भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की अगस्त बैठक के बाद से आर्थिक परिदृश्य लगातार खराब हुआ है। बहरहाल नीतिगत दरें तय करने वाली समिति की नीतिगत समीक्षा बैठक आज शुरू हो रही है। अनुमान है कि इस बार उसकी निर्णय प्रक्रिया अपेक्षाकृत सीधी सपाट रहेगी।
समिति से व्यापक अपेक्षा है कि वह नीतिगत रीपो दर बढ़ाएगी। विश्लेषकों का अनुमान है कि नीतिगत रीपो दर में 35 से 50 आधार अंकों का इजाफा किया जाएगा लेकिन ऐसी तमाम वजह हैं जिनके चलते अगर समिति 50 आधार अंकों की बढ़ोतरी करती है तो बेहतर रहेगा।
50 आधार अंकों से कम की बढ़ोतरी से यही आभास होगा कि समिति निरंतर ऊंची बनी हुई मुद्रास्फीति के खिलाफ कदम उठाने की अनिच्छुक है। मुद्रास्फीति की दर विगत आठ महीनों से रिजर्व बैंक के तय दायरे से ऊपर रही है और उसके जल्दी नीचे आने की संभावना नहीं है।ऐसे में लगता है कि मुद्रास्फीति की दर लगातार तीन तिमाहियों तक तय दायरे से ऊंची बनी रहेगी। इसे मुद्रास्फीतिक लक्ष्य प्राप्त करने में नाकामी के रूप में देखा जाएगा। इस स्थिति में कानून तो यही कहता है कि रिजर्व बैंक को केंद्रीय मंत्रालय को लिखित रूप से यह बताना होगा कि वह लक्ष्य प्राप्ति में विफल क्यों रहा।
उसे प्रस्तावित सुधारात्मक कदमों के बारे में भी बताना होगा तथा एक अनुमानित समय भी बताना होगा जब तक मुद्रास्फीति संबंधी लक्ष्य को हासिल किया जा सकता है।
इस परिदृश्य में समिति के लिए दरों संबंधी कदम में नरमी बरतना उचित नहीं होगा। वास्तविक नीतिगत दर अभी भी ऋणात्मक है। रिजर्व बैंक के अनुमान के अनुसार मुद्रास्फीति की दर चालू वित्त वर्ष की अंतिम तिमाही में तय दायरे में आ पाएगी।
हालांकि दरों में एक और इजाफा आर्थिक सुधार की प्रक्रिया को प्रभावित करेगा लेकिन नीति निर्माताओं को कुछ हद तक वृद्धि का त्याग करना होगा ताकि निकट भविष्य में मूल्य स्थिरता हासिल की जा सके। इस संदर्भ में रिजर्व बैंक से यह उम्मीद भी होगी कि वह वर्ष के लिए अपने वृद्धि अनुमान को भी संशोधित करेगा।
सकल घरेलू उत्पाद वृद्धि के अप्रैल-जून तिमाही के आधिकारिक आंकड़े रिजर्व बैंक के अनुमान से काफी कम रहे। ऐसे में अगर नतीजे व्यापक तौर पर बची हुई तिमाहियों के अनुमान के अनुरूप भी रहते हैं तो रिजर्व बैंक को वर्ष के लिए अपने 7.2 फीसदी के वृद्धि अनुमान को भी संशोधित करके घटाना पड़ सकता है। वैश्विक आर्थिक परिदृश्य को देखते हुए ऐसा लगता नहीं कि वृद्धि के मोर्चे पर कुछ सकारात्मक नजर आएगा।
दरों से संबंधित कदमों तथा वृद्धि अनुमानों के अलावा बाजार प्रतिभागी भी वैश्विक वित्तीय बाजारों में मची उथलपुथल को लेकर रिजर्व बैंक की टिप्पणी की प्रतीक्षा करेंगे। इसमें भी मुद्रा बाजार को लेकर वे खासतौर पर प्रतीक्षारत रहेंगे। हालांकि रुपये में इस वर्ष अब तक 8 प्रतिशत की गिरावट आई है लेकिन यह अपेक्षाकृत मजबूत बना रहा क्योंकि रिजर्व बैंक ने सक्रिय ढंग से हस्तक्षेप किया। अमेरिकी डॉलर इसलिए भी अपेक्षाकृत मजबूत नजर आ रहा है कि विकसित देशों समेत दुनिया के अन्य देशों की मुद्राओं में तेज गिरावट देखने को मिली।
उदाहरण के लिए जापान में कई दशकों में पहली दफा येन को स्थिर करने के लिए हस्तक्षेप करना पड़ा। अमेरिकी फेडरल रिजर्व से उम्मीद है कि वह आने वाले महीनों में मौद्रिक नीति को काफी सख्त रखेगा। निकट भविष्य में वैश्विक वित्तीय हालात में भी सुधार होता नहीं दिखता।
ऐसे हालात में रिजर्व बैंक को रुपये का किस हद तक समर्थन करना चाहिए? हालांकि विदेशी मुद्रा भंडार अभी भी सहज स्तर पर है लेकिन निरंतर गिरावट रुपये पर और अधिक दबाव डालेगी। रुपये की सापेक्षिक मजबूती ऐसे समय पर अंतरराष्ट्रीय कारोबार वाले क्षेत्रों को प्रभावित करेगी जब वैश्विक मांग दबाव में है। बेहतरीन नीतिगत विकल्प यही होगा कि रुपये को समय के साथ समायोजित होने दिया जाए।