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  लेख  व्यापार गोष्ठी: छोटे-मझोले कारोबार को भी मिले पैकेज?
लेख

व्यापार गोष्ठी: छोटे-मझोले कारोबार को भी मिले पैकेज?

बीएस संवाददाता बीएस संवाददाता —November 2, 2008 11:02 PM IST
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राहत नहीं रियायत
सतीश कुमार बंसल
ए-38, लेक गार्डेन्स, कोलकाता


छोटे और मझोले कारोबार जगत को राहत देने से कोई फायदा आज की परिस्थितियों में नहीं होगा। अगर सरकार इनके  करों में शत-प्रतिशत छूट दें, बिजली की दर में 50 फीसदी की रियायत दें और बड़े उद्योग इनको आरक्षित श्रेणी में रखकर एकमुश्त सप्लाई ऑर्डर दें तो जान बच सकती है।

देर न करें
कृष्ण कुमार उपाध्याय
एडवोकेट, गांधी नगर, उत्तर प्रदेश

यह कठिन दौर ही सरकार की परीक्षा की घड़ी है कि वह छोटेमझोले कारोबारियों के लिए क्या करती है। समय की मांग है कि सरकार बिना देर किए लघु उद्योगों को बड़े राहत पैकेज देने का ऐलान करें ताकि बर्बाद हो रहे छोटे-मझोले कारोबारियों को कुछ तो संभलने का मौका मिले और स्वस्थ प्रतिस्पर्धा में अपने आप को खड़ा कर सके।

कम ब्याज दर पर
रवि सावंत
मलाड, मुंबई

मंदी की असली मार छोटे कारोबारियों पर ही पड़ रही है।  ऐसी स्थिति को ध्यान में रखते हुए अगर सरकार छोटे कारोबारियों को कम ब्याज पर भी पैसा उपलब्ध करा दे तो कारोबार चल सकता है।

सौतेला व्यवहार
रश्मि लता
शिक्षिका, सीकर, राजस्थान

एक ओर तो सरकार ने कॉर्पोरेट जगत के बचाव के लिए राहत आर्थिक पैकेजों की बाढ़ सी ला दी है वहीं लघु व मझोले उद्योगों को जरा भी राहत न देकर अन्याय किया है। सरकार यदि वास्तव में मंदी की सुनामी रोकना चाहती है तो छोटे व मझोले जगत के साथ सौतेला व्यवहार न करे।

बचाना ही पड़ेगा
बी.एन.भसीन
गोरेगांव, मुंबई

बड़ी कंपनियों की चकाचौंध के आगे छोटे और मझोले कारोबारियों के धंधे फीके पड़ गये हैं। सरकारी नीति के चलते छोटे-छोटे उद्योग को भी पूंजीपतियों ने पैसे की खनक पर अपने गिरफ्त में ले लिया है। वर्तमान में जहां एक ओर देश के परांपरागत उद्योग धंधे लगातार बंद हो रहे हैं तो दूसरी ओर बेरोजगारी भी बढ़ रही है।

राहत होगी रामबाण
समीर देसाई
नागपाड़ा, मुंबई

मौजूदा दौर में छोटे और मझोले कारोबारियों को बचाने के लिए सरकारी राहत रामबाण का काम कर सकती है। इस समय बड़ी कंपनियों के आगे भी अपने अस्तिव को बचाए रखना मुश्किल है।

बैंक करें सहयोग
ओ.पी. मालवीय
भोपाल

बैंक को चाहिए कि वैश्विक मंदी के इस दौर में छोटे और मझोले उद्योगों की हर तरह से मदद करें। बड़ी कंपनियों के पास दस धंधे हैं लेकिन लघु उद्योगों के पास तो आय के कोई अन्य साधन नहीं होते हैं। इस लिए सरकार को इस ओर राहत पैकेज देने के लिए तत्पर होना होगा, तभी देश भी विकास करेगा।

सबको मिले मौका
आमोद कुमार उपाध्याय
पत्रकार, संत कबीर नगर, उत्तर प्रदेश

वैश्विक विकास के दौर में अचानक आई आर्थिक मंदी का कारण कुछ भी हो लेकिन प्रभावित छोटे-बड़े सभी हुए हैं। मंदी की बयार इतनी तेजी से आ रही है कि प्रतिदिन एक न एक कारण को लेकर यह संकट बढ़ता ही जा रहा है। यह कब थमेगा कोई नहीं जानता है।

