अनुमान है कि टाटा समूह द्वारा एयर इंडिया के अधिग्रहण की प्रक्रिया अगले महीने तक पूरी हो जाएगी। सन 2022 तक एक नई विमानन कंपनी ‘आकाश एयर’ भी शुरुआत के लिए तैयार है। इस विमानन कंपनी को विमानन उद्योग के वरिष्ठ व्यक्ति विनय दुबे ने शुरू किया है, इंडिगो के पूर्व मुख्य कार्याधिकारी आदित्य घोष उनके सलाहकार हैं और निवेशक राकेश झुनझुनवाला ने इसका वित्त पोषण किया है।
ये दोनों घटनाएं भारतीय विमानन जगत की दो सबसे बड़ी कहानियों का प्रतिनिधित्व करती हैं जो अगले वर्ष हमारे सामने खुलेंगी। इस समय जबकि हम सभी की आंखें इस घटनाक्रम में लगी हुई हैं, कुछ रणनीतिक मुद्दे ऐसे भी हैं जो दोनों विमानन कंपनियों के काम को प्रभावित कर सकते हैं।
नियमन बनाम खुला आसमान: एक सरकारी विमानन कंपनी होने के नाते एयर इंडिया को लेकर सरकार के मंत्रियों ने पश्चिम एशिया की विमानन सेवाओं के साथ हवाई मार्गों की अदला-बदली कर ली और इस दौरान उन्होंने हमारी सरकारी विमानन कंपनी के लिए ऐसे अधिकारों की मांग भी नहीं की। एयर इंडिया के अपने बेड़े के लिए अधिग्रहण की योजनाओं को भी नाकाम किया गया।
इस बार शायद कोविड ने मोदी सरकार को इस बात के लिए पर्याप्त अवसर प्रदान किया कि वह महामारी के कारण निलंबित चल रही नियमित अंतरराष्ट्रीय उड़ानों को शुरू करने में पर्याप्त समय ले। भारत ने 28 देशों के साथ अस्थायी एयर बबल समझौते पर हस्ताक्षर किए थे जिसके चलते ऐसा हो सका। महामारी ने अव्यवस्थित तरीके से ही एक अवसर तैयार किया है ताकि अतीत की गड़बडिय़ों को सुधारा जा सके।
सरकार के लिए यह अवसर एक तीर से दो निशाने साधने का था। महामारी के दौर में विदेशों से भारतीयों को वापस लाने के अधिकार विशिष्ट रूप से एयर इंडिया के पास थे जिससे उसका काम भी बढ़ा और प्रतिफल में भी सुधार हुआ। इस अप्रत्यक्ष सब्सिडी ने भी एयर इंडिया के घाटे को निरंतर फंड की जरूरत को पूरा किया। इससे एयर इंडिया तथा उसके नए मालिक को यह अवसर भी मिल गया कि वह अपने पुराने पड़ रहे बेड़े को जल्दी से बदल सके तथा नए सिरे से तैयार कर सके।
गत सप्ताह जारी नागरिक उड्डयन मंत्रालय के एक परिपत्र में कहा गया कि तयशुदा अंतरराष्ट्रीय उड़ानें 15 दिसंबर से शुरू की जाएंगी। हालांकि ब्रिटेन, चीन, दक्षिण अफ्रीका और हॉन्गकॉन्ग समेत 12 जोखिम वाले देशों की उड़ान अभी स्थगित रहेंगी। परंतु अगले ही दिन कोरोना के नए प्रकार ओमीक्रोन को लेकर बढ़ती चिंताओं के बीच प्रधानमंत्री ने कहा कि उड़ान की नई व्यवस्था की समीक्षा की जाएगी और स्थगन बढ़ाना पड़ा। यह बात इसलिए महत्त्वपूर्ण है क्योंकि पहले ही दिल्ली स्थित विदेशी दूतावास तथा वाणिज्य दूतावास, दिवेशी विमानन कंपनियां आदि भारत के इस कड़े रुख का विरोध कर रहे हैं। भारत विभिन्न सरकारों के इस भारी-भरकम कूटनीतिक दबाव से किस प्रकार निपटता है यह देखने वाली बात होगी।
