यह भरोसा करना मुश्किल हो सकता है, लेकिन टाटा मोटर्स की लखटकिया कार एक रुपये के शैंपू सैशे और पांच रुपये की कोक के समान ही है।
एफएमसीजी की तरह कम कीमत वाली नैनो काफी बाधाओं के बाद सोमवार को आखिरकार पेश कर दी गई, जिससे उम्मीद की जा सकती है कि यह इस बाजार के आयाम में ऐसा बदलाव लाएगी जैसा पहले कभी नहीं हुआ है।
रतन टाटा ने नैनो पर ठीक वैसा ही रणनीतिक दांव लगाया है जैसा कि हिंदुस्तान लीवर (एचयूएल) ने 80 के दशक के आखिर में शैंपो सैशे पर लगाया था।
जिस तरह से एचयूएल ने शैंपू के ठहरे हुए बाजार के विस्तार को ध्यान में रखते हुए पहली बार इस्तेमाल करने वाले लोगों को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए शैंपू का सैशे पेश किया था, ठीक उसी तरह टाटा भी शहरी व ग्रामीण, दोनों इलाकों में दोपहिया वाहन इस्तेमाल करने वालों को कार के मालिक में बदलने की उम्मीद कर रहे हैं।
दोपहिया बाजार 120 लाख का है जबकि पैसेंजर कार का बाजार महज 12 लाख का। इसका मतलब यह हुआ कि नैनो के पास 10 गुना बड़ा बाजार है। ऐसा भी समय था जब टाटा की रणनीति सहज ज्ञान के उलट दिख रही थी।
मारुति-800 की सिकुड़ती बिक्री, अन्य छोटे उत्पाद जिनने 1984 में कामयाबी के साथ खरीदारों के आयाम में विरोधाभास पैदा किया था, से पता चला कि सस्ती यानी छोटी कार के बाजार का दोहन हो चुका है। यह वही कुतर्क था जैसा कि कम कीमत वाले शैंपू और कोक के विरोध में आया था।
उस समय बिक्री बढ़ाने के लिए बाजार शैंपू के बड़े मितव्ययी पैक की तरफ बढ़ रहा था। इसी तरह कोला के बाजार में कोक और पेप्सी बड़े से बड़े पैक उपलब्ध कराने में एक दूसरे को मात दे रहे थे। पैसेंजर कार के मामले में भी आंकड़े बता रहे थे कि सस्ती व छोटी कार के मुकाबले बाजार ज्यादा कीमत वाले मझोले आकार की तरफ बढ़ रहा है।
इस लिहाज से नैनो के अवतरित होने को बिजनेस स्कूल की केस स्टडी की तरह देखा जा सकता है जिसमें बताया जाता है कि अशांति पैदा करने वाले तत्व होते हैं। (हालांकि इसके संयंत्र के स्थान के बारे में पिछले साल हुए विवाद में भी अशांति का ही मामला था, वैसे इसका अर्थ दूसरा था)
जहां तक नैनो का सवाल है, ज्यादा कुछ इस पर निर्भर करेगा कि कंपनी लागत का प्रबंधन किस तरह करती है। एचयूएल की शैंपू सैशे रणनीति की सफलता की फसल चेन्नई की कंपनी केविनकेयर ने काटी। कोक ने भी देखा कि कोला का बाजार 5 रुपये वाली पेशगी से बढ़ सकता है, लेकिन बाद में इसने पाया कि उत्पादन और छोटी बोतल की मार्केटिंग टिकाऊ नहीं है।
टाटा ने अपने आपको एक लाख रुपये की कीमत की उन चुनौतियों से घेर लिया है और दावा कर रहे है कि नैनो दुनिया की सबसे सस्ती कार होगी। अब इस बात का खुलासा कर दिया गया है कि जिस कीमत पर कार लॉन्च की गई है वह पहली एक लाख गाड़ियों पर ही लागू होगी।
अगर कीमत कुछ ऊपर भी जाती है तब भी यह बाजार में सबसे सस्ती कार ही रहेगी और तार्किक रूप से युवाओं, पहली बार कार खरीदने वालों और वैसे लोगों, जो दोपहिया से उठकर कार की सवारी करना चाहते हों, के लिए वाहन केचयन का आधार होगी। यह बाजार की स्थिति है जिसे चुनौती देना आसान नहीं होगा।
