लघु उद्योगों के सामने मुसीबत
अनिल शर्मा, कानपुर
भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा जारी कड़ी मौद्रिक नीतियों का सबसे ज्यादा बुरा प्रभाव देश के लघु उद्योगों के ऊपर पड़ रहा है। पहले से ही बढ़ती लागत मूल्यों का बोझ रहे छोटे और मझोले उद्योगों पर अतिरिक्त भार डाल दिया गया है। क्योंकि ये उद्योग ज्यादातर ऋणों पर ही आधारित होते हैं। ऋणों के मंहगा होने पर लघु उद्योगों के लिए मुसीबत खडी हो गई है। एक तरफ अगर ऋण मंहगे हुए हैं तो दूसरी ओर तरह-तरह के करों से भी लघु उद्योगों को निबटना पड़ रहा है। यही कारण है कि आजकल हमें अक्सर लघु उद्योग इकाइयों द्वारा हड़ताल पर चले जाने की खबरें सुनाई देती रहती हैं।
कारोबारियों के शोषण का खतरा
श्याम बिहारी गौड़, मोहल्ला-बेलवाडाड़ी, गांधी नगर बस्ती, जनपद-बस्ती, उत्तर प्रदेश
यह बात किसी से छिपी नहीं है कि छोटे कारोबारी हों या बड़े, सरकारी मशीनरी तरह-तरह से उनका उत्पीड़न करती हैं। मौद्रिक नीति को लेकर भी जब तक छोटे कारोबारियों को इसके सभी पक्षों की जानकारी नहीं दी जाएगी तब तक उनका भयभीत होना स्वाभाविक है। कारोबारी छोट हों या बड़े उनके योगदान को नकारा नहीं जा सकता है। सरकार को हर हाल में उन्हें हलकान होने से बचाना चाहिए।
खामियाजा भुगत रहे हैं कारोबारी
ओ पी मालवीय, भोपाल, मध्य प्रदेश
यह सच है कि केंद्र सरकार की नीति के ही कारण महंगाई पर लगाम न लगा पाने से ऐसी स्थितियां पैदा हुई हैं जो छोटे व्यापारियों के लिए हलकान होने की कगार पर हैं। जो भी बड़ी कंपनियां हैं, उन्हें तो फायदा हुआ है। लेकिन छोटे व्यापारियों की हालत आज भी खराब है।
आज महंगाई देखो तो सातवें आसमान पर पहुंच गई है, जिससे एक आम आदमी सबसे ज्यादा परेशानी में है। मुद्रास्फीति के कारण ही ऐसे हालातों का सामना करना पड़ रहा है। आज केंद्र सरकार के सामने भी वही प्रश्न है कि वह क्या करे क्या न करे। सरकार ने पहले सोचा नहीं कि ऐसे हालातों से हमें गुजरना पड़ेगा।
छोटे कारोबारी बदहाल हो जाएंगे
डॉ. सतीश कुमार शुक्ल, पूर्व भारतीय आर्थिक सेवा अधिकारी व सलाहकार, कॉटन एक्सचेंज, मुंबई
तरलता और मुद्रास्फीति पर लगाम लगाने के उद्देश्य से अपनाई गई कड़ी मौद्रिक नीति छोटे कारोबारी को परेशान ही करेगी। बड़े कारोबारी तो अपने स्रोतों के कारण इस कड़ाई को सहन कर लेंगे लेकिन कर्ज पर आश्रित रहने वाले छोटे कारोबारी बदहाल हो जाएंगे। छोटे उद्योग अभी तक सब्सिडी के कारण ही अस्तित्व में हैं। छोटे कारोबारियों और उद्योगों को मौद्रिक नीति में कुछ छूट मिलना चाहिए ताकि वे बड़े उद्योगों व कारोबार की स्पर्धात्मक मार से अपने को सुरक्षित रख सकें।
अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा बुरा असर
मिलिंद आप्टे, ब्रांच सेल्स मैनेजर, एचडीएफसी स्टैंडर्ड लाइफ इंश्योरेंस कंपनी, दादर, मुंबई
