गत सप्ताह लखनऊ में संपन्न वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) परिषद की 45वीं बैठक में कई महत्त्वपूर्ण निर्णय लिए गए और दो ढांचागत सुधारों की दिशा में पहल की गई। परिषद ने कुछ औषधियों मसलन कोविड-19 की चिकित्सा में काम आने वाली दवा रेमडेसिविर के लिए रियायती दरों की अवधि बढ़ा दी है। परिषद ने कुछ अन्य दवाओं मसलन इटोलिजुमैब और पोसाकोनाजोल की शुल्क दरें भी दिसंबर तक कम कर दी हैं। चूंकि महामारी के दिसंबर तक समाप्त होने की आशा नहीं है इसलिए परिषद रियायत को आसानी से इस वित्त वर्ष के अंत तक बढ़ा सकती थी। उसने वस्त्र और फुटवियर उद्योग में व्युतक्रम शुल्क ढांचे को सही करने का निर्णय भी लिया। इस विषय पर पहले की बैठकों में चर्चा हो चुकी थी। परिषद ने विभिन्न क्षेत्रों में व्युतक्रम शुल्क ढांचे के परीक्षण और अनुपालन में सुधार के लिए तकनीक के प्रयोग के परीक्षण के लिए दो मंत्रिसमूह बनाने का भी निर्णय लिया। इन समूहों के निष्कर्षों की मदद से जीएसटी ढांचे को सुसंगत बनाने और अनुपालन सुधारने में मदद मिलनी चाहिए जिससे समय के साथ राजस्व संग्रह में सुधार होगा। बहरहाल, ऑनलाइन फूड डिलिवरी करने वाली कंपनियों को रेस्टोरेंट की ओर से जीएसटी चुकाने को कहना अनुपालन का बोझ बढ़ाएगा और इससे बचा जाना चाहिए था।
परिचालन संबंधी मामलों के अलावा केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने दो अन्य महत्त्वपूर्ण ढांचागत मसलों के बारे में भी बात की। पहली बात, मंत्री ने कहा कि राज्यों को दी जाने वाली क्षतिपूर्ति जून 2022 से आगे नहीं बढ़ाई जाएगी। जीएसटी के क्रियान्वयन के समय यह निर्णय लिया गया था कि राज्यों को पांच वर्ष तक राजस्व संग्रह में कमी के लिए 14 फीसदी वार्षिक वृद्धि के साथ हर्जाना दिया जाएगा। कुछ गैर राजग शासित राज्य इस अवधि में विस्तार के पक्ष में थे। हर वर्ष 14 फीसदी की दर से वृद्धि वाली गारंटीशुदा क्षतिपूर्ति शुरुआत से ही अव्यावहारिक विचार था। अनुमान था कि जीएसटी से राजस्व बढ़ेगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ। लगातार दूसरे वर्ष राज्यों की क्षतिपूर्ति बाजार उधारी के माध्यम से की जा रही है। जून 2022 के बाद इस उधारी को उपकर संग्रह से चुकाया जाएगा। क्षतिपूर्ति प्रणाली को जून 2022 के बाद बढ़ाने से जीएसटी प्रणाली और जटिल होगी क्योंकि क्षतिपूर्ति उपकर संग्रह का इस्तेमाल कर्ज चुकाने के लिए किया जाएगा। क्षतिपूर्ति उपकर संग्रह अवधि में विस्तार उन वस्तुओं को प्रभावित करेगा जिन पर यह लगाया गया है। कंपनियों को अपनी कारोबारी योजना उसके अनुसार निर्धारित करनी होगी। बुनियादी ढांचागत समस्या है कम राजस्व संग्रह और यहीं पर वित्त मंत्री द्वारा उल्लिखित दूसरा बिंदु महत्त्वपूर्ण हो जाता है।
सीतारमण ने कहा कि क्रियान्वयन के समय राजस्व प्रतिपूर्ति दर 15 फीसदी थी। लेकिन अब वह कम होकर 11.6 फीसदी रह गई है। दरों में समयपूर्व कमी के लिए व्यापक तौर पर राजनीतिक कारण उत्तरदायी हैं और इसका असर राजस्व संग्रह पर पड़ा है। जैसा कि 15वें वित्त आयोग की रिपोर्ट ने दर्शाया 2016-17 में जीएसटी में शामिल करों से तुलना करने पर वर्ष 2019-20 में जीएसटी राजस्व सकल घरेलू उत्पाद के संदर्भ में एक फीसदी से अधिक कम था। परिषद को सबसे पहले कोशिश करनी चाहिए कि यथाशीघ्र राजस्व प्रतिपूर्ति दर पर वापसी की जाए और कर स्लैब कम किए जाएं। राजस्व की कमी के लिए क्षतिपूर्ति बढ़ाना दीर्घकालिक उपाय नहीं है। कम संग्रह केंद्र सरकार की वित्तीय स्थिति को भी प्रभावित करता है और कम हस्तांतरण के रूप में उसका राज्यों पर भी अप्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है। अब परिषद को जीएसटी प्रणाली को मजबूत बनाने पर काम करना चाहिए। कम जीएसटी संग्रह भी एक वजह है जिसके चलते राजस्व के लिए पेट्रोलियम उत्पादों पर निर्भरता बढ़ी है और उन्हें जीएसटी के दायरे में नहीं लाया जा सका है।
