जब मैंने समाचारों में देखा कि आईआईएम और आईआईटी जैसे हमारे उच्च शिक्षण संस्थान ही नहीं बल्कि हार्वर्ड और एमआईटी जैसे बड़े परिसर वाले विश्वविद्यालय भी पूरी तरह ऑनलाइन शिक्षा की दिशा में बढ़ रहे हैं, तो मैं अपनी हंसी बमुश्किल रोक पाया।
मुझे हंसी क्यों आई? करीब 10 वर्ष पहले मैं देश के शिक्षा मंत्रालय (एमएचआरडी) की ऑनलाइन शिक्षा संबंधी समिति का अध्यक्ष था। समिति ने जोर देकर कहा था कि हमें तत्काल ऑनलाइन और वेब आधारित शैक्षणिक तौर तरीके अपनाने चाहिए। समिति ने यह भी कहा था कि आईआईटी और आईआईएम के शीर्ष प्रोफेसरों के उच्च गुणवत्ता वाले व्याख्यान देश के अन्य इंजीनियरिंग तथा प्रबंध संस्थानों के छात्रों को भी उपलब्ध होने चाहिए। उस वक्त मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों ने मेरे गंभीर प्रयासों के लिए धन्यवाद दिया लेकिन मेरी रिपोर्ट को दिल्ली स्थित मंत्रालय के मुख्यालय के पुस्तकालय में धूल फांकने के लिए रख दिया गया। उस समय मैं आईआईएम कलकत्ता के बोर्ड का चेयरमैन था। उसने कामकाजी पेशेवरों के लिए ऑनलाइन पाठ्यक्रम की शुरुआत की लेकिन उसका प्रमुख पाठ्यक्रम यानी प्रबंधन में दो वर्ष का स्नातकोत्तर डिप्लोमा पूरी तरह आवासीय था और उसके छात्रों को पूरा समय परिसर में रहना जरूरी था। मैंने अपनी हंसी को तत्काल रोक क्यों लिया? उस समय यह बात कही नहीं गई लेकिन उस समय भी मेरे दिमाग में यह बात थी कि शायद इन शीर्ष शैक्षणिक संस्थानों की अर्थव्यवस्था उनके पाठ्यक्रम की पूरी तरह आवासीय प्रकृति पर निर्भर करती थी। छात्र और उनके माता-पिता अच्छी खासी धनराशि देने को तैयार थे क्योंकि पाठ्यक्रम के लिए वहीं रहना जरूरी था। पढ़ाई यानी अध्ययन को केवल जटिल तकनीकी कौशल में दक्षता हासिल करना नहीं माना जाता बल्कि यह अन्य संस्कृतियों और जीवनशैलियों को जानने और ताउम्र चलने वाली दोस्तियां बनाने का अवसर भी है।
यह बात एक तरह से सही भी है। सन 1971 में केरल के एक छोटे से कस्बे से स्कूल और कॉलेज की पढ़ाई पूरी करने के बाद जब मैं आईआईएम कलकत्ता गया तो मैं पहली बार किसी बंगाली, सिख, असमी तथा अन्य लोगों से मिला। ऐसी जगहों पर जाकर आपको अन्य संस्कृतियों की बातें पता चलती हैं। मैंने वहां जाकर रवींद्र संगीत क रूप में पहली बार ऐसा दूसरा संगीत देखा जो मेरी भाषा के संगीत से प्रतिस्पर्धा कर सकता था। ऐसी जगह जाकर आप शैक्षणिक स्तर पर भी अपनी कक्षा के अन्य बच्चों के साथ अकादमिक रूप से प्रतिस्पर्धा कर सकते हैं। अगर मैंने कन्नूर के अपने घर में बैठकर ऑनलाइन पढ़ाई की होती तो मैं जीवन के इतने बड़े अनुभवों से वंचित नहीं रह जाता?