भारतीय रिजर्व बैंक की कड़ी मौद्रिक नीति केचलते बैंकों ने अपनी सभी तरह की ब्याज दरों में बढ़ोत्तरी की है। इसके कारण बैंक ऋण देने से कतराने लगे हैं। कुछ महीने पहले तक बैंक लोन देने के लिए लोगों के पीछे पड़े रहते थे, जबकि अब लोगों को बैंकों के चक्कर लगाने पड़ेगे। छोटे कारोबारियों के पास ज्यादा पूंजी तो होती नहीं हैं, वे बैंकों से ऋण लेकर काम चलाते थे। ऋण न मिलने की वजह से उनका कारोबार प्रभावित होगा है। साथ ही अर्थव्यवस्था पर भी इसका अच्छा असर नहीं होगा, क्योंकि छोटे-छोटे पार्टस तो छोटे कारोबारी ही बना करके बड़ी कंपनियों को सप्लाई करते हैं।
कारोबारियों के लिए बुरा दौर
जयेश शाह, भवन निर्माता, मुंबई
कड़ी मौद्रिक नीति का सबसे बुरा असर छोटे भवन निर्माताओं के ऊपर पड़ा है। कम पूंजी वालों को पहले भी बैंक ऋण देने में आनाकानी करते थे, अब तो सीधे ही मना करने लगे हैं। इस बेरुखी की वजह से समय पर प्रोजेक्ट नहीं पूरे हो पा रहे हैं। मजदूरों को देने के लिए पैसे नहीं बचे और खरीददार भी नहीं आ रहे हैं। ऐसे में भवन सस्ते में बेचने पड़ रहे हैं, क्योंकि जिन लोगों ने पहले से फ्लैट बुक कराया हैं, उनका फ्लैट देने का दबाव अलग से है। मेरी समझ से इस क्षेत्र से छोटे कारोबारियों को हटाने की यह एक सजिश है।
छोटे कारोबारियों की लुटिया डूबना तय
विजय सिंह, नई दिल्ली
कड़ी मौद्रिक नीतियों का प्रभाव छोटे कारोबारियों के ऊपर सबसे ज्यादा पड़ेगा। इसका कारण यह है कि एक तो उनके पास पहले से ही संसाधनों की कमी होती है। ऐसे में सरकार अगर ऋण को भी मंहगा कर देती है तो छोटे कारोबारियों की लुटिया डूबना तय है। सरकार के सामने अगर कड़ी मौद्रिक नीतियों से महंगाई के ऊपर नियंत्रण पाना लक्ष्य है तो वहीं दूसरी ओर छोटे उद्योगों को इन कड़ी मौद्रिक नीतियों से बचाकर रखना भी अपने आप में बहुत जरुरी है।
आग में घी डालने का काम
शशि पांडे, एडवोकेट, हाईकोर्ट, लखनऊ
छोटे कारोबारी पिछले चार सालों से कुछ न कुछ परेशानियां झेलते आ रहे हैं। पहले रिटेल क्षेत्र में कॉरपोरेट का प्रवेश उसके बाद खेती को बड़े उद्योगों के लिए खोल देना यह सब ऐसे फैसले रहे हैं जिनकी आंच छोटे कारोबारी ही झेल रहे हैं। सरकार को लगता है कि छोटे कारोबारियों की कोई फिक्र ही नहीं है। नई मौद्रिक नीति ने तो जलती आग में घी डालने जैसा काम किया है। एक तो कारोबार में घाटे का डर ऊपर से महंगा कर्ज यह सब छोटे उद्यमियों के लिए खतरनाक साबित होगा।
शिकार तो आम आदमी ही होगा
अमर यादव, मुरादाबाद
मंहगाई के इस समय में कड़ी मौद्रिक नीतियों को न अपनाया जाना मंहगाई के काल में समाने जैसा होगा और अंत में इस मंहगाई का शिकार आम आदमी ही होगा। इसलिए मंहगाई पर नियंत्रण के लिए कड़ी मौद्रिक नीतियों को अपनाना जरुरी हो गया है।
यह अवश्य है कि कड़ी मौद्रिक नीतियों के कारण छोटे कारोबारियों और लघु उद्योगों के हालात जरुर बिगड़ गया है। लेकिन ऐसा बहुत दिन तक ऐसा नहीं रहेगा। क्योंकि अर्थव्यवस्था में किया गया कोई भी सुधार असर दिखाने में समय लेता है। सरकार ने मौद्रिक नीतियों में अभी फेरबदल किया है। इसलिए ये अपना असर दिखाने में थोड़ा समय लेगी।
साहूकारों का आतंक बढ़ जाएगा
राजेश कुमार गुप्ता, संयुक्त सचिव, रॉटरी क्लब, पूर्व वाराणसी, उत्तर प्रदेश
