इस समाचारपत्र में 14 जुलाई को प्रकाशित एक खबर के मुताबिक आयकर विभाग में मुख्य आयुक्त स्तर के करीब 80 फीसदी पद कई महीनों से रिक्त थे। उनमें से कई रिक्तियां करीब साल भर से नहीं भरी गईं। इसका मतलब है कि मुख्य आयकर आयुक्तों के 91 स्वीकृत पदों में से सिर्फ 18 पर ही तैनाती थी। इन्हीं लोगों को रिक्त आयुक्तों के अधिकार-क्षेत्र में आने वाली जिम्मेदारियों का भी निर्वहन करना था।
रिक्तियों की समस्या न सिर्फ आयकर विभाग के दूसरे सर्वोच्च पद के स्तर पर देखने को मिलीं बल्कि आयुक्त स्तर पर भी बहुत सारे पद खाली थे। आयुक्त और उससे ऊपर के स्तर के करीब 400 पद रिक्त थे। हालांकि गत 26 जुलाई को मुख्य आयुक्त स्तर के कुल रिक्त पदों में से करीब 80 फीसदी पद एक विभागीय आदेश से भर दिए गए। लेकिन इसके बावजूद अब भी कई पद खाली पड़े हुए हैं। बहरहाल शीर्ष स्तर के पदों का इतने बड़े पैमाने पर रिक्त रहना किसी भी सरकारी विभाग के लिए बहुत बड़ी बात है।
क्या वित्त मंत्रालय को मुख्य आयुक्त स्तर के 80 फीसदी पद कई महीनों तक खाली रखते हुए आयकर विभाग चलाने को लेकर फिक्रमंद होना चाहिए? इस सवाल का जवाब कई तरह से दिया जा सकता है।
अगर आप आयकर विभाग के प्रदर्शन पर नजर डालें तो लगता है कि इन पदों के रिक्त रहने का कम-से-कम प्रत्यक्ष कर संग्रह पर कोई असर नहीं पड़ा है। महामारी की वजह से वित्त वर्ष 2020-21 में आर्थिक गतिविधियों पर पड़े प्रतिकूल असर के बावजूद आयकर विभाग द्वारा किए गए प्रत्यक्ष कर संग्रह में करीब 10 फीसदी का संकुचन देखा गया था। यहां पर हमें ध्यान रखना होगा कि वर्ष 2019-20 में महामारी का कोई असर न होने और आयकर विभाग में शीर्ष स्तर पर भारी रिक्तियां नहीं होने पर भी प्रत्यक्ष कर संग्रह 2018-19 की तुलना में करीब 9 फीसदी गिरा था।
लेकिन वर्ष 2021-22 की पहली तिमाही में जब आयकर विभाग में शीर्ष पदों पर बहुत सारे पद खाली पड़े हुए थे, तब शुद्ध प्रत्यक्ष कर संग्रह 92 फीसदी तक बढ़ गया। इस अवधि में रिफंड की मात्रा 40 फीसदी तक गिरकर 36,000 करोड़ रुपये पर आ गई जबकि वर्ष 2020-21 की पहली तिमाही में यह 60,595 करोड़ रुपये रही थी। इस तरह समग्र राजस्व संग्रह में वृद्धि केवल 49 फीसदी ही रही। लेकिन इस स्थिति में भी राजस्व संग्रह में जबरदस्त वृद्धि हुई।
हालांकि आंकड़ों पर ज्यादा ध्यान देने वाले लोग पिछले वित्त वर्ष की अंतिम तिमाही और महामारी से सबसे ज्यादा प्रभावित रही इस साल की पहली तिमाही के बीच तुलना कर सकते हैं। उनके लिए आंकड़ा यह है कि रिफंड के बाद का शुद्ध प्रत्यक्ष कर संग्रह अप्रैल-जून 2021 की अवधि में एक साल पहले की तुलना में 43 फीसदी अधिक रहा।
ऐसे में सवाल खड़ा होता है कि आयकर विभाग में शीर्ष पदों के खाली होने का क्या प्रत्यक्ष कर संग्रह पर वाकई में कोई असर पड़ा? यह तर्क दिया जा सकता है कि रिक्तियों का प्रदर्शन पर प्रतिकूल असर तभी पड़ता है जब वे लंबे समय तक खाली पड़ी रहें। यह भी ध्यान रखने वाली बात है कि ऐसी रिक्तियों का विभाग के कर संग्रह प्रदर्शन पर प्रतिकूल असर उस समय कम होगा जब अर्थव्यवस्था गहरे संकुचन के बाद वापसी कर रही हो। आखिर प्रत्यक्ष कर और वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) दोनों ने ही पहली तिमाही में बहुत अच्छा प्रदर्शन किया है, चाहे उसकी तुलना अप्रैल-जून 2019 की अवधि से ही क्यों न की जाए जब महामारी का वजूद भी नहीं था।
अब जरा इन दूसरे पहलुओं पर भी गौर कीजिए। सरकार ने करदाताओं के साथ भौतिक संपर्क को काफी हद तक कम करने के लिए तकनीक का सहारा लिया है। इस वजह से पहचान रहित जांच एवं कर आकलन अब कहीं अधिक तेजी से हो पाता है जिसमें कम कर्मचारियों की दरकार होती है। कर रिटर्न की शुरुआती प्रोसेसिंग को तकनीक की ही मदद से अंजाम दिया जाता है। अब इसकी अधिक संभावना है कि मानव संपर्क और कम करने के लिए तकनीक का ज्यादा इस्तेमाल किया जाए। वैश्विक स्तर पर प्रत्यक्ष कर विभाग में तैनात अधिकारियों की संख्या में कटौती का रुख देखा गया है। फिर भारत किस तरह इसका अपवाद हो सकता है?
