अमेरिकी बैंकों ने मुनाफा कमाने के बारे में जानकारी देना शुरू कर दिया है। यहां तक कि इन बैंकों ने सरकार से मिली कुछ रकम वापस करनी भी शुरू कर दी है।
लेकिन नोबेल पुरस्कार विजेता पॉल क्रुगमैन का कहना है कि किसी बैंक का मुनाफा संख्या पर नहीं बल्कि इस बात पर निर्भर करता है कि बैंक ने भविष्य में होने वाले नुकसान की आशंका को ध्यान में रखते हुए उस मद में कितनी रकम अलग रखी है।
जैसा कि सिटीग्रुप को पहली तिमाही में 1.6 अरब डॉलर का मुनाफा बताता है कि इन आंकड़ों में घालमेल की काफी गुंजाइश है। करीब 70 करोड़ डॉलर का राजस्व ब्राजील की क्रेडिट कार्ड कंपनी रीडिकार्ड की हिस्सेदारी बेचने से आया है। इसके अलावा 25 करोड़ डॉलर रिजर्व से जारी किए गए हैं और टैक्स में छूट की बदौलत 11 करोड़ डॉलर हासिल हुए हैं।
लेकिन चिंताजनक बात यह है कि राजस्व में 2.7 अरब डॉलर की रकम बही-खाते के नियम में बदलाव के कारण आई है। यह नियम सिटीग्रुप को अपने ऋण कम दर पर फिर से खरीदने (बायबैक) का अधिकार देता है।
अमेरिकी फाइनैंशल अकाउंटिंग स्टैंडर्ड 159 के मुताबिक जब ऋण का मूल्य कम हो जाता है तो बैंक उसे फिर से खरीद सकते हैं। चूंकि ऐसी खरीद कम कीमत पर की गई, लिहाजा बैंकों ने इस सौदे के जरिए रकम बनाई।
बैंक ऑफ अमेरिका की जनवरी-मार्च की तिमाही में कुल आय एक साल पहले के 1.21 अरब डॉलर के मुकाबले बढ़कर 4.25 अरब डॉलर पर पहुंच गई जबकि इसके शेयर की कीमत में 24 फीसदी की गिरावट हुई थी।
निवेशकों ने महसूस किया कि कुल बढ़ोतरी में 1.9 अरब डॉलर चीन के कंस्ट्रक्शन बैंक की हिस्सेदारी बेचने से मिले जबकि 2.2 अरब डॉलर की रकम इस सच्चाई के बाद सामने आई कि मेरिल लिंच के ऋण मूल्य में कमी आई थी। ( एफएएस-159 के जरिए)। गोल्डमैन सैक्स ने तिमाही की परिभाषा ही बदल दी।
क्रुगमैन के शब्दों में बैंकों के लिए सबसे खराब रहा महीना दिसंबर तुलना के लिए गायब कर दिया गया। जे. पी. मॉर्गन ने भी एफएएस-159 का इस्तेमाल कर बेहतर आंकड़े पेश किए हैं। बैंकों ने हाल में जिस तरह के आंकड़े पेश किए हैं, वह दरअसल बही-खाते की झूठी कहानी का नतीजा है। किसी ने भी बैंक में जमा नकदी का जिक्र नहीं किया है।
बैंकों और दूसरी कंपनियों ने लचीले अकाउंटिंग स्टैंडर्ड का इस्तेमाल करते हुए ज्यादा मुनाफा दिखाया या फिर नुकसान को कम करके दिखाया। निवेशक ऐसे आंकड़ों पर भरोसा करना बंद कर देंगे और उन आंकड़ों की जांच शुरू कर देंगे ताकि बही-खाते की झूठी कहानी सामने लाई जा सके। जब बैंक ये आंकड़े सामने रखेंगे तो लोग उसकी जांच गहराई से करेंगे।
संकट में फंसे बैंक और कंपनियों द्वारा दबाव बनाए जाने के बाद अमेरिकी अधिकारियों ने अकाउंटिंग स्टैंडर्ड को नरम कर दिया। इसी तरह भारत में सरकार ने विदेशी विनिमय से होने वाले नुकसान की खातिर एएस-11 को नरम कर दिया है।
जब विदेशी मुद्रा के उछाल से कंपनियां मुनाफा कमाती हैं तो वे अपने हक में एएस-11 का इस्तेमाल करती हैं, पर जब विदेशी मुद्रा की नरमी उन्हें नुकसान पहुंचाने लगता है तो सरकार एएस-11 लागू होने की शर्तों में छूट की बात मान लेती है। इस तरीके से वित्तीय क्षेत्र की साख नहीं लौटाई जा सकती, चाहे मामला भारत का हो या फिर अमेरिका का।
