वर्ष 2021 के अंत तक सरकार ने जनहित में कदम उठाए और दूरसंचार क्षेत्र में पहले से चली आ रही समस्याएं हल करने के लिए साहसी और कड़े कदम उठाए। इनमें समायोजित सकल राजस्व को नए सिरे से परिभाषित करना और अतीत की तिथि से लागू कर मांग को वापस लेना शामिल था। इससे इस अनुमान को बढ़ावा मिला कि सुधारों को लेकर कम बाधाएं होंगी और जनहित में ज्यादा लाभ सामने आएंगे। जून में 5जी स्पेक्ट्रम नीलामी की घोषणा और सीमित ई-बैंड बैकहॉल (मुख्य नेटवर्क और उप नेटवर्क के बीच संपर्क) आवंटन के बाद निराशा क्यों है और हालात में सुधार कैसे होगा?
दो क्षेत्रों में बदलाव की आवश्यकता है: बैकहॉल और स्पेक्ट्रम तक पहुंच। एक लक्ष्य है स्वयं आरोपित बाधाओं को दूर करना। दूसरा है अन्य क्षेत्रों के सफल रुझान का अनुसरण करना जहां उद्यम अपना कारोबार तैयार करते हैं, राजस्व अर्जित करते हैं और कर चुकाते हैं। कुछ वजहों से यह बात संचार पर नहीं लागू होती है, हालांकि यह एक अनिवार्य सेवा है।
बैकहॉल-ई-बैंड
सीमित बैकहॉल स्पेक्ट्रम एक बुनियादी समस्या है। 5जी स्पेक्ट्रम नीलामी हासिल करने वाली हर दूरसंचार कंपनी को 250 मेगाहर्ट्ज ई-बैंड स्पेक्ट्रम के दो बैंड (70-80 गीगाहर्ट्ज) आवंटित किए जाने हैं। यह मामला पहेलीनुमा है क्योंकि उपलब्धता 10 गीगाहर्ट्ज यानी 500 मेगाहर्ट्ज है। अगर मीडिया ऐसी रिपोर्ट प्रकाशित करता है कि इसका अस्थायी होना सही है क्योंकि इन फ्रीक्वेंसीज की नीलामी होनी है और दूरसंचार कंपनियों को नीलामी के समय तय कीमत चुकानी चाहिए तो हालात त्रासद होंगे क्योंकि 5जी को व्यापक बैकहॉल क्षमता चाहिए।
दूसरे देशों मसलन अमेरिका या यूरोपीय संघ में नीतियां इस प्रकार बनायी जाती हैं ताकि न्यूनतम लागत पर समस्त 10 गीगाहर्ट्ज का इस्तेमाल किया जा सके। इससे क्षमता का अधिकतम इस्तेमाल हो पाता है जबकि हम क्षमता को सीमित कर रहे हैं। यानी आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन के देशों को समान संसाधनों के साथ बढ़ी हुई उत्पादकता से विकासशील देशों की तुलना में अधिक फायदा होगा। इससे समुचित नियमन को अपनाकर निपटा जा सकता है।
जनहित का सही तरीके से तभी ध्यान रखा जा सकता है जब नीतियां ऐसी हों कि उपलब्ध संसाधनों की तदद से दूरसंचार कंपनियां उत्पादकता और किफायत बढ़ा सकें, बजाय कि आपूर्ति सेवाओं की बाधाओं के या तुलनात्मक सेवा स्तर हासिल करने पर अधिक व्यय करने के। यही बात गैर दूरसंचार कंपनियों को स्पेक्ट्रम आवंटन पर भी लागू होती है जिन्हें दूरसंचार कंपनियों की तुलना में प्राथमिकता पर स्पेक्ट्रम आवंटन किया जाएगा। भारतीय नेटवर्क की तुलना ओईसीडी देशों के नेटवर्क से नहीं हो सकती। इसीलिए हमारे यहां ऐसा आवंटन बहुत दिक्कत पैदा कर सकता है।
वैसे ही जैसे हम नेटवर्क क्षमता की कमी से जूझ रहे हैं क्योंकि या तो स्पेक्ट्रम के इस्तेमाल की इजाजत नहीं है या फिर इसकी कीमत बहुत अधिक है। इससे वायरलेस बैकहॉल सीमित होता है या फिर कीमत पर प्रतिबंध होने के कारण वायरलेस बैकहॉल सही ढंग से विकसित नहीं होता और कीमत अधिक रहती है। बैकहॉल स्पेक्ट्रम के लिए नीलामी के खतरे के बीच ये हालात और बिगड़ जाते हैं।
बिना गहन वायरलेस बैकहॉल के नीलामी से हासिल स्पेक्ट्रम का पूरा उपयोग नहीं हो सकेगा क्योंकि प्रत्यक्ष फाइबर संपर्क सीमित है। अच्छे वायरलेस बैकहॉल वाले देशों के उलट हमारे यहां मुंबई के बांद्रा-कुर्ला कॉम्प्लेक्स या नरीमन प्वाइंट, गुरुग्राम के डीएलएफ साइबर हब, दिल्ली के कनाट प्लेस या धौला कुआं, एयरपोर्ट, अस्पताल और चिकित्सा शोध परिसर आदि जगहों को बेहतर संचार सुविधा नहीं मिल पाएगी। इसका असर प्रभाव और उत्पादकता पर होगा।
