अगर हेडलाइन के पीछे की बात करें तो मंदी की मार से मीडिया उद्योग भी लगातार हलकान है। नकदी की कमी, सिकुड़ते विज्ञापन और छंटनी की अफवाहों के बीच क्या है मीडिया का हाल, बता रही हैं शुचि बंसल
बात 2001 की है। एल एस ‘राज’ नायक ने एफएमसीजी की शीर्ष कंपनियों में से एक रेकिट एंड बेंकिार के प्रबंध निदेशक के साथ एक समझौते के बाद हाथ मिलाया ही था कि तभी उनके फोन पर बीप-बीप की आवाज आने लगी।
वह ध्वनि न्यूज अलर्ट की थी, जिसमें 11 सितंबर 2001 को न्यूयार्क के टि्वन टावर्स पर हुए हमले की जानकारी दी गई थी। उस वक्त नायक स्टार टेलीविजन के कार्यकारी उपाध्यक्ष (विज्ञापन बिक्री) थे।
उन्होंने डेटॉल बनाने वाली कंपनी रेकिट के साथ स्टार टेलीविजन के लिए 20 करोड़ रुपये का एक समझौता पूरा किया ही था कि तभी वह दुर्भाग्यपूर्ण घटना घट गई। बहरहाल, अब नायक एनडीटीवी मीडिया, जोकि एनडीटीवी की विज्ञापन बिक्री एजेंसी है, के अध्यक्ष हैं।
अपने बीते दिनों को याद करते हुए नायक बताते हैं, ‘इस समझौते के बारे में मैंने करीब तीन दिन तक किसी को भी कुछ नहीं बताया। मैं सोच रहा था कि 911 की घटना के तुरंत बाद इस समझौते के बारे में बहुत ज्यादा हो हल्ला करना ठीक नहीं होगा।’
हालांकि नायक को उस वक्त सबसे ज्यादा हैरानी हुई जब समझौते के दस्तावेज रेकिट कंपनी के पास भेजे गए तो कंपनी का जवाब था कि अभी पैसे खर्च करने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता है।
वर्तमान की संकटकालीन परिस्थिति में डगमगाते भारतीय मीडिया उद्योग के संदर्भ में नायक बताते हैं, ‘911 की दुर्भाग्यपूर्ण घटना के बाद बहुत सारी बहुराष्ट्रीय कंपनियां, खास तौर से अमेरिकी कंपनियों ने विज्ञापन समझौते को टाल दिया। लेकिन इसके बावजूद जो आज की स्थिति है वैसी पहले कभी नहीं थी।’
हालांकि 911 की घटना से भारतीय कंपनियों का मार्केटिंग बजट बहुत ज्यादा प्रभावित नहीं हुआ था लेकिन आज की परिस्थितियों में उन्हें अपने मीडिया खर्चों में कटौती करने की मजबूर होना पड़ रहा है।
देश के सबसे बड़े प्रिंट मीडिया समूहों में से एक बेनेट, कोलमन ऐंड कंपनी के मुख्य कार्य अधिकारी (पब्लिशिंग) रवि धारीवाल ने बताया, ‘पूरा मीडिया जगत इस वक्त सुनामी के भंवरजाल में फंसा हुआ है। मसलन, पहले तो न्यूजप्रिंट की कीमतों ने आसमान छू लिया और बाद में विज्ञापनों को जैसे सांप सूंघ लिया हो यानी विज्ञापनों में जबरदस्त कटौती होने लगी है।’
ऐसा नहीं है कि मंदी की इस मार से प्रसारणकर्ता अछूते रहे हैं बल्कि उन्हें भी मंदी के नाग ने बुरी तरह डसा है। एनडीटीवी के ग्रुप सीईओ के वी एल नारायण राव इस बात को स्वीकार करते हैं कि उन्होंने मंदी की ऐसी भयावह स्थिति इससे पहले कभी नहीं देखी थी।
धारीवाल कहते हैं कि इसमें कोई शक नहीं कि अंतिम तिमाही के दौरान विज्ञापन के वॉल्यूम में 25-35 फीसदी कमी आ जाने की वजह से अंतिम तिमाही में टेलीविजन और रेडियो के मुकाबले प्रिंट मीडिया को ज्यादा क्षति पहुंची थी।
मिड-डे मल्टीमीडिया के मुख्य वित्तीय अधिकारी मनजीत घोषाल ने बताया कि मुंबई और दिल्ली में तो विज्ञापन के वॉल्यूम मंख औसतन गिरावट करीब 40 फीसदी की हुई है।