हां, इतना जरूर है कि आने वाला कल कितना दुखदाई होगा। इसे सोच कर ही रोंगटे खड़े हो जा रहे हैं। ऊपर से इस समस्या का कोई समाधान अब नजर न आना भी कई आशंकाओं को जन्म दे रहा है। कारोबारी देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं।  उनको इस संकट की घड़ी में संभलने का मौका मिलना चाहिए , आवश्यक हो तो छोटे-मझोले कारोबारियों को राहत पैकेज दिया जाए। इस दिशा में पहल करने के बाद ही सरकार संपूर्ण विकास की आशा कर सकती है।

समान नीति हो
बी.के. वर्मा
बस्ती, उत्तर प्रदेश

सरकार की नीति सबके लिए समान होनी चाहिए। किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं होना चाहिए। सरकार की इस पहल में देर न होने पाए क्योंकि हालात हाथ से निकल जाने के बाद सरकार की चारों ओर आलोचना तो होगी ही देश का भी बड़ा नुकसान हो जायेगा।

रोटी का सवाल
इंदिरा भट्ट
गृहिणी, लखनऊ

सरकार को बड़ों की छोड़ छोटे उद्योगों की भी चिंता करनी चाहिए। इन उद्योगों में भारी तादाद में लोग काम करते हैं और करोड़ों परिवारों की रोजी-रोटी का जरिया हैं ऐसे उद्योग। हैरानी है कि नैनो प्लांट के लिए देश के सभी राज्यों ने अपने दरवाजे खोल दिए पर बदहाली का शिकार हो रहे छोटे और मझोले उद्योगो की किसी को परवाह नहीं है।

सरकार के भरोसे
श्रीमती समीर उपाध्याय 
पत्रकार, गांधी नगर, बस्ती, उत्तर प्रदेश

कारोबार जगत ही किसी भी देश की तरक्की में बहुत बड़ा योगदान करता है, इसमें छोटे मझोले कारोबारियों का भी योगदान कम नहीं होता है। इसलिए सरकार को बिना किसी भेद-भाव के संकट की इस घड़ी में छोटे-मझोले कारोबारियों को तत्काल राहत पैकेज देना चाहिए, जिससे उन्हें संभलने का मौका मिले। ऐसा नहीं किया गया तो कोई शक नहीं कि उन्हें बर्बाद हो जाना है।

मध्यम वर्ग पहले
ए.पी. ओझा
एडवोकेट, लखनऊ हाईकोर्ट

सबसे पहले सरकार को मध्यम वर्ग की चिंता करनी चाहिए, जिसे मंदी के दौर में नौकरी खोने का डर सता रहा है। ज्यादातर छोटे उद्योगों में श्रम संबंधी कानूनों का पालन भी नहीं किया जाता है लिहाजा मंदी आते ही वो सबसे पहले छंटनी का काम शुरु कर देते हैं।

ठोस राहत मिले
आलोक कुमार
व्यवसायी, गांधी नगर,उप्र

सरकार आर्थिक मंदी के इस दौर से उबारने के लिए जितनी भी कोशिशें कर रहीं है वे सभी नाकाम ही साबित हो रही हैं। सरकार को चाहिए कि वह छोटे मझोले कारोबारियों को ठोस राहत पैकेज उपलब्ध कराये, जिससे उस कारोबार से जुड़े लोगों के सामने जो सकंट आया है, वे उससे निपट कर अपना स्वरूप को बनाए रख सकें।

उपेक्षा न करें
जयप्रकाश गोस्वामी
समाजसेवी, बस्ती, उत्तर प्रदेश

राहत पैकेज देने में सरकार को किसी प्रकार का भेदभाव नहीं करना चाहिए क्याेंकि यह संकटपूर्ण दौर एक बड़ी त्रासदी के साथ आया और बिना किसी भेद-भाव को सबको गहरी चोट दे गया। अनेकानेक प्रयासों के बावजूद स्थिति में सुधार होना तो दूर स्थिर रखने तक में कामयाबी नहीं मिल रही है। सरकार को चाहिए कि वह छोटे मझोले कारोबारियों को उपेक्षित न रखे, राहत पैकेज दें।