देश में आज भी 70 फीसदी आबादी गांव में रहती है और जिसमें से 20 फीसदी आबादी ही किसी तरह से बैंक से कर्ज लेकर अपनी आजीविका चला रहे हैं। ऐसे में अगर कर्ज लेने वालों पर और अतिरिक्त बोझ बढ़ जाएगा तो ये लोग दाने-दाने के लिए मोहताज हो जाएंगे और गांव में रह रहे साहूकारों का आतंक बढ़ जाएगा।
कोई भी सही समय से बैंक का पैसा चुकाने से सक्षम नहीं हो सकेगा और छोटे कारोबारी गांव के ही साहूकारों से फिर उनकी शर्तों पर पैसा लेंगे क्योंकि उनको लगता है कि इनसे पैसा लेकर बैंक को दूंगा तो पुलिस के चक्कर से बच जाऊंगा। मगर भविष्य में ये छोटे कारोबारी को सूदखोर गांव छोड़ने पर मजबूर कर देते हैं।
कारोबारियों को विश्वास में लेना होगा
कृष्ण कुमार उपाध्याय, एडवोकेट, 8262, बैरिहवां, गांधी नगर, जनपद-बस्ती, उत्तर प्रदेश
कड़ी मौद्रिक नीति को लेकर छोटे कारोबारियों में असमंजस की स्थिति है। इसका मुख्य कारण इस नीति के बारे में पारदर्शी तरीके से प्रचार-प्रसार का न कराया जाना है। इसे देश का दुर्भाग्य ही कहेंगे कि विपक्षी राजनीतिक दल सत्तारूढ़ दल की लाभकारी कार्य योजनाओं को भी जनता के समक्ष गलत रूप में प्रचारित करके दिग्भ्रमित करते हैं। मुझे लगता है कि कड़ी मौद्रिक नीति से छोटे कारोबारी हलकान नहीं होंगे, बशर्ते उन्हें विश्वास में लेकर सच्चाई को बताया व समझाया जाए।
रखें थोड़ा धीरज
रोहन, कॉनसेप्ट प्रा.लि., फोर्ट, मुंबई
आरबीआई अर्थव्यवस्था को ओवरहीटिंग मानते हुए मुद्रा के प्रवाह को रोकने में लगी हुई है। इसके लिए बैंकों पर चाबुक चलाकर ऋणों में बढ़ोतरी कर दी गई। आरबीआई की इस नीति से सबसे ज्यादा छोटे कारोबारी परेशान हैं, क्योंकि उनका ज्यादातर काम बैंकों से मिलने वाले ऋण पर चलता है।
ऐसे समय में छोटे कारोबारियों को कुछ दिन तक अपने नये कामों को टाल देना चाहिए। यहा दौर एक साल से ज्यादा नहीं चलने वाला है। इस समय अर्थव्यवस्था से ज्यादा सरकार को वोट की चिंता हैं, यानी अगले साल चुनाव के बाद ही हलात में सुधार होने की उम्मीद करनी चाहिए।
हर हालत से निपटने के लिए तैयार रहें
कुवंर अमोघ, बैंक मैनेजर, लखनऊ
मौद्रिक नीति में कर्ज लेना जरुर थोड़ा मंहगा हुआ है पर बैंको के पास पर्याप्त मात्रा में तरलता है। मुझे नहीं लगता है कि कारोबारियों को किसी तरह की दिक्कत पेश आएगी। छोटे कारोबारियों को अगर किसी चीज से परेशानी हो रही है तो वह है मुद्रास्फीति जिसके चलते लोगों की खरीद पाने की क्षमता प्रभावित हुई है।
बाजार में यह चलता रहता है मंदी और तेजी। आने वाले 6 महीनों में स्थिति में सुधार की संभावना नजर आती है। कारोबारी छोटा हो या बड़ा उसे प्रतिस्पर्धा के इस दौर में बने रहने के लिए ऐसी हालात से निपटने के लिए तैयार रहना चाहिए। हर अंधेरे के बाद सुनहरी सुबह होती है।
डट कर सामना करेंगे कारोबारी
मनोज कक्कड़, मैनेजर, आर्यवर्त बैंक, लखनऊ
यह दौर कारोबार जगत में मंदी का है पर ऐसा नहीं कि ये दिन कारोबारियों ने पहले नहीं देखें। ऐसे दिन पहले भी आये हैं और हमारे कारोबारियों ने उसका डट कर सामना किया है। अगर पहले की मौद्रिक नीति देखें तो वह अब के मुकाबले कहीं ज्यादा कड़ी थी। फिर भी कारोबार होता रहा है।