ऐसे में विज्ञापन की दरों में भी कमी की गई है लेकिन समाचार पत्र के प्रकाशक इस बात पर जोर दे रहे हैं कि वे सामान्य से बहुत ज्यादा छूट नहीं दे सकते हैं।
नाम न छापने की शर्त पर एक मीडिया बाइंग एजेंसी के सीओओ ने बताया कि प्रिंट मीडिया ने प्रभावी दरों में 50 फीसदी तक की कमी कर दी है। डीएनए के प्रकाशक डिलिजेंट मीडिया के मुख्य कार्य अधिकारी के यू राव ने बताया कि मीडिया मालिकों द्वारा अंनियंत्रित तरीके से विज्ञापन दरों में कटौती की गई है।
उन्होंने कहा, ‘साल 2005 में जो विज्ञापन की दर हुआ करती थी, आज वही स्थिति दोबारा देखने को मिल रही है। बल्कि आज तो 2005 से भी कम दरों पर विज्ञापन प्रकाशित किए जा रहे हैं।’
इसमें कोई शक नहीं कि प्रिंट मीडिया में विज्ञापन वॉल्यूम में आई कमी और टेलीविजन की सुस्त विकास दरों (फिक्की-केपीएमजी की रिपोर्ट के मुताबिक) ने स्पष्ट रूप से मीडिया कंपनियों के अंतिम तिमाही परिणामों को क्षति पहुंचाई है।
उदाहरणस्वरूप, एचटी मीडिया के परिचालन लाभ में 26 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है जबकि उनके शुध्द मुनाफे में 79 फीसदी की जबरदस्त गिरावट हुई है (टेबल देखें)। प्रणव राय द्वारा संचालित एनडीटीवी का परिचालन घाटा जहां 95.5 करोड़ रुपये का हुआ वहीं शुध्द घाटा 118 करोड़ रुपये दर्ज किया गया।
एनडीटीवी को यह घाटा कुछ नए मनोरंजन चैनल शुरू करने के कारण भी हुआ है। हालांकि एनडीटीवी को न्युज परिचालन से होने वाली कमाई में 10 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई जबकि शुध्द घाटा 16 करोड़ रुपये का हुआ। राव ने बताया कि कंपनी का घाटा असामान्य नहीं है और सभी एक ही नाव में सवार हैं।
इसके इतर, टेलीविजन 18 के परिणाम भी बहुत खराब देखने को मिले हैं। इसके मुख्य समाचार प्रसारण कारोबार से होने वाली कमाई में 32 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है।
आईडीएफसी एसएसकेआई सिक्यूरिटीज के उपाध्यक्ष निखिल वोरा ने बताया, ‘टीवी 18 के लिए वर्तमान समय अभी बहुत कठिनाइयों भरा है। ऐसा इसलिए भी है क्योंकि खास तौर से भयंकर मंदी के इस आलम में मुख्य समाचार प्रसारण के क्षेत्र में बहुत ज्यादा प्रतिस्पर्धा का माहौल बना हुआ है।
इसके साथ ही उनकी देश के सबसे बड़े न्यूजपेपर ब्रांड बेनेट, कोलमेन ग्रुप की ईटी नॉउ से भी प्रतिस्पर्धा होगी।’
निस्संदेह प्रिंट और टेलीविजन के क्षेत्र में जिस संकट का सामना आज करना पड़ रहा है, वह बेहद चिंताजनक है। मीडिया संगठन अब लागत को युक्तिसंगत बनाने में जुटे हुए हैं। मसलन, जैसा कि कई समाचार पत्रों में ऐसी चर्चाएं हो रही हैं कि या तो कर्मचारियों के वेतन में कमी की जा रही है या फिर उनकी छंटनी की जा रही।
देश की बड़े समाचारपत्र प्रकाशित करने वाली कंपनियों का कहना है कि वे अपने कर्मचारियों के वेतन में करीब 20 फीसदी तक की कटौती करने की योजना बना रही हैं। एनडीटीवी भी अपने कर्मचारियों से कहा है कि वे भी स्वेच्छा से अपने वेतन में 20 फीसदी की कटौती करवाएं।
हालांकि मीडिया में छाई मंदी की काली परछाईं से एक हिन्दी समाचार चैनल के प्रमुख को बहुत ज्यादा हैरानी नहीं हो रही है। उन्होंने बताया, ‘पिछले छह सालों में कर्मचारियों का वेतन छह गुना तक बढ़ गया है।’ अब ज्यादातर मीडिया कंपनियां अपने परिचालन को पुनर्गठित कर रही हैं।