बेगाने लघु उद्योग
कपिल अग्रवाल
1915 थापर नगर, मेरठ

यदि छोटे-मझोले कारोबार जगत को राहत पैकेज दिया गया तो महंगाई घटेगी, रोजगार के अवसर बढ़ेंगे व सरकार का राजस्व भी बढ़ेगा। सरकार को नीतियों में भी आमूल-चूल परिवर्तन करते हुए नई नीति बनानी होगी। छोटे व मझोले कारोबारी आज हर तरफ से बेगाने हैं।

पैकेज उपाय नहीं
सतेन्द्र नाथ ‘मतवाला’
गांधीनगर, बस्ती, उत्तर प्रदेश

एक साथ पूरा कारोबार जगत ही लाचार व असहाय सी मुद्रा में सरकार से राहत पैकेज की अपेक्षा करने लगे यह कहां तक उचित है? माना कि संकट का समय अब आया है लेकिन जब खुशहाली का दिन था तो बचाया कितना? राहत पैकेज किसी समस्या का समाधान नहीं है। इस बार जैसे-तैसे काम चला लिया जाये। लेकिन भविष्य में इसका ख्याल रखा जाये।

परीक्षा की घड़ी
अमित कुमार सिंह
गांधी नगर, बस्ती, उत्तर प्रदेश

किसी भी आपदा की घड़ी में सरकार की जिम्मेदारियां बढ़ जाती हैं। सही मायनों में वहीं परीक्षा की घड़ी होती है। तब ही कोई भी हो उससे निजात तो सरकार को आगे आकर दिलाना है। ऐसे ही हालात आज देश के छोटे-मझोले कारोबारियों के समक्ष है। चारों ओर अफरा-तफरी मची हुई है। आज की जरूरत है कि छोटे-मंझोले कारोबारियों को राहत पैकेज दिया जाए।

पुरस्कृत पत्र

इधर हालात काफी बदले जरूर हैं
उमर सलीम पीरजादा
इंजीनियर, संयोजक, अलीगढ़ मूवमेंट फाउंडेशन

छोटे उद्योगों के लिए जल्दी ही राहत का ऐलान होना चाहिए। वैसे इधर काफी हालात बदले हैं और कच्चे माल की कीमतें गिरी भी हैं सो छोटे और मझोले उद्योंगो के लिए यह अच्छा है। पर साथ  ही ऐसा लगता है कि चुनावी साल के मद्देनजर सरकार राहत पैकेज जरूर देगी। सीआरआर में कटौती एक शुभ संकेत है। आशा है ब्याज दरें कम होंगी जो कि छोटे उद्योगों के पक्ष में जाएगा।

बकौल विश्लेषक

अपने हाथों ही लघु उद्योगों का गला घोंट रही सरकार
कमल नयन काबरा
अर्थशास्त्री

यह सही है कि वैश्विक मंदी की मार झेल रही यहां की विभिन्न कंपनियों के लिए सरकार कुछ न कुछ जरूर कर रही हैं लेकिन सच्चाई है कि उनका पूरा ध्यान बड़ी कंपनियों की ओर है न कि देश के छोटे और मझोले उद्योगों की तरफ। सरकार ने बड़ी कंपनियों को उत्पादन बढ़ाने के लिए पैकेज दिया है और इसलिए कंपनियां उस पैकेज का किसी विकासात्मक कार्यों के लिए निवेश नहीं करेंगी।

सरकार ने सिर्फ सेकेंडरी मार्केट को मजबूत करने के दिशा में कदम बढाया है। मौजूदा दौर में स्मॉल कैप कंपनियों की स्थिति बहुत दयनीय है। वर्तमान की आयात नीति की वजह से भी लघु उद्योगों को काफी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। विदेशी बड़ी कंपनियों की दखलअंदाजी की वजह से छोटे व मझोले उद्योग गायब होते जा रहे हैं।