कर्ज अभी कुछ साल पहले तक कहीं ज्यादा महंगा था कारोबारी तब भी मैदान में डटे रहे हैं। हां मैं यह मान सकता हूं कि जब उद्योग जगत को रियायतों की आदत लग जाती है तो उसको हटाना मुश्किल काम होता है पर यह भी समझना होगा कि कुछ तो मजबूरियां रही होंगी यूं ही कोई बेवफा नहीं होता।
मजबूरी में उठाया गया कदम
श्याम बिहारी अग्रवाल, एसबीआई, एलएचओ, 184, रचना नगर, गोविंदपुरा, भोपाल
यह सही है कि रिजर्व बैंक की कड़ी मौद्रिक नीति से छोटे कारोबारियों का बोझ काफी बढ़ जाएगा। मुद्रास्फीति की आसमान छूती दर, महंगाई को काबू में लाने एवं विकास दर को 8-9 फीसदी पर रखने के लिए आरबीआई ने कड़ी मौद्रिक नीति की घोषणा की है।
अभी हाल ही में रिजर्व बैंक ने वर्ष 2008-09 की अपनी पहली तिमाही की ऋण नीति की रिपोर्ट में सीआरआर एवं रेपो दरों में बढ़ोतरी करके यह सिध्द कर दिया है कि सरकार को बढ़ती मुद्रास्फीति की दर जो कि पिछले 13 वर्षों में अपने सर्वाधिक स्तर 11.98 तक जा पहुंची है, उसे नियंत्रित करना ही होगा।
इसका एक कारण यह भी है कि इस समय पूरे विश्व में आर्थिक मंदी का दौर चल रहा है तथा कच्चे तेल की कीमतों ने भी अपने रिकार्ड स्तर 147 डॉलर प्रति बैरल को छू लिया है। ऐसे में केंद्र सरकार तथा आरबीआई को यह सख्त कदम उठाने पर मजबूर होना पड़ रहा है, जिससे जाहिर है कि छोटे उद्यमी हलकान तो होंगे ही।
पुरस्कृत पत्र
अपने व्यवसाय से महरूम हो जाएंगे
भरत कुमार जैन
अध्यक्ष, फोरम ऑफ एग्रो इंडस्ट्रीज, 14, जानकी नगर अनेक्स-1, इंदौर, मप्र
आरबीआई की कड़ी मौद्रिक नीतियों की वजह से छोटे व्यापारी, उद्योग एवं व्यवसायी अपने व्यवसाय से महरूम हो जाएंगे। छोटे उद्योगों को बड़ी मल्टीनेशनल कंपनियां निगल जाएंगी। साल 2008 में ही प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जी ने खुलेआम स्वीकारा है कि ‘देश आगे निकल गया-गरीब पीछे रह गया।’
फिर भी उनके राज में वर्तमान में भी बढ़ती महंगाई एवं मुद्रास्फीति को रोकने के नाम पर ऐसी नीतियां, भारतीय रिजर्व बैंक अख्तियार कर रहा है, जिसके कारण लघु और कुटीर उद्योग, छोटे व्यवसायी, अपने घर का सपना देखने वाले, कर्ज लेकर व्यवसाय-धंधा करने वाले, सभी नागरिक त्रस्त हो गए हैं।
कड़ी मौद्रिक नीति से कृषि जन्य आधारित उद्योगों, लघु उद्योगों, खादी ग्रामोद्योग इकाइयों को ब्याज की बढ़ती दरों की मार से बचाने का प्रयास, भारत सरकार का संवैधानिक दायित्व है।
अन्य सर्वश्रेष्ठ पत्र
उद्योग की कमर तोड़ने की तैयारी
ए. पी. ओझा
एडवोकेट, लखनऊ
इस सरकार ने जनता के साथ-साथ उद्योगों की भी कमर तोड़ने की ठान रखी है। मंहगाई अपने चरम पर है जाहिर है कच्चे माल की कीमतें भी बढ़ी हैं। छोटे कारोबारियों को इसी का सामना करने में पसीने छूट रहे हैं ऐसे में कर्ज पर ब्याज दरें बढ़ जाना एक बुरे सपने जैसा ही है, जो साकार हो गया है।
सरकार को चाहिए कि कम से कम छोटे और मझोले उद्योगों के लिए संकट के इस दौर में कर्ज को सस्ता कर दे जिससे वे मंदी का मुकाबला कर सकें। आखिरकार देश में बड़ी तादाद इन्हीं छोटे कारोबारियों की ही है।
