भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने करीब एक महीने पहले वित्तीय सेवा कंपनियों के अंकेक्षण (ऑडिट) से जुड़ी बुनियादी शर्तों में बदलाव किया था। ये शर्तें बड़े आकार वाली वित्तीय सेवा कंपनियों से संबंधित थीं। आरबीआई के इस कदम से कुछ चिंताएं उत्पन्न हुई हैं और हाल के कुछ हफ्तों में इन पर चर्चाएं तेज हो गई हैं। इसमें कोई संदेह नहीं कि आरबीआई की मंशा तार्किक है और नियमों में बदलाव स्पष्ट और सरल हैं, लेकिन मुख्य चिंता यह जताई जा रही है कि ये नियम क्रियान्वयन के लिहाज से कठिन, अधिक खर्चीले और पेचीदा होंगे। नए नियमों में निहित सिद्धांतों का सफल क्रियान्वयन कैसे किया जाए इसे सूक्ष्मता से समझने के लिए बैंकिंग नियामक को अंकेक्षण कंपनियों और बड़ी वित्तीय कंपनियों के साथ मिलकर चर्चा करनी होगी।
गत 27 अप्रैल को जारी आरबीआई के परिपत्र में कहा गया है कि 1,000 करोड़ रुपये से अधिक परिसंपत्ति वाली वित्तीय सेवा कंपनियों का अंकेक्षण करने वाले अंकेक्षणकर्ता (ऑडिटर) की जगह प्रत्येक तीन वर्ष बाद नए अंकेक्षणकर्ता की नियुक्ति की जानी चाहिए। परिपत्र में यह भी कहा गया कि उसी संस्थान से दोबारा जुडऩे में कम से कम छह वर्ष का अंतराल होना चाहिए। 15,000 करोड़ रुपये से अधिक आकार वाली बड़ी कंपनियोंं को संयुक्त अंकेक्षण कराना होगा और दो या इससे अधिक ऑडिट कंपनियां इस कार्य को पूरा करेंगी ताकि बहीखाते अच्छी तरह से खंगाले जा सकें। अंकेक्षण कंपनियों की दूसरी गतिविधियों पर भी पाबंदी लगाई गई है। इनमें कंपनियों एवं संबंधित इकाइयों को मुहैया की जाने वाली गैर-अंकेक्षण सेवाएं पर भी पाबंदी लगा दी गई है। ये बदलाव 2021-22 से क्रियान्वित होने थे। स्पष्ट है कि आरबीआई के इस परिपत्र के बाद तथाकथित चार बड़ी अंकेक्षण कंपनियों के लिए कारोबारी अवसर कम हो जाएंगे। इनमें कुछ कंपनियां अपनी गैर-अंकेक्षण सलाहकार गतिविधियों पर अधिक ध्यान केंद्रित करेंगी। ऐसा नहीं कि नियमों में संशोधन से केवल अंकेक्षणकर्ता ही परेशान हैं। भारत में गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों का प्रतिनिधित्व करने वाली वित्त उद्योग विकास परिषद ने नए नियमों के क्रियान्वयन की समय सीमा बढ़ाकर 2022-23 तक करने का अनुरोध किया है। भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) ने भी तर्क दिया है कि चालू वित्त वर्ष के लिए कोई नियम पिछली तारीख से लागू करना अनुचित होगा।
सीआईआई का यह भी कहना है कि बड़ी कंपनियों खासकर उद्योग समूहों को नए नियमों के तहत अंकेक्षणकर्ताओं की संख्या में काफी बढ़ोतरी करनी होगी लेकिन वर्तमान स्थिति में ऐसा नहीं हो सकता। सीआईआई ने विभिन्न समूहों की कंपनियों के अंकेक्षणकर्ताओं के बीच समन्वय के अभाव की ओर भी ध्यान खींचा है। ये चिंताएं उचित हैं और आरबीआई को इन पर अवश्य विचार करना चाहिए। नए नियम लागू करने की समय-सीमा और बढ़ाई जा सकती है। हालांकि बड़े बिंदुओं पर अवश्य विचार किया जाना चाहिए। अगर आरबीआई ने अंकेक्षण पेशे में क्षमता विस्तार पर विशेष ध्यान देते हुए ये दिशानिर्देश जारी किए हैं तो उसे अपनी बातें और निष्कर्ष साझा करने चाहिए ताकि कंपनियों और उद्योग संघों द्वारा उठाई गई इन चिंताओं को दूर किया जा सके। अगर नहीं तो इस नीति की दोबारा समीक्षा की जानी चाहिए। अगर अंकेक्षण कार्यों का दायरा बढ़ाया जाए और गैर-अंकेक्षण शुल्क पर निर्भरता कम की जाए तो एक अच्छी बात होगी। हालांकि यह कार्य चुटकी बजाते पूरा नहीं हो सकता है। इस दिशा में आगे बढऩे के लिए एक स्पष्ट योजना की आवश्यकता होगी, जिसमें अंकेक्षणकर्ताओं की उपलब्धता पर विचार किया जाएगा। आरबीआई अतिरिक्त कार्य कर सकता है और उसे अवश्य करना चाहिए अन्यथा नए संशोधित दिशानिर्देश विफल साबित हो जाएंगे।
