केंद्रीय मंत्रिमंडल में होने वाला बदलाव आम तौर पर प्रधानमंत्री की मिश्रित प्राथमिकताओं मसलन गठबंधन की अनिवार्यता, राजनीतिक सीमा, जातीय गणित और जवाबदेही तथा क्षमताओं आदि को ही दिखाता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दूसरे कार्यकाल के इस पहले मंत्रिमंडल फेरबदल को भी अपवाद नहीं माना जा सकता। इस फेरबदल के बाद भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) की भविष्य की राजनीतिक दिशा की पड़ताल भी होगी और इस पर भी चर्चा होगी कि प्रधानमंत्री हालिया नीति की प्रभाव क्षमता के बारे में क्या सोचते हैं। इस नजरिये से देखें तो कोविड-19 महामारी की निरंतर छाया में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री और स्वास्थ्य राज्य मंत्री की विदाई एक बानगी है। महामारी के बीच ऐसे अहम मंत्रालय को नए मंत्री के हवाले करने के जोखिम को इस स्वीकारोक्ति के रूप में देखा जाना चाहिए कि मंत्रियों का प्रदर्शन अच्छा नहीं था। न केवल महामारी की दूसरी लहर के लिए देश की तैयारी अधूरी थी बल्कि टीकाकरण में भी देर हुई और अब कई लोग सवाल कर रहे हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने भी आपूर्ति की बाधाओं और वितरण की दिक्कतों पर प्रश्न उठाए हैं। ऐसे में महामारी से निपटने के लिए नए मंत्री की नियुक्ति का कई लोग स्वागत करेंगे।
गृह, वित्त, रक्षा और विदेश मंत्रालय जैसे अहम मंत्रालयों में कोई परिवर्तन नहीं दिखा। परंतु अन्य बड़े बदलाव अपनी कहानी स्वयं कहते हैं। मसलन संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय को भी नया मंत्री मिलेगा। यह बदलाव उस समय हो रहा है जब सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम के हालिया नियमों की काफी आलोचना हो रही है और मंत्रालय कई सोशल मीडिया कंपनियों के साथ टकराव की राह पर है। देखना होगा कि मंत्री बदलने के बाद कुछ शांति होगी और किसी तरह की सहमति बनेगी या नहीं। शिक्षा मंत्रालय भी नए मंत्री के अधीन होगा। इस मंत्रालय के कैबिनेट और राज्य मंत्री दोनों ने इस्तीफा दे दिया है। यहां भी राष्ट्रीय शिक्षा नीति को हाल में काफी आलोचना का सामना करना पड़ा। आशा है कि यहां भी नई टीम किसी समझौते पर पहुंचेगी। सकारात्मक बात यह है कि प्रधानमंत्री ने इन तथा अन्य पिछड़ रहे मंत्रालयों को नया नेतृत्व प्रदान किया है।
कुछ बदलाव यकीनन मंत्रालयों की क्षमता में सुधार करेंगे। उदाहरण के लिए सार्वजनिक उपक्रम विभाग को वित्त मंत्रालय के अधीन लाया गया है। इससे विनिवेश कार्यक्रम को गति मिलने की आशा है। परंतु ऐसे कदमों पर राजनीतिक प्रश्न उठना भी लाजिमी है।
कुछ राज्यों का प्रतिनिधित्व पूरी तरह बदल गया है। कई बार यह स्थानीय राजनीति में हलचल लेकर आता है। उदाहरण के लिए पश्चिम बंगाल से चार नए चेहरे मंत्रिमंडल में शामिल किए गए हैं। इनमें से तीन उत्तरी बंगाल की जनजातियों, उसी क्षेत्र के राजवंशी समुदाय और प्रभावशाली मतुआ समुदाय का प्रतिनिधित्व करते हैं। मतुआ समुदाय हालिया विधानसभा चुनवों में भाजपा के प्रति वफादार रहा था। अन्य राज्यों के प्रतिनिधित्व में भी ऐसे ही राजनीतिक विचार विमर्श को देखा जा सकता है। मंत्रिपरिषद के विस्तार के बाद भाजपा के गठबंधन साझेदारों का प्रतिनिधित्व भी बढ़ा है। कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हुए बड़े नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया को भी मंत्रिमंडल में शामिल किया गया है।
कुल मिलाकर आशा की जानी चाहिए कि मंत्रिमंडल में यह फेरबदल मोदी सरकार के अगले चरण की दिशा तय करेगा तथा नई राह अधिक समावेशी, आपसी सहमति से काम करने वाली तथा ज्यादा सक्षम होगी।