सरकार ने उठाया है घातक कदम
मनीष पंत
लेखक, लखनऊ
किसान और कारोबारी ही इस देश की रीढ़ हैं, इनको संकट मे डालने से देश का भला नहीं हो सकता है। आज यह दोनों ही वर्ग मुसीबतें झेल रहा है। कारोबारी के पास अगर कमाई के साधन कम होंगे तो किसानों को उपज का सही दाम मिलने में दिक्कतें पेश आएंगी ही।
सरकार को मंदी के दौर में मौद्रिक नीति की समीक्षा कर कर्ज को और सस्ता करना चाहिए न कि इसे और मंहगा कर छोटे कारोबारियों की कमर तोड़ देना चाहिए। बाजार में तरलता भी घटेगी और कर्ज भी मंहगा होगा यह तो बहुत ही घातक कदम उठाया है हमारी सरकार ने।
थम सा गया है विकास का पहिया
भरत सोमपुरा
अध्यक्ष, वेस्टर्न इंडिया फोटोग्राफिक एसोसिएशन, मुंबई
ग्लोबलाइजेशन के इस दौर में जब चीन और कोरिया जैसे देश जिनसे हमें सबसे ज्यादा चुनौती मिल रही है, अपने कारोबार के विकास के लिए ब्याज दरों में इजाफा करना बंद कर दिया है और हम बढ़ाते जा रहे हैं। ऐसे में उनसे मुकाबला कैसे संभव है।
किसी भी देश के विकास में सबसे अहम भूमिका वहां के छोटे कारोबारियों की होती है और इस समय कड़ी मौद्रिक नीति के चलते हमारे यहां मांग एवं लाभ, दोनों कम हो गये हैं। इस तरह की नीतियों से हम विकासशील देश तो बने रहेगे, पर विकसित होने का सपना, सपना ही रह जाएगा।
कारोबारियों को सच्चाई नहीं पता
प्रेम शंकर द्विवेदी
एडवोकेट, प्रवक्ता-जिला कंग्रेस कमेटी, विकास कॉलोनी, जनपद-बस्ती, उप्र
कड़ी मौद्रिक नीति को लेकर जो लोग चिन्तित हैं या छोटे कारोबारियों के हलकान होने की बातें कर रहे हैं, वास्तविकता है कि उन्हें कड़ी मौद्रिक नीति की सच्चाई का पता ही नहीं है। यह पहली बार नहीं है जब सरकार की नीति को लेकर भ्रमपूर्ण वातावरण बनाया जा रहा है।
किसी भी नीति के शुरुआती दौर में प्राय: ऐसा हुआ ही करता है। मेरा मानना है कि कड़ी मौद्रिक नीति छोटे कारोबारियों के साथ ही साथ राष्ट्र के भी हित में है। इससे छोटे कारोबारियों के घबराने या चिन्तित होने की जरूरत नहीं है।
बकौल विश्लेषक
छोटे उद्योगों की विस्तार योजना को लग सकता है ब्रेक
अमिताभ गुप्ता
रीडर, डिपार्टमेंट ऑफ फाइनैंशियल स्टडीज, दिल्ली विश्वविद्यालय
महंगाई और तरलता को कम करने के लिए सरकार के पास रेपो दर और सीआरआर को नौ फीसदी तक बढ़ाने के अलावा दूसरा कोई विकल्प नहीं था। इसमें कोई शक नहीं कि इन कड़ी नीतियों की वजह से छोटे और मझोले उद्योगों (एसएमई) पर बेहद प्रतिकूल असर पड़ेगा।
आरबीआई जब भी मुद्रास्फीति को काबू करना चाहता है तो ब्याज दरें बढ़ा देता है, जिसके परिणामस्वरूप छोटे कारोबारी व कंपनियां लोन कम ले पाती हैं और जब वे लोन कम लेंगी तो हमारी अर्थव्यवस्था में निवेश कम हो जाएगा। बड़ी कंपनियों को ज्यादा परेशानियों का सामना नहीं करना पड़ता है क्योंकि उनके पास आय के बहुत साधन हैं।
विकट परिस्थितियों में वे विदेशों से भी पैसा उठा सकती हैं जबकि छोटे कारोबारी ऐसा नहीं कर पाते हैं। इसमें अतिशयोक्ति नहीं कि ऐसी स्थिति में एसएमई की विस्तार योजनाओं पर ब्रेक लग सकता है और साथ ही उनका निवेश भी रूक सकता है। बढ़ती लागत मूल्यों को भी झेल पाना छोटे उद्यमियों के लिए काफी दूभर हो जाएगा।
