पर स्वार्थी होने तथा इन्फोसिस पर देश विरोधी ताकतों को फंड करने का आरोप लगाया तो यह माना जा सकता है कि भारतीय उद्योग जगत और सत्ता प्रतिष्ठान के बीच रिश्ते तनाव के नए मोड़ पर पहुंच चुके हैं।
दोनों टिप्पणियां किसी अन्य बात से अधिक यह बताती हैं कि कैसे संघ परिवार कारोबार की बुनियादी बातों को समझता है। गोयल ने भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) की एक बैठक में कहा था कि टाटा समूह नई ई-कॉमर्स नीतियों को लेकर जो शिकायत कर रहा है वह दरअसल अपने हित को राष्ट्र हित से ऊपर रखने का मामला है। उन्होंने समूह को सलाह दी कि वह विदेशियों को लेकर ‘लालच पर नियंत्रण’ रखे। टाटा समूह की शिकायत क्या थी? दरअसल मसौदा ई-कॉमर्स नीति के तहत शॉपिंग वेबसाइटों को संबद्ध कंपनियों के उत्पाद बेचने से रोक दिया गया है। टाटा की योजना एक सुपर ऐप शुरू करने की है और नए मसौदे के मुताबिक वह स्टारबक्स तथा अन्य संयुक्त उपक्रमों के उत्पाद नहीं बेच सकेगी।
कारोबार संबंधी नीतिगत बाधा को लेकर की गई शिकायत को ‘राष्ट्रीय हित’ को प्रभावित करने वाला कैसे कहा जा सकता है। ध्यान रहे कि यह अस्पष्ट शब्द राष्ट्रवादियों को अत्यंत प्रिय है। सवाल यह भी है कि एक देसी कंपनी अगर संयुक्त उपक्रम के माध्यम से संचित वस्तुओं को अपने प्लेटफॉर्म पर बेचना चाहती है तो इसे विदेशियों का लालच कैसे कहा जा सकता है? शायद गोयल का ध्यान इस बात पर नहीं गया कि टाटा ने इस प्रतिबंध के बारे में उस समय शिकायत नहीं की जब बीते तमाम वर्षों में यह विशेष रूप से विदेशी स्वामित्व वाली एमेजॉन और फ्लिपकार्ट जैसी कंपनियों पर लागू था। टाटा ने तब आवाज उठाई जब नीति को घरेलू ई-कॉमर्स प्लेटफार्म के लिए विस्तारित किया गया।
प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को लेकर सरकार के उत्साह के बावजूद शायद गोयल अभी भी यही सोचते हैं कि विदेशी साझेदारी बुरी बात है। ‘अच्छा, ईमानदार कारोबार करने के लिए आपका स्वागत है। लेकिन गड़बडिय़ों में…जब मैं ऐसे नाम पढ़ता हूं जो किसी के साथ और हर किसी के साथ साझेदारी में हैं,’ जाहिर है यह स्टारबक्स का उल्लेख करने का नया तरीका है। क्या हम सोच सकते हैं कि गूगल, फेसबुक या अरामको के बारे में भी ऐसा ही कहा जाएगा?
जहां तक पांचजन्य की बात है तो शायद पत्रिका को पत्रकारिता की बुनियादी बातें भी पता नहीं हैं। यदि ऐसा होता तो वे कम से कम इन्फोसिस या सरकार से स्पष्टीकरण अथवा टिप्पणी की मांग करते।
पोर्टल पर जो कमियां हैं वे शायद आईटी कंपनी की लापरवाही का परिणाम हो और यकीनन उससे करदाताओं को दिक्कत हुई। लेकिन इसकी तुलना किसी देश विरोधी षडयंत्र से करना फूहड़ और अपमानजनक है।
न तो टाटा और न ही इन्फोसिस ने सार्वजनिक रूप से इसका जवाब देने की पेशकश की। उधर सीआईआई ने गोयल के भाषण की रिकॉर्डिंग हटा दी है। खुद मंत्री ने भी स्पष्ट किया है कि वह टाटा समूह के खिलाफ नहीं हैं। परंतु यह बात ध्यान देने लायक है कि सरकार की ओर से किसी ने वाणिज्य मंत्री के बयान का खंडन नहीं किया। हालांकि बाद में नीति आयोग का एक नोट आया जिसमें कहा गया कि टाटा की शिकायत को उस तरह भी समझा जा सकता है। हाल ही में उन्हें जी 20 के लिए प्रतिनिधि नियुक्त करने से यही पता चलता है कि लोक कल्याण मार्ग पर उनकी पकड़ मजबूत बनी हुई है।
जहां तक आरएसएस की बात है तो उसने पांचजन्य की आवरण कथा से दूरी बनाने का प्रयास किया और कहा कि पत्रिका उसकी मुखपत्र नहीं है। परंतु पांचजन्य का प्रकाशन आरएसएस के अधीन है।
वह अपनी ही बात काट रहा है क्योंकि निस्तुला हेब्बार ने द हिंदू में लिखा कि आरएसएस के सर कार्यवाह ने अगले ही दिन कहा कि पांचजन्य धर्मयुद्ध का अग्रदूत है। पत्रिका के नए कार्यालय के उद्घाटन के अवसर पर दिए उनके भाषण में इन्फोसिस का जिक्र नहीं था लेकिन उन्होंने यह जरूर कहा कि देश विरोधी ताकतों के बरअक्स राष्ट्रवादी नजरिये में मजबूती आई।
कुल मिलाकर नोटबंदी, हड़बड़ी में लागू जीएसटी, बढ़ते शुल्क अवरोध और अब देश विरोधी होने के आरोपों के बीच अगर कारोबारी जगत सरकार के साथ रिश्तों को लेकर भ्रमित है तो उसे माफ किया जा सकता है।