क्या विश्व के शीर्ष शैक्षणिक संस्थानों द्वारा अचानक ऑनलाइन पढ़ाई का रुख करना फौरी बदलाव है और बाद में वे दोबारा पारंपरिक परिसर आधारित शिक्षा पर लौट जाएंगे? गत माह लंदन के प्रतिष्ठित टाइम्स हायर एजुकेशन ने दुनिया के 53 देशों के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों के 200 विद्वानों पर एक सर्वे किया। इनमें यूरोप और अमेरिका के साथ चीन और भारत जैसे देश शामिल थे। सवाल था: क्या आपके विश्वविद्यालय में अगले पांच वर्ष में पूर्णकालिक ऑनलाइन डिग्री पाठ्यक्रम बढ़ेंगे? जवाब में 85 फीसदी लोगों ने माना कि ऐसा होगा।
एक और पहलू है जहां विशुद्ध ऑनलाइन शिक्षा दुनिया भर में मौजूदा कॉलेज आधारित शिक्षा व्यवस्था को प्रभावित कर सकती है। अमेरिका और ब्रिटेन के विश्वविद्यालयों को वित्तीय रूप से व्यवहार्य बने रहने के लिए विदेशी विद्यार्थियों, खासकर चीन और भारत के विद्यार्थियों की आवश्यकता है। ये विश्वविद्यालय अपने छात्रों की तुलना में विदेशी छात्रों से कई गुना अधिक शुल्क लेते हैं। अधिक शुल्क देने वाले विद्यार्थी अच्छीखासी तादाद में हैं। न्यूयॉर्क के न्यू स्कूल में 31 फीसदी, फ्लोरिडा इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्रॉलजी में 28 फीसदी, न्यूयॉर्क के रोचेस्टर विश्वविद्यालय में 27 फीसदी, कार्नेगी मेलन विश्वविद्यालय में 22 फीसदी, बॉस्टन विश्वविद्यालय में 21 फीसदी विदेशी विद्यार्थी हैं।
क्या ऐसे विदेशी विद्यार्थी पाठ्यक्रम के पूरी तरह ऑनलाइन होने और अपने देश से ही पढ़ाई करने की सुविधा होने के बाद भी इन विश्वविद्यालयों में रुचि दिखाएंगे? ऐसे अधिक शुल्क देने वाले विद्यार्थियों को गंवाने की आशंका से ही उस समय हड़कंप मचा जब ट्रंप प्रशासन ने यह घोषणा की कि अमेरिका में रहने वाले जिन विदेशी छात्रों के पाठ्यक्रम ऑनलाइन हो चुके हैं उनका वीजा रद्द कर दिया जाएगा और उन्हें तत्काल अमेरिका छोडऩा होगा। अमेरिकी विश्वविद्यालयों ने इतना दबाव बनाया कि ट्रंप प्रशासन को उक्त आदेश वापस लेना पड़ा। ऑनलाइन शैक्षणिक पाठ्यक्रम प्लेटफॉर्म मसलन मूक (मैसिव ओपन ऑनलाइन कोर्स) काफी समय से हैं और वेंचर कैपिटलिस्ट के पसंदीदा हैं। कोर्सेरा, खान अकादमी और यूडीमाई आदि अमेरिका के कुछ उदाहरण हैं। जबकि चीन में आधा दर्जन से अधिक सूचीबद्ध एडटेक साइट हैं। ऑनलाइन टेस्ट की तैयारी कराने वाली वेबसाइट भारत में भी बच्चों को कोचिंग दे रही हैं और यह कारोबार खूब फलफूल रहा है। बायजू, टॉपर और वेदांतु आदि इसके उदाहरण हैं और अनुमान है कि तीन अरब डॉलर से अधिक की वेंचर फंडिंग इस क्षेत्र को मिल चुकी है।
क्या ऑनलाइन पढ़ाई हर विषय और पाठ्यक्रम में अनिवार्य हो जाएगी या चुनिंदा में? टाइम एजुकेशन के उसी सर्वेक्षण पर प्रतिक्रिया देने वालों ने कहा कि कंप्यूटर विज्ञान, कारोबारी प्रशासन, सामाजिक अध्ययन और विधि विषयों की पढ़ाई को ऑनलाइन करना अन्य विषयों की अपेक्षा अधिक आसान होगा। उन्होंने कहा कि चिकित्सा, दंत चिकित्सा, जीव विज्ञान और पशुचिकित्सा आदि विषयों की ऑनलाइन पढ़ाई करना सबसे मुश्किल होगा।
एक ओर जहां हम सभी इस बात को लेकर चिंतित हैं कि कोविड-19 के कारण लागू लॉकडाउन तथा उच्च शिक्षा को को ऑनलाइन करना उसके भविष्य को किस प्रकार प्रभावित करेगा, वहीं इस सवाल को भी दरकिनार नहीं किया जा सकता है कि क्या हम कुछ ज्यादा ही हो हल्ला कर रहे हैं और यह महामारी जल्दी समाप्त हो जाएगी तथा जीवन एक बार फिर पुराने ढर्रे पर लौट जाएगा? हाल मेंं आए आलेख और किताबों का कहना है कि सन 1347 में आई बुबोनिक प्लेग, जिसने यूरोप की एक तिहाई इंसानी आबादी खत्म कर दी थी, उसके बाद श्रमिकों का मेहनताना इतना बढ़ गया कि इसके चलते श्रम की बचत करने की दृष्टि से औद्योगिक क्रांति हुई।
(लेखक इंटरनेट उद्यमी हैं और भारत सरकार की केंद्रीय शिक्षा सलाहकार परिषद में रह चुके हैं)