यह भारत के नियमन का आधार बनाने के लिए भी उपयुक्त होगा कि आखिर अमेरिका, यूरोपीय संघ और यूनाइटेड किंगडम ई-बैंड के साथ क्या कर रहे हैं। उन्हें गैर विशिष्ट राष्ट्रीय लाइसेंस की आवश्यकता है और साथ ही जरूरी तालमेल और लिंक पंजीयन की भी। हमारे तुलनात्मक रूप से कम विकसित नेटवर्क में इसे अपनाने की सलाह नहीं दी जा सकती क्योंकि इससे समतापूर्ण नेटवर्क विकसित करने की कोशिश को नुकसान पहुंचेगी तथा सर्वाधिक मुनाफे वाले क्षेत्रों में अंतर बढ़ेगा।
अधिकारियों को चाहिए कि वे गैर विशिष्ट लाइसेंस को दूरसंचार कंपनियों को आवंटित करने की प्रक्रिया को संस्थागत बनाने पर ध्यान केंद्रित करें। इसके अलावा अनिवार्य समन्वय और पंजीयन के लिए बैकहॉल स्पेक्ट्रम के वास्ते जियो लोकेशन डेटाबेस पर भी ध्यान केंद्रित करना होगा। नीतियों को इस तरह तैयार करना होगा कि गीगाबिट वायरलेस लिंक स्थापित करने में मदद मिले और यह क्षेत्र पहले की तरह जबरदस्त योगदान दे पाने में सक्षम हो सके।
सिटी ऑफ लंदन जिसे स्क्वायर माइल भी कहा जाता है, उसके द्वारा अपनाया गया उदाहरण इस विषय में समझ बढ़ाने वाला है। वहां हर रोज चार लाख कामगारों, सालाना एक करोड़ आगंतुकों और 9,000 रहवासियों के संचार को संभाला जाता है। वहां ऐतिहासिक इमारतों और आधुनिक वास्तुकला का मिश्रण मोबाइल नेटवर्क सेवाओं के लिए चुनौती पैदा करता है। 2017 में सिटी ने एक परियोजना शुरू की जिसके तहत स्क्वायर मील में नि:शुल्क गीगाबिट वाई-फाई उपलब्ध कराना था। इस डिजाइन में बेहतर संचार के लिए 4जी स्माल सेल का इस्तेमाल किया गया और शहर में 3,000 लैंप पोस्ट जैसी परिसंपत्तियों का इस्तेमाल करके एक निरपेक्ष होस्ट तैयार किया गया जो सभी सेवा प्रदाताओं के लिए खुला था।
इस परियोजना को एक संयुक्त उपक्रम को सौंपा गया जिनमें से एक कंपनी भारत में सक्रिय है। बैकहॉल एक स्वव्यवस्थित मल्टीमीटर वेव का इस्तेमाल निरपेक्ष होस्ट की तरह करता है जिसे कई सेवा प्रदाता इस्तेमाल कर सकते हैं। यह सभी सेवा प्रदाताओं को गीगाबिट बैकहॉल और 12जीबीपीएस तथा 60 गीगाहर्ट्ज एमएमवेव एक्सेस और बैकहॉल पर ऐप्लीकेशंस तक पहुंच बनाने का मौका देता है।
5जी स्पेक्ट्रम तक पहुंच
अगर यह मान लिया जाए कि लक्ष्य 5जी तथा अन्य सेवाएं हैं तो भारत को अलग रुख अपनाना होगा। स्पेक्ट्रम नीलामी हमें वहां नहीं पहुंचाएगी। हमने मोबाइल टेलीफोनी में समुचित राजस्व साझेदारी अपनाकर एक खास स्तर हासिल किया। स्पेक्ट्रम के क्षेत्र में भी ऐसा ही करने की आवश्यकता है।
एक प्रस्तावित तरीका बताता है कि अब चूंकि केवल तीन ही दूरसंचार कंपनियां हैं तो ऐसे में स्पेक्ट्रम को बिना किसी नीलामी के तीनों में बराबर-बराबर बांटा जा सकता है। यह उचित प्रतीत होता है क्योंकि नीलामी में लगने वाले फंड का इस्तेमाल तब नेवटर्क में निवेश के लिए किया जा सकता है और राजस्व साझेदारी से जुटाया गया संग्रह नीलामी से जुटायी गई धनराशि से अधिक हो सकता है। इसकी एक कमी यह है कि इसके लिए तीनों नेटवर्क को अपना विकास करना होगा, बशर्ते कि सेवा प्रदाता अधोसंरचना को साझा न कर लें। ऐसे में वैकल्पिक रुख यही होगा कि एक निरपेक्ष होस्ट नेटवर्क के साथ जरूरी अधोसंरचना साझेदारी की जाए या दो प्रतिस्पर्धी नेटवर्क हों जिनका स्वामित्व अलग-अलग समूहों के पास हो।
यदि इन बातों को ध्यान में रखा जाए और नियमन में सुधार किया जाए तो यह संभव है कि हमें नेटवर्क, सेवा तथा अन्य मामलों में बेहतर नतीजे मिलें।