अंबानी बंधुओं- मुकेश और अनिल की संपत्तियों को जोड़ दें तो वे दुनिया के सबसे अमीर परिवारों की फेहरिस्त में चोटी पर होंगे।
देश की सबसे बड़ी कंपनियों पर उनका नियंत्रण है। क्या यह अपेक्षा करना बहुत ज्यादा होगा कि ये दोनों विलक्षण भाई एक परिपक्व और जिम्मेदार कारोबारी की भूमिका निभाएं जो उनकी उम्र और हैसियत के अनुरुप हो।
कारोबारी जगत में परिवार के भीतर उठा पटक और खींचतान का यह पहला मौका नहीं है और ऐसा भी नहीं है कि आज के बाद यह सिलसिला यहीं रुक जाएगा। कुछ मामलों में तो पारिवारिक घमासान आज तक जारी है- (बजाज का उदाहरण सबसे सटीक है)। पर ऐसा पहली बार देखने को मिला है कि दो भाई बार-बार एक दूसरे के रास्ते में आते रहे हैं, खासतौर पर तब जब कि दोनों की मुट्ठियां महत्वाकांक्षी परियोजनाओं से भरी पड़ी हैं।
वर्ष 1983 में जब जीडी बिड़ला की मौत हुई थी तो उसके बाद बिड़ला समूह में बंटवारे की कवायद शुरू हो गई थी। हालांकि, इसमें काफी समय लगा और जैसा कि समझा जा सकता है बंटवारे में अड़चनें भी आई थीं। लोगों को पता था कि बंटवारे की प्रक्रिया जारी है और इसमें क्रॉस होल्डिंग की परेशानियां भी आईं, पर फिर भी आम जनता में इसे लेकर कभी भी इतना हो हल्ला नहीं मचाया गया।
हालांकि, एमपी बिड़ला एस्टेट के विवाद में शोर शराबा जरूर हुआ था। वहीं 1980 के दशक में गोयनका परिवार भी तीन हिस्सों में बंट गया था। आरपी और जीपी गोयनका भी एक के बाद एक मामले में आमने सामने खड़े थे। पर बाद में दोनों ने स्थितियों को सामान्य करने की कोशिश की और अपनी अपनी राह पकड़ ली।
कुछ इसी तरह, वॉचलैंड, मोदी और श्रीराम के मामलों में भी बंटवारे के समय काफी उठा पटक हुई थी और कुछ मौकों पर तो मसले को कचहरी तक भी घसीटा गया था, पर समय के साथ सब सुलझ गया। पर अंबानी बंधुओं के बीच की लडाई कुछ अलग ही रंग में नजर आ रही है।
इन दोनों के बीच मसला यह नहीं है कि एक का कारोबार बढ़िया तो दूसरे का मंदा चल रहा है। यहां मामला कुछ अलग पर काफी दिलचस्प है। दोनों भाइयों को एक दूसरे के मामले में पता है कि कौन कितना बेहतर कारोबार कर रहा है और यही वजह है कि दोनों में एक दूसरे से बेहतर करने की होड़ मची हुई है। हां इनके बीच की लडाई का एक फायदा जो इन्हें मिल रहा है वह यह है कि जब से ये अलग हुए हैं तब से शेयर बाजारों में इनकी जमकर कमाई हुई है।
ये चाहते तो स्वस्थ प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा दे सकते थे और किसी कारोबार को नई ऊंचाई देने के लिए यह अच्छा भी होता है, पर इन दोनों ने इसके विपरीत एक दूसरे के खिलाफ तलवार खींच ली है और एक दूसरे के कामों में दखल देते रहते हैं।
चाहे वह गैस का मसला हो, या विशेष आर्थिक जोन का या फिर टेलीकॉम कारोबार का, दोनों अलग अलग राग अलापते रहते हैं। पर अगर ये दोनों भाई इस तनातनी को छोड़कर बेहतर कारोबारियों की भूमिका निभाएं तो इससे इनका फायदा तो होगा ही, बाकी लोग भी फायदे में रहेंगे।