भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने औद्योगिक क्षेत्रों को फिलहाल बैंकिंग कारोबार में प्रवेश की अनुमति नहीं देकर अच्छा कदम उठाया है। आरबीआई ने कहा है कि उसने इस संबंध में अभी कोई निर्णय नहीं लिया है। केंद्रीय बैंक ने जून 2020 में निजी क्षेत्र के बैंकों में मालिकाना दिशानिर्देश एवं निगमित संरचना की समीक्षा के लिए एक आंतरिक कार्य समूह का गठन किया था। इस समूह ने पिछले वर्ष अपनी रिपोर्ट सौंप दी थी। रिपोर्ट में सुझाव दिया गया था कि बैंकिंग नियमन अधिनियम, 1949 में आवश्यक संशोधनों के बाद औद्योगिक घरानों को बैंकिंग कारोबार में उतरने की अनुमति दी जानी चाहिए। समूह ने कहा था कि कुछ ही देशों ने औद्योगिक घरानों को बैंक स्थापित करने की अनुमति नहीं दी है। आरबीआई ने पिछले सप्ताह कहा कि समूह से उसे 33 सुझाव मिले हैं जिनमें 21 स्वीकार किए गए हैं और शेष विचाराधीन हैं।
इस पर कोई विवाद नहीं है कि भारत में और अधिक बैंकों की जरूरत है। बैंकिंग क्षेत्र में प्रतिस्पद्र्धा बढऩे से नई योजनाएं सामने आएंगी जिनसे ऋण आवंटन बढ़ाने में मदद मिलेगी। भारतीय बैंकिंग जगत में सार्वजनिक बैंकों का विशेष दबदबा है। एक समूह के रूप में परिसंपत्ति गुणवत्ता से संबंधित समस्या सहित वे विभिन्न कारणों से भारतीय अर्थव्यवस्था की आवश्यकताएं पूरी करने की स्थिति में नहीं हैं। ऐसे में निजी क्षेत्र के और अधिक बैंकों की जरूरत होगी। हालांकि औद्योगिक घरानों को बैंक खोलने की अनुमति देना समस्या का समाधान नहीं है। उन्हें अनुमति देने से बैंकिंग प्रणाली में जोखिम और बढ़ सकता है।
कई विशेषज्ञों ने औद्योगिक कंपनियों को बैंकिंग कारोबार में प्रवेश की अनुमति के सुझाव का विरोध किया था। इनमें आरबीआई के पूर्व गवर्नर एवं भारत सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार भी शामिल रहे हैं। नवंबर 2020 में प्रकाशित एक आलेख में अर्थशास्त्री शंकर आचार्य, विजय केलकर और अरविंद सुब्रमण्यन ने कहा था, ‘उद्योग एवं वित्त का मिश्रण अपने साथ कई तरह के जोखिम ला सकता है। इससे आर्थिक वृद्धि, सार्वजनिक वित्त और देश के भविष्य सभी के लिए खतरा उत्पन्न हो सकता है। नीति निर्धारकों से हमारा विशेष आग्रह है कि ऐसी कोई पहल नहीं की जाए।’ भारत में वित्तीय और औद्योगिक पूंजी के बीच टकराव की आंशका से बचना चाहिए। कंपनियों के बैंकिंग क्षेत्र में आने से उनसे संबद्ध इकाइयों को ऋण आवंटन का चलन शुरू हो जाएगा जिससे पूरी प्रणाली के लिए जोखिम पैदा हो जाएगा और इससे शक्ति कुछ खास इकाइयों एवं व्यक्तियों तक केंद्रित हो जाएगी। यह भी नहीं भूलना चाहिए कि भारत में नियामकीय क्षमता काफी सीमित है जो किसी भी अवांछित स्थिति से निपटने के लिए पर्याप्त नहीं होगी।
कार्य समूह के अन्य सुझावों में आरबीआई ने बैंकों में प्रर्वतकों की शेयरधारिता सीमा बढ़ाकर चुकता इक्विटी पूंजी की 26 प्रतिशत तक किए जाने की अनुमति दे दी है। इससे संतुलन कायम रखने में मदद मिलेगी। हालांकि शेयरधारिता में पर्याप्त विविधता होगी मगर प्रवर्तक आवश्यकता होने पर अधिक पूंजी भी लगा सकेंगे। आरबीआई ने बड़ी गैर-वित्तीय बैंकिंग कंपनियों (एनीबीएफसी) को बैंकों की तरह ही कड़े नियमन के दायरे में लाने का सुझाव भी स्वीकार कर लिया है। यह कदम महत्त्वपूर्ण है क्योंकि कई एनबीएफसी का आकार काफी बड़ा हो गया है और उनकी महत्ता वित्तीय प्रणाली के लिए बढ़ गई है। बैंक स्थापित करने के लिए न्यूनतम पूंजी की आवश्यकता भी बढ़ा दी गई है। उदाहरण के लिए यूनिवर्सल बैंक (ऋण-जमा सहित विभिन्न कारोबार करने वाली बैंकिंग इकाई) स्थापित करने के लिए पूंजी की आवश्यकता 500 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 1,000 करोड़ रुपये कर दी गई है। पूंजी अधिक रहने से बैंक अधिक स्थिर होंगे। चूंकि देश में और अधिक निजी क्षेत्र के बैंकों को बढ़ावा देना लक्ष्य है इसलिए अधिक पूंजी की शर्त बहीखाते का आकार बढऩे के साथ जोड़ी जा सकती है। कुल मिलाकर आरबीआई ने जो सुझाव स्वीकार किए हैं वे बिल्कुल सही दिशा में हैं।
(डिस्क्लोजर: बिज़नेस स्टैंडर्ड प्राइवेट लिमिटेड में कोटक परिवार नियंत्रित इकाइयों की महत्त्वपूर्ण हिस्सेदारी है।)