मौजूदा एयर बबल समझौते उड़ानों की क्षमता और आवृत्ति दोनों को सीमित करने वाले हैं। वे विदेशी विमानन कंपनियों को यह इजाजत भी नहीं देते कि वे भारतीय पासपोर्टधारकों को लाने ले जाने का काम करें। यात्रियों की तादाद में इजाफा होने के साथ ही दुनिया भर की विमानन कंपनियों को डर है कि उन्हें भारत से बाहर जाने वाले यात्रियों की बड़ी तादाद तक पहुंच बनाने का अवसर नहीं मिलेगा। यदि ऐसा हुआ तो उनकी पहुंच पश्चिम एशिया और यूरोप के लिए भी सीमित होगी।
एयर इंडिया को अपनी सेवाओं में सुधार करने की आवश्यकता तो है ही, इसके साथ ही उसे नए विमानों की भी आवश्यकता है ताकि वह उत्तर अमेरिका तथा यूरोप के अपने मौजूदा तथा नए ठिकानों तक अंतरराष्ट्रीय उड़ानों को संचालित कर सके। बड़े आकार के विमान पट्टे पर उपलब्ध हैं लेकिन यह निर्भर करेगा कि टाटा समूह कितनी तेजी से आगे बढ़ सकता है।
कुल मिलाकर भारत सरकार शायद निर्धारित विमान यात्राओं को टालने के मामले में लंबे समय तक दबाव का सामना न कर सके। 15 दिसंबर की समय सीमा के अनुसार संभव है कि सरकार केवल तब तक प्रतीक्षा करे जब तक कि एयर इंडिया को औपचारिक हस्तांतरण पूरा नहीं हो जाता।
चाहे जो भी हो, इस अवधि ने एक दिलचस्प स्थिति पैदा कर दी है। खासतौर पर ऐसे समय पर जबकि विनियमन या मुक्त आकाश नीतियां मानक बनती जा रही हैं। जबकि पहले मामला देशों के बीच द्विपक्षीय समझौते होते थे।
विरासत बनाम नई शुरुआत: सस्ती विमानन सेवाएं एक दशक से कुछ अधिक समय से राज कर रही हैं। इंडिगो का जबरदस्त उभार और जेट एयरवेज का पतन सस्ती विमानन सेवा मॉडल के उभार और पूर्ण सेवा मॉडल के पराभव का सबसे बड़ा उदाहरण है। कारोबारी यात्रियों समेत अधिकांश यात्रियों ने तौलिये, गर्म भोजन और लॉयल्टी प्वाइंट वाली महंगी विमान सेवाओं के बजाय विश्वसनीय, किफायती और आरामदेह विकल्प को प्राथमिकता दी। यहां सवाल यह उठता है कि आकाश अपनी जगह कैसे बनाएगी? क्या उसके पास यह विकल्प है कि वह किफायती दरों पर यात्रियों को नियमित रूप से विश्वसनीय तथा आरामदेह सफर मुहैया करा सके? अधिकांश घरेलू विमानन कंपनियां इसी मोर्चे पर नाकाम रही हैं।
एक बात तय है: आकाश को उस गलती से बचना होगा जो टाटा नैनो ने उस समय की थी जब वह एक लाख रुपये मूल्य को लेकर कुछ ज्यादा ही गंभीर हो गई थी। उसे कीमत को प्रतिस्पर्धी रखना होगा और साथ ही शायद उसे मूल्य तैयार करने को लेकर भी गंभीरता बरतनी होगी।
आकाश के सामने असली चुनौती होगी इंडिगो के लागत ढांचे की बराबरी कर पाना जो अपनी किफायत और पैमाने के लिए पूरे विमानन उद्योग में मानक माना जाता है। उसके मौजूदा प्रतिद्वंद्वियों का लागत ढांचा भी इंडिगो से कम से कम 20 फीसदी अधिक है।
आकाश को नई शुरुआत करने का लाभ अवश्य मिल सकता है। बोइंग 737 मैक्स के रूप में एक ही प्रकार के विमान, पायलटों के साथ अधिक संतुलित वेतन समझौता, पट्टे किराये तथा ईंधन को लेकर अधिक किफायती ढांचा, एक प्रत्यक्ष ऑनलाइन वितरण मॉडल और चतुराईपूर्ण मार्केटिंग आदि उसके पक्ष में होंगे। आकाश में दुबे की पेशेवर टीम को सर्वाधिक चुनौतीपूर्ण उद्योगों में से एक में नई विमानन कंपनी की स्थापना की राह निकालनी होगी।
(लेखक फाउंडिंग फ्यूल के सह-संस्थापक हैं)