अभी कुछ दिनों पहले जब मराठी समाचारपत्र समूह सकाल ने अपने अंग्रेजी समाचारपत्र के दिल्ली ब्यूरो को बंद किया था तो वहां से करीब 60 लोगों को नौकरी से हाथ धोना पड़ा था। इसी तरह यूटीवी सॉफ्टवेयर ने जब दिल्ली स्थित अपने दफ्तर पर ताला लगाया था तो उस दौरान 45 कर्मचारियों की छुट्टी कर दी गई थी।
इस वक्त यूटीवी दो से अधिक टेलीविजन चैनलों का संचालन कर रही है। मीडिया के क्षेत्र में विभिन्न प्रतिद्वंद्वियों का यह मानना है कि बेनेट, कोलमन कंपनी ने करीब 1,000 कर्मचारियों की छंटनी की है लेकिन रवि धारीवाल का कहना है कि इन आंकड़ों के केवल एक तिहाई कर्मचारियों की ही छंटनी की गई है।
एचटी मीडिया ने भी अपने हिंदी समाचारपत्र से कर्मचारियों की छंटनी की है लेकिन कंपनी के मुख्य कार्य अधिकारी राजीव वर्मा ने इस मामले पर टिप्पणी देने से इनकार कर दिया।
मिड-डे मल्टीमीडिया के मुख्य वित्त अधिकारी मनजीत घोषाल ने बताया कि अगर प्रिंट, टेलीविजन, रेडियो, आउटडोर, इंटरनेट और मीडिया से जुड़े अन्य सेवा क्षेत्रों की बात करें तो कम से कम 1,00,000 लोगों को नौकरी जा सकती है।
परामर्शदाताओं का कहना है कि ये आंकड़े बहुत ज्यादा अतिशयोक्तिपूर्ण हैं। एक परामर्शदाता ने बताया कि यह कोई आईटी सेक्टर नहीं है।
लेकिन घोषाल ने जोर देते हुए कहा कि पूरे मीडिया और मीडिया से जुड़ी अन्य सेवाओं-जिसमें विज्ञापन, डिजाइनिंग कंपनियां, प्रिंटिंग प्रेस आदि शामिल है, में हजारों की संख्या में लोगों की छंटनी होगी।
टेलीविजन उद्योग के दिग्गज इस बात पर जोर दे रहे हैं कि अगर इस क्षेत्र में खुद को जीवित रखना है तो 50 फीसदी तक कर्मचारियों की छंटनी करनी होगी। 800 करोड़ रुपये की रेडियो इंडस्ट्री जहां कि करीब 250 स्टेशनों में बमुश्किल 6,000 पेशेवर होंगे, वहां हाल ही के कुछ महीनों में पहले से ही 5 फीसदी कर्मचारियों की छंटनी हुई है।
रेडियो खिलाड़ियों को मिलने वाले विज्ञापनों में पहले ही करीब 15 फीसदी की कटौती हो चुकी है। देश भर में 32 रेडियो मिर्ची स्टेशनों का परिचालन करने वाली अग्रणी रेडियो कंपनी एंटरटेनमेंट नेटवर्क इंडिया लिमिटेड अपनी इंजीनियरिंग कामों का पूरी तरह आउटसोर्स करती है।
रेडियो मिर्ची के सीईओ प्रशांत पांडेय ने बताया, ‘शुरुआत में हमलोगों के पास 50 इंजीनियर थे। लेकिन अब केवल सात या आठ इंजीनियरों से ही काम लिया जा रहा है। यह अधिक कुशल और लागत प्रभावी है।’
2009 में रेडियो इंडस्ट्री में करीब 5 फीसदी से विकास देखने को मिलेगा या फिर यह स्थिर ही रहेगा। कंपनियां लागत को नियंत्रित करने के लिए अन्य कदम भी उठा रही हैं। उदाहरण के लिए अब मीडिया कंपनियां मुफ्त स्नैक, कैब बिल, पेपर कप और यहां तक कि टॉयलेट पेपर आपूर्ति की गहराई से छानबीन कर रही हैं।
एक ओर जहां समाचारपत्रों ने पेजों की संख्या में कमी कर दी है वहीं मिड-डे समाचारपत्र मुंबई, दिल्ली, बेंगलुरु और पुणे स्थित कार्यालयों के रेंट को लेकर बातचीत कर रही है।
न्यूज के सीईओ का मानना है कि यह मंदी नहीं है बल्कि मीडिया में करेक्शन का दौर चल रहा है। उन्होंने बताया, ‘इस सेक्टर में तर्कहीन अधिकता देखने को मिल रही थी। अब इस सेक्टर में युक्तिसंगत तरीका अपनाया जाएगा।
