बाजार नियामक भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने मंगलवार को बोर्ड बैठक में कुछ महत्त्वपूर्ण निर्णय लिए हैं। उसने संबंधित पक्ष के कारोबार के संचालन नियमों को कड़ा बनाया तथा अधिग्रहण संहिता के विरोधाभासी नियमन के संबंध में परिस्थितियों को स्पष्ट किया। सेबी बोर्ड ने एक्सचेंजों में इलेक्ट्रॉनिक गोल्ड ट्रेडिंग की शुरुआत को लेकर बुनियादी दिशानिर्देश भी जारी किए। इसके अलावा उसने सिल्वर एक्सचेंज ट्रेडेड फंड्स की पेशकश की राह साफ की और फंड जुटाने के लिए सामाजिक क्षेत्र में गैर लाभकारी तथा लाभकारी सामाजिक विनिमय क्षेत्र को इजाजत देने के लिए दिशानिर्देश जारी किए। इससे निवेश के वैकल्पिक क्षेत्र सामने आए।
नियामक ने कहा कि संबंधित पक्ष के कारोबार से जुड़े मौजूदा मानकों में खामियां हैं जिनका फायदा उठाकर फंड इधर-उधर किए जा सकते हैं। संबंधित पक्ष की परिभाषा को संशोधित किया गया ताकि प्रवर्तक समूह में शामिल सभी संस्थानों को इसमें शामिल किया जा सके, भले ही उनकी अंशधारिता कितनी भी हो। निश्चित रूप से 1 अप्रैल, 2023 से पिछले वित्त वर्ष में 20 फीसदी की प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष हिस्सेदारी रखने वाली कोई भी संस्था अथवा कारोबार के समय 10 फीसदी हिस्सेदारी रखने वाली संस्था को संबंधित पक्ष माना जाएगा। संबंधित पक्ष के लेनदेन में ऐसे सभी कारोबार शामिल होंगे जहां, ‘एक ओर सूचीबद्ध संस्था अथवा उसकी अनुषंगियों में से कोई तथा दूसरी ओर सूचीबद्ध कंपनी का कोई संबंधित पक्ष अथवा उसकी अनुषंगी हो।’ कुछ लेनदेन में अंशधारकों की पूर्व मंजूरी जरूरी होगी। इन विकल्पों की मदद से अल्पांश हिस्सेदारों के हितों का बचाव होना चाहिए।
सूचीबद्धता समाप्त करने के ढांचे में कुछ अन्य अहम बदलाव किए गए जिनकी विलय एवं अधिग्रहण गतिविधि में बहुत अधिक प्रासंगिकता है और खासतौर पर विनिवेश की प्रक्रिया में। अधिग्रहण करने वाला यदि खुली पेशकश करता है तो उसे साथ ही साथ सूचीबद्धता समाप्त करने की बोली शुरू करने की इजाजत होगी। फिलहाल यदि कोई कंपनी किसी सूचीबद्ध कंपनी का नियंत्रण लेना चाहती है तो उसे कम से कम 26 फीसदी हिस्सेदारी सार्वजनिक तौर पर खरीदने की खुली पेशकश करनी होती है। यदि यह पूरी तरह सफल होती है तो अधिग्रहण करने वाली कंपनी की हिस्सेदारी 75 फीसदी से अधिक हो सकती है। परंतु नियमों के मुताबिक अधिग्रहण करने वाली फर्म की सूचीबद्धता के समापन की शुरुआत के पहले 75 फीसदी से अधिक हिस्सेदारी नहीं होनी चाहिए। सूचीबद्धता समापन को सफलतापूर्वक अंजाम देने के लिए अधिग्रहण करने वाले को 90 फीसदी से अधिक हिस्सेदारी रखनी होती है। व्यवहार में यह प्रक्रिया जटिल है। अधिग्रहण करने वाले को खुली पेशकश करने, शेयर खरीदने और फिर शेयर बेचने पड़ सकते हैं ताकि उसकी हिस्सेदारी 75 फीसदी से कम हो सके। इसके बाद उसे दोबारा शेयर खरीदकर अपनी हिस्सेदारी 90 फीसदी से अधिक करनी होगी। एक साथ सूचीबद्धता समाप्त करने और खुली पेशकश करने की इजाजत देकर सूचीबद्धता समापन को आसान बनाया गया है।
खुली पेशकश और सूचीबद्धता समापन की कोई भी समांतर प्रक्रिया पूरे खुलासों के साथ अंजाम दी जानी चाहिए। अधिग्रहण करने वाली फर्म को खुली पेशकश के समय ही यह इरादा स्पष्ट रूप से जताना चाहिए कि वह सूचीबद्धता समाप्त करना चाहती है। यदि सूचीबद्धता समापन की 90 फीसदी की सीमा तक पहुंच जाएं तो सभी अंशधारकों को सूचीबद्धता समापन की कीमत दी जानी चाहिए। अगर 90 फीसदी की सीमा नहीं छुई जा सके तो सभी श्ेायर खुली पेशकश की कीमत पर खरीदे जाने चाहिए। इसके अलावा सुपीरियर वोटिंग राइट्स जारी करने के नियम शिथिल किए गए हैं। इससे टेक्रॉलोजी स्टार्टअप के संस्थापकों को बिना नियंत्रण गंवाए फंड जुटाने का अवसर मिलेगा। फेसबुक और उबर इसका सफल प्रयोग कर चुके हैं। कुल मिलाकर देखा जाए तो इन नियामकीय बदलावों से बाजार की क्षमता में सुधार होना चाहिए।