देश की पूरी जीडीपी में एसएमई का लगभग 40 फीसदी और निर्यात में 50 फीसदी का योगदान है। लिहाजा ऐसे में भारत की अर्थव्यवस्था भी काफी प्रभावित हो सकती है। सरकार को चाहिए कि वे छोटे कारोबारियों व एसएमई के लिए अनुसंधान एवं विकास पर ज्यादा निवेश करें, उसके लिए एक अलग से स्टॉक एक्सचेंज भी बनाए । इसके अलावा एसएमई को विलय और अधिग्रहण योजनाओं पर भी ध्यान देनी चाहिए, ताकि तेजी से अपना विकास कर सकें।
बातचीत: पवन कुमार सिन्हा
जान जोखिम में डालने के लिए गढ़ी गई हैं नई नीतियां
पद्मश्री रुना बनर्जी
महासचिव, सेवा चिकन उद्योग, लखनऊ
नई क्रेडिट पॉलिसी तो जैसे छोटे और मझोले उद्यमियों की जान जोखिम में डालने के लिए गढ़ी गई है। दरअसल इसमें सबसे बड़ा नुकसान छोटे कारोबारियों का ही है, जिनकी तादाद देश में काफी है। एक बार सप्लाई का कोई ऑर्डर मिलने के बाद कच्चे माल के लिए कर्ज लेना ज्यादातर छोटे और मझोले कारोबारियों की मजबूरी है।
अब जबकि कर्ज पर ब्याज की दरें बढ़ा दी गई हैं तो कारोबारी कमाई कहां से करेंगे। जो भी कमायेंगे उसे कर्ज अदा करनें में निकाल देंगे तो कैसे उनका भला होगा। यहां एक बात यह भी समझनी होगी कि प्रतिस्पर्धा के के इस दौर में कम लागत पर माल बनाना हर कारोबारी की मजबूरी है क्योंकि वह तैयार माल को ज्यादा कीमत पर बेच नहीं सकता है, आखिरकार उसे मुकाबले में बड़े व्यावसायियों के सामने टिकना होगा जोकि कर्ज मंहगा होने की दशा में एक मुश्किल काम है।
आज भी काफी सारे कारोबारी मौका पड़ने पर खुले बाजार से उधार पर पैसा लेकर काम चलाते हैं, वहां भी कर्ज की दर बढ़ेंगी। आखिरकार महाजन और सूदखोर भी तो बैंकों के हिसाब से अपनी कर्ज की ब्याज दरें तय करते हैं। चिकन उद्योग में ही बहुत सारे लोग खुले बाजार से पैसा लेकर काम चलाते हैं, जहां अब कर्ज पर ब्याज की दरें सालाना के हिसाब से 24 से 30 फीसदी तक हो जाएंगी।
ऐसे में मुनाफे की कौन सोचे कारोबारी को घाटा ही घाटा होगा। अफसोस की देश की आधी से ज्यादा आबादी के पास अभी भी अपनी छत नहीं है और सरकार ने होम लोन पर ब्याज दरों को बढ़ाना शुरू कर दिया है। अभी तो ऐसा लगता है कि सरकार जो भी कुछ नीतियां बना रही वह चंद बड़े पूंजीपतियों के हित के लिए ही है।
बातचीत:सिध्दार्थ कलहंस
…और यह है अगला मुद्दा
सप्ताह के ज्वलंत विषय, जो कारोबारी और कारोबार पर गहरा असर डालते हैं। ऐसे ही विषयों पर हर सोमवार को हम प्रकाशित करते हैं व्यापार गोष्ठी नाम का विशेष पृष्ठ। इसमें आपके विचारों को आपके चित्र के साथ प्रकाशित किया जाता है। साथ ही, होती है दो विशेषज्ञों की राय।
इस बार का विषय है सरकारी उपक्रमों के आईपीओ से बाजार में लौटेगी तेजी? अपनी राय और अपना पासपोर्ट साइज चित्र हमें इस पते पर भेजें:बिजनेस स्टैंडर्ड (हिंदी), नेहरू हाउस, 4 बहादुरशाह जफर मार्ग, नई दिल्ली-110002, फैक्स नंबर- 011-23720201 या फिर ई-मेल करें
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