स्पष्ट है कि कंपनियां अब लागत प्रभावी संरचना की ओर ध्यान दे रही हैं।’ हालांकि मंदी के इस आलम में भी रियल ग्लोबल ब्राडकास्टिंग, जो मिडिटेक और टर्नर की संयुक्त उद्यम है, इस 2 मार्च को अपना नया हिंदी मनोरंजन चैनल शुरू करने वाली है।
इसी रविवार को आंध्र साक्षी टीवी भी एक नए तेलगु समाचार चैनल को शुरू करने वाली है। नेटवर्क 18 भी 60 दिनों से भी कम समय में इंटरनैशनल बिजनेस पत्रिका फोर्ब्स को शुरू करने की तैयारी में है।
इसी हफ्ते की शुरुआत में इंडिया टुडे अमेरिकी फैशन पत्रिका हार्पर्स बाजार को लॉन्च कर चुकी है। इंडिया टुडे के सीओओ माला सेखरी ने बताया कि फिलहाल इस पत्रिका की बहुत ही छोटी टीम है।
बहरहाल, एक ओर जहां मंदी की मार से मीडिया कंपनियां हलकाल हैं वहीं मीडिया स्कूल भी मुश्किलों के दौर से गुजर रही हैं। पत्रकारिका का मक्का कहे जाने वाले भारतीय जनसंचार संस्थान के आनंद प्रधान ने बताया कि साल 2008 के बैच में 200 छात्र थे और उन सभी को प्लेसमेंट मिल गया था।
हालांकि इस साल मुश्किल से 15 छात्रों को ही जॉब ऑफर किया गया है (इनमें से 11 छात्रों को बिानेस स्टैंडर्ड में प्लेसमेंट मिला था)।
हालांकि इसके इतर टीवी टुडे की मीडिया अकादमी के प्रमुख सोना झा ने बताया कि स्कूल के 30 छात्रों को कंपनी में ही जगह मिल जाएगी लेकिन सच्चाई तो यही है कि तमाम न्याू मीडिया में भर्तियां बंद पड़ी हुई हैं।
(साथ में शोभना सुब्रमण्यन)
मुख्य बातें
एनडीटीवी
न्यूज आपरेशन्स से राजस्व 10 प्रतिशत गिर गया है। शुध्द घाटा 16 करोड़ रुपये. का है। एनडीटीवी इमेजिन से, कलर्स जितना ही, करीब 35 करोड़ रुपये का राजस्व मिलता है। लेकिन इसकी जीआरपी 60 से 80 के बीच है। एनडीटीवी अपने समाचार और मनोरंजन परिचालन को अलग कर रहा है।
आईबीएन-18
आीबीएन का अनुमानित राजस्व 33 करोड़ रुपये है। कलर्स समेत वायकॉम 18 ने 125 करोड़ रुपये के राजस्व पर 65 करोड़ रुपये का परिचालन घाटा दर्ज किया है।
जी एंटरटेनमेंट
प्रबंधन ने विज्ञापन राजस्व में बढ़त 30 से घटाकर 15 प्रतिशत कर दी है। परिचालन मुनाफा बी 25 से घटाकर 5 फीसदी किया है।
डेक्कन क्रानिकल
परिचान मार्जिन 65.4 प्रतिशत से घटकर 25.3 प्रतिशत रह गए हैं। कारण कि विज्ञापन राजस्व घटा है और परिचालन लागत बढ़ी है।
नेटवर्क 18
मुख्य समाचार प्रसारण परिचालन के राजस्व में 32 प्रतिशत की कमी। वेब 18, इन्फोमीडिया और न्यूजवायर 18 के घाटों के लिए पैसा दे पाना मुश्किल होगा।
जी न्यूज
प्रमुख क्षेत्रीय बाजारों में हिस्सा बढ़ने से विज्ञापन राजस्व में 39 प्रतिशत की शानदार बढ़ोतरी हुई है।
जागरण प्रकाशन
जागरण ने अपना क्षेत्रीय बिजनेस अखबार शुरू करने की योजना अनिश्चितकाल के लिए टाल दी है। वह टीवी 18 के साथ यह अखबार लाने वाला था।
एचटी मीडिया
दिसंबर में मिंट और हिंदुस्तान की कवर प्राइस बढ़ी। हिंदी दैनिक हिंदुस्तान दैनिक जागरण की कीमत पर बढ़ रहा है। इसकी पाठक संख्या अब 90 लाख से ज्यादा है लेकिन तिमाही के दौरान विज्ञापन राजस्व महज 4 प्रतिशत बढ़ा है।
हरीश चावला
सीईओ, नेटवर्क 18
मीडिया के लिए यह साल खराब रहेगा। टेलीविजन उद्योग इसकी चपेट में ज्यादा नहीं आएगा क