प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आयकर विभाग द्वारा करदाता घोषणा पत्र को अपनाए जाने का एलान किया है। यह एक बड़ा कदम है जो कर प्रशासन में भरोसा पैदा करेगा। इस घोषणापत्र के साथ ही भारत भी अमेरिका और कनाडा जैसे उन चुनिंदा देशों में शामिल हो गया जिनके कानून में ऐसे प्रावधान हैं। इस घोषणापत्र के मुताबिक आयकर विभाग अब करदाताओं को ईमानदार मानने के लिए प्रतिबद्ध है, बशर्ते कि वे पूरी और सही जानकारी दें। इसके साथ ही व्यवस्था को सहज और निष्पक्ष रखा जाएगा और अनुपालन लागत कम करने का प्रयास किया जाएगा। विभाग के लिए यह सुनिश्चित करना अहम होगा कि ये प्रतिबद्धताएं केवल कागजी बनकर न रह जाएं। मिसाल के तौर पर करदाताओं को प्रताडि़त न किया जाए, इसके लिए यह व्यवस्था की जाएगी कि देश के अलग-अलग हिस्सों में अधिकारियों को मामलों का यादृच्छिक ढंग से आवंटन किया जाए। यह अच्छा कदम है लेकिन बड़ी तादाद में कर अधिकारियों ने इस नई व्यवस्था का विरोध भी शुरू कर दिया है। उनका कहना है कि इस विषय में पर्याप्त मशविरा नहीं किया गया और इसे लागू करने के लिए जरूरी संसाधन नहीं हैं। उनको यह भय भी है कि कर संग्रह में कमी आने से उनके ऊपर यह दबाव बनेगा कि किसी भी तरह लक्ष्य को हासिल करें। यह सही है कि सरकार वर्षों से इस दिशा में काम कर रही थी कि करदाताओं और आयकर विभाग के बीच विश्वास की कमी दूर की जाए। परंतु विभागीय प्रताडऩा के आरोप खत्म होने का नाम ही नहीं लेते।
कर प्रशासन में जिन सुधारों की आवश्यकता है, उनका यह एक ही पहलू है। करदाताओं की परेशानी की एक वजह यह भी है कि सरकार अक्सर राजस्व के लिए अत्यंत महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य तय कर देती है। कर अधिकारियों को इन्हें हासिल करने के लिए कड़े उपाय करने पड़ते हैं। यह व्यवहार केवल व्यक्तिगत आय कर तक ही सीमित नहीं है। ऐसे में कर का दायरा बढ़ाने का प्रयास किया जाना चाहिए। मोदी ने गुरुवार को अपने संबोधन में सही कहा कि केवल 1.5 करोड़ लोग आयकर देते हैं। सरकार को अपने दायित्वों का निर्वहन करने के लिए जो संसाधन चाहिए, उसे देखते हुए यह तादाद बेहद कम है।
परंतु ऐसा आंशिक रूप से कर नीति के कारण भी है। सरकार ने 2019 में 5 लाख रुपये तक की आय पर कर रियायत दोगुनी कर दी। इससे अधिकांश करदाता दायरे से बाहर हो गए। यह रियायत प्रति व्यक्ति आय और गरीबी रेखा की दृष्टि से पर्याप्त उदार है। दूसरी ओर सरकार ने उच्च आय वर्ग वालों की सीमांत आयकर दर में काफी इजाफा कर दिया। जाहिर है इससे कर वंचना को बढ़ावा मिल सकता है। कर प्रशासन को संतुलन कायम करने का प्रयास करना चाहिए और अधिकांश करदाताओं से मामूली कर वसूल करना चाहिए।
ऐसे लोग भी अच्छी खासी तादाद में हैं जो कर वंचना करते हैं। विभाग को तकनीक और डेटा का इस्तेमाल बढ़ाकर ऐसे लोगों को कर दायरे में लाना चाहिए। दिवंगत अरुण जेटली ने 2018 के बजट भाषण में इस बात को रेखांकित किया था कि वेतनभोगियों द्वारा दिया जाने वाला आय कर व्यक्तिगत कारोबारियों द्वारा चुकाए जाने वाले आयकर का करीब तीन गुना होता है। ऐसे में कर प्रशासन को अब अधिकाधिक लोगों को कर दायरे में लाने और अनुपालन सुधारने पर विचार करना चाहिए। सरकार को कर अधिकारियों को प्रशिक्षण देने पर भी ध्यान देना चाहिए क्योंकि अब उन्हें करदाताओं के साथ सहयोग करना है और कर आकलन को सुसंगत भी बनाना है। इससे न केवल कर संग्रह सुधरेगा बल्कि सरकार को खुले हाथ खर्च करने का अवसर भी मिलेगा। इतना ही नहीं इससे ईमानदार करदाताओं पर से दबाव भी कम होगा।