सरकार ने अपनी आर्थिक नीतियों से एक ऐसी अस्वस्थ प्रतिस्पध्र्दा शुरू कर दी, जिसमें लघु उद्योग का तबाह होना निश्चित है। सरकार अपने हाथों लघु उद्योगों का गला घोटने को आमादा है। सरकार
लघु उद्योगों को संरक्षण देने के लिए आरक्षण नीति को फिर से शुरू करे।  
बातचीत: पवन कुमार सिन्हा

छोटे उद्योगों के लिए एक्ट बने
एस.बी. अग्रवाल
महासचिव, एसोचैम, उत्तर प्रदेश

लघु उद्योगों के लिए राहत पैकेज की मांग को समय रहते नहीं माना गया तो हालात काफी खराब हो जाएंगे और फिर  सरकार चाह कर भी कुछ नहीं कर पाएगी। भारी और बड़े उद्योग क्या बिना छोटे और मझोले उद्योगों के सफल हो सकेंगे। मंदी से सबसे ज्यादा प्रभावित छोटे और मझोले उद्योग हैं।

मंदी में तो छोटे और मझोले उद्योगों का बने रहना और जरूरी हो जाता है। हालांकि सरकार ने कुछ प्रावधान कर ऐसे उद्योगों को उबारने की कोशिश तो की है पर मौजूदा दौर में यह नाकाफी है। सरकार को एक्ट बनाकर छोटे और मझोले उद्योगों को बिना गारंटी के कर्ज दिलाना चाहिए।

अगर सरकारी संस्थान प्राथमिकता के आधार पर छोटे उद्योगों मे बनने वाले माल की खरीद करते हैं तो यह भी एक बड़ी मदद होगी। श्रम और कारखाना संबंधी कानूनों में ऐसे उद्योगों को ढील दी जानी चाहिए। बिजली की कमी और ऊंची दर भी चिंता का विषय हैं।  
बातचीत: सिध्दार्थ कलहंस

खतरनाक हो सकती है सोच
विक्की खोसला
अध्यक्ष, एसएमई, एसोचैम

यह कहना कि वैश्विक आर्थिक मंदी की वजह के बीच छोटे और मझोले उद्योग पिसते जा रहे हैं, थोड़ी जल्दबाजी होगी। हमें अपने माइंडसेट को बदलना होगा। मसलन, यह सोच-सोच कर कि मंदी आ गई है और इसलिए लघु उद्योगों को उत्पादन, रोजगार आदि में कटौती कर देनी चाहिए, यह खतरनाक साबित हो सकता है।

बहरहाल, इस वक्त लघु उद्योगों को सबसे बड़ा खतरा बैंकों द्वारा ऋण नहीं मिलने से है। अगर लघु उद्योगों को समय रहते सरकार से कोई राहत पैकेज या बैंकों से कम ब्याज दरों पर ऋण नहीं मिलता है तो एसएमई को ताला लगाना पड़ सकता है। सरकार को चाहिए कि वह इंस्पेक्टर राज को खत्म कर एक केंद्रीय काउंटर बनाए, जहां लघु उद्योगों से जुड़ी सभी तरह की रिपोर्ट जमा करवाई जा सके।  बातचीत: पवन

…और यह है अगला मुद्दा

सप्ताह के ज्वलंत विषय, जो कारोबारी और कारोबार पर गहरा असर डालते हैं। ऐसे ही विषयों पर हर सोमवार को हम प्रकाशित करते हैं व्यापार गोष्ठी नाम का विशेष पृष्ठ। इसमें आपके विचारों को आपके चित्र के साथ प्रकाशित किया जाता है। साथ ही, होती है दो विशेषज्ञों की राय।

इस बार का विषय है क्या ब्याज दर घटाने से छंटेंगे मंदी के बादल? अपनी राय और अपना पासपोर्ट साइज चित्र हमें इस पते पर भेजें:बिजनेस स्टैंडर्ड (हिंदी), नेहरू हाउस, 4 बहादुरशाह जफर मार्ग, नई दिल्ली-110002 या फैक्स नंबर- 011-23720201 या फिर ई-मेल करें
goshthi@bsmail.in

आशा है, हमारी इस कोशिश को देशभर के हमारे पाठकों का अतुल्य स्नेह मिलेगा।

vyapar goshthi
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