भारत ने हाल ही में ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल का नौसेना संस्करण फिलिपींस को बेचने में कामयाबी हासिल की है। इससे देश के रक्षा निर्यात क्षेत्र को अहम गति मिली है। यह क्रूज मिसाइल भारत और रूस का संयुक्त उपक्रम है और इसमें 70 फीसदी योगदान भारत का है। इसके निर्यात को भारतीय रक्षा विनिर्माण के क्षेत्र में मील का पत्थर माना जा सकता है। यह बात भी महत्त्वपूर्ण है कि हमने ऐसे समय में दक्षिण पूर्वी एशिया के एक महत्त्वपूर्ण देश को यह मिसाइल बेचने में कामयाबी पाई है जब हिंद-प्रशांत क्षेत्र में काफी सामरिक हलचल है।
इसका सामरिक महत्त्व तो है ही, फिलिपींस द्वारा की गई इस खरीद को चीन पर एक वाणिज्यिक बढ़त के रूप में भी देखा जा सकता है। फिलिपींस और चीन दोनों दक्षिण चीन सागर के द्वीपों पर अपना-अपना दावा जताते हैं। चीन ने वुडी आइलैंड पर अपने सैनिक तैनात कर रखे हैं, स्कारबर्ग शॉल को लेकर उसका और फिलिपींस का गतिरोध बना हुआ है तथा उसने नाइन डैश लाइन को लेकर मनमाने दावे कर रखे हैं। नाइन डैश लाइन (एनडीएल) अंग्रेजी के यू अक्षर की आकृति वाली रेखा है जिसे चीन अविवादित मानता है। दक्षिण चीन सागर का 90 प्रतिशत इलाका एनडीएल में आता है। हालांकि इस क्षेत्र में मौजूद द्वीपों के कई दावेदार हैं। यह क्षेत्र मछलियों और ऊर्जा भंडारों के क्षेत्र में काफी समृद्ध है। दक्षिण पूर्वी एशिया के देशों में फिलिपींस ने ही इस क्षेत्र में चीन को सबसे मजबूत चुनौती दी है।
चीन के समुद्री दावों को लेकर फिलिपींस उसे हेग स्थित अंतरराष्ट्रीय न्यायालय तक ले गया। 2016 में संयुक्त राष्ट्र के समुद्री कानूनों के तहत अंतरराष्ट्रीय न्यायालय ने फिलिपींस के हक में फैसला सुनाया लेकिन इसके बावजूद चीन ने न्यायालय के निर्णय और उसके निर्देशों की अनदेखी कर दी। इससे पता चलता है कि अंतरराष्ट्रीय कानून केवल रस्मी हैं और बड़ी ताकतों द्वारा अपनी शक्ति का इस्तेमाल करने पर वे किसी काम के नहीं साबित होते। दक्षिण चीन सागर के द्वीपों को लेकर चीन की आक्रामकता तथा फिलिपींस की नौसैनिक क्षमताओं तथा वाणिज्यिक गतिविधियों को नियंत्रित करने की उसकी कोशिश तथा द्वीपों को लेकर उसके प्रतिस्पर्धी दावों से अनुमान लगाया जा सकता है कि आखिर क्यों फिलिपींस ने अपनी समुद्री सैन्य शक्ति बढ़ाने का निर्णय लिया। ब्रह्मोस का अनुबंध 37.5 करोड़ डॉलर का है। भारत तट आधारित पोतरोधी ब्रह्मोस मिसाइल की तीन बैटरी (एक बैटरी में तीन मिसाइल दागने की पूरी व्यवस्था होती है) फिलिपींस की नौसेना को सौंपेगा। इसके अलावा फिलिपींस की सेना भी 30 करोड़ डॉलर का अतिरिक्त ठेका दे सकती है।
भारत की रक्षा निर्यात नीति ने भी फिलिपींस को यह समझाने में मदद की है कि ब्रह्मोस खरीदना उसके लिए फायदे का सौदा है। फिलिपींस में भारतीय राजदूत और ब्रह्मोस एरोस्पेस कॉर्पोरेशन के पूर्व मुख्य कार्याधिकारी के आपसी तालमेल ने भी फिलिपींस को यह सौदा करने के निर्णय तक पहुंचने में सहायता की। ब्रह्मोस की सफल बिक्री एक बात यह भी निहित है कि भारत के शोध एवं विकास तथा उसकी घरेलू विनिर्माण क्षमता ने मिसाइल में अहम सुधार करने में मदद की है, हालांकि इस बिक्री के पहले उसे रूस की सहमति हासिल करनी पड़ी। उसके अलावा क्रूज मिसाइल के अलग-अलग स्वरूप भारतीय सेना की विभिन्न शाखाओं में इस्तेमाल किए जाते हैं। इससे पता चलता है कि इस मिसाइल के प्रदर्शन को लेकर कितना आत्मविश्वास है। ऐसे में फिलिपींस जैसे अन्य देशों का ध्यान भी इसकी ओर गया और अब इंडोनेशिया भी इसका संभावित खरीदार है। ब्रह्मोस के अलावा भारतीय कंपनी हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) ने हल्के उन्नत हेलीकॉप्टर (एएलएच) भी विकसित किए हैं जिसके लिए मॉरीशस से ऑर्डर मिल चुका है। भारतीय सेना, नौसेना और तटरक्षक बल इन उन्नत हल्के हेलीकॉप्टरों के अलग-अलग संस्करण इस्तेमाल कर रहे हैं यही कारण है कि ये निर्यात करने लायक बन सकें।
भारत लंबे समय तक दुनिया के सबसे बड़े हथियार आयातक देशों में शामिल रहा है और आज भी है। निर्यात की इस हालिया कामयाबी के साथ भारत अब बड़े पैमाने पर रक्षा निर्यात की तैयारी की दिशा में बढ़ रहा है। रक्षा मंत्रालय के अनुसार सन 2014-15 में भारत ने 1,940 करोड़ रुपये के रक्षा उपकरण निर्यात किए। सन 2020-21 में भारत का रक्षा निर्यात 8,434 करोड़ रुपये पहुंच गया। इस सैन्य निर्यात में जवानों के बचाव के उपकरण, इंजीनियरिंग उपकरण और रक्षा से जुड़े इलेक्ट्रॉनिक साजोसामान शामिल होते हैं। मोदी सरकार के अधीन रक्षा मंत्रालय ने सन 2024 तक पांच अरब डॉलर के रक्षा निर्यात का महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य तय किया है। बीते कुछ वर्षों में ब्रह्मोस, एएलएच तथा अन्य सैन्य उपकरणों की सफलता के बावजूद तेजस हल्के लड़ाकू विमान और अर्जुन युद्धक टैंक के बारे में यही बात दावे से नहीं कही जा सकती है। सरकार के निर्देश पर अर्जुन टैंक को सेना को सौंपा जा चुका है और उसी के निर्देशों पर 83 तेजस हल्के लड़ाकू विमान वायु सेना द्वारा खरीदे जा चुके हैं लेकिन अभी भी सेना और नौसेना की ओर से इनको पूरी मान्यता मिलनी शेष है। यदि स्वदेशी रूप से विकसित सैन्य उपकरणों को भारत के सैन्य बलों द्वारा ही पर्याप्त रूप से नहीं खरीदा जाता है तो रक्षा निर्यात के पक्ष में बना मौजूदा माहौल बिखर जाएगा। अगर भारतीय सैन्य बल ही भारतीय हथियारों को अपने बेड़ों में शामिल नहीं करेंगे तो संभावित विदेशी खरीदार भी भारतीय हथियारों को खरीदने के लिए बहुत उत्साहित नहीं रहेंगे। सफल और स्थायी रक्षा निर्यात नीति के लिए भारत को विभिन्न अंशधारकों की आवश्यकता होगी। जिसमें विभिन्न विचारधाराओं का असैन्य नेतृत्व, सरकारें, सैन्य बल, शोध एवं विकास एजेंसियां और घरेलू विनिर्माता मिलकर काम करें। यदि ऐसा नहीं किया गया तो ब्रह्मोस और एएलएच की सफलता के बावजूद रक्षा क्षेत्र में हमारा निर्यात सीमित रह जाएगा।
(पंत ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन (ओआरएफ) में शोध निदेशक और किंग्स कॉलेज लंदन में प्राध्यापक हैं। बोम्माकांति ओआरएफ में सीनियर फेलो हैं)