वर्ष 2018-19 के आंकड़े बताते हैं कि कुल प्रत्यक्ष कर प्राप्तियों का 37 फीसदी सरकार को स्रोत पर कर कटौती के माध्यम से ही मिला। बाकी 40 फीसदी राजस्व कंपनियों एवं व्यक्तिगत करदाताओं से अग्रिम कर भुगतान के तौर पर आया। पिछले कई वर्षों से यही रुझान रहा है। ऐसे में इसका परीक्षण करना तर्कसंगत होगा कि आयकर विभाग में तैनात कर्मचारियों की बड़ी तादाद की क्या वाकई में जरूरत है? इसके साथ ही हमें यह भी परखना होगा कि विभाग की मौजूदा टीम को अपनी ऊर्जा क्या कर संग्रह एवं प्रशासन के दूसरे पक्षों पर ठीक से ध्यान देने में लगानी चाहिए?
लेकिन केंद्रीय वित्त मंत्रालय में जो कुछ हुआ है वह तो बेहद अनूठा है। शीर्ष स्तर के पद कई महीनों तक खाली रहने से वरिष्ठ स्तर के अधिकारियों की संख्या कम हो गई। हालांकि प्रत्यक्ष कर विभाग के कुल कर्मचारियों की संख्या में सिर्फ एक साल के भीतर नाटकीय बढ़ोतरी देखने को मिली है। मार्च 2019 की शुरुआत में प्रत्यक्ष कर विभाग में करीब 47,000 लोग तैनात थे। एक साल बाद यह संख्या 66 फीसदी से भी ज्यादा बढ़कर 78,000 के ऊपर पहुंच गई। संभवत: यह बढ़ोतरी आयकर विभाग में कनिष्ठ स्तर के कर्मचारियों की संख्या बढऩे की वजह से हुई है। हालांकि इससे परेशान करने वाला एक और सवाल खड़ा होता है कि क्या इसने आयकर विभाग की संरचना को दुरुस्त किया है या बिगाड़ दिया है?
यह सच है कि पिछले दो दशकों में आयकर विभाग ने प्रत्यक्ष कर संग्रह पर आने वाली लागत कम करने के मामले में काफी अच्छा काम किया है। कर संग्रह पर इसका व्यय वर्ष 2000-01 में कुल प्रत्यक्ष कर प्राप्तियों का 1.36 फीसदी हुआ करता था लेकिन यह 2018-19 में घटकर सिर्फ 0.62 फीसदी हो गया। लेकिन यह गिरावट इस अवधि में प्रत्यक्ष कर संग्रह में हुई भारी बढ़ोतरी की पृष्ठभूमि में आई है और तकनीक के इस्तेमाल ने भी संग्रह की लागत कम करने में भूमिका निभाई है। शायद प्रत्यक्ष कर संग्रह पर खर्च कम करने की अब भी गुंजाइश है, खासकर जब 77 फीसदी कर संग्रह स्रोत पर कर एवं स्वैच्छिक भुगतान से ही होता है।
ऐसे में आयकर विभाग के रिक्त पदों को भरने की फिक्र करने के बजाय वित्त मंत्रालय को इस पर चर्चा करनी चाहिए कि वह आयकर विभाग की शीर्ष टीम के कामकाज को किस तरह चाक-चौबंद कर सकता है, इन पदों को अधिक असरदार बनाने के लिए किस तरह पुनर्नियोजित किया जा सकता है और आयकर विभाग के श्रमबल का इस्तेमाल किस तरह किया जा सकता है एवं अतिरिक्त संख्या पाए जाने पर उन्हें कैसे दूसरी जगह तैनात किया जा सकता है? संभवत: यह कवायद आयकर विभाग में बाकी बचे खाली पदों को भरने की असली जरूरत की समीक्षा के साथ ही शुरू हो सकती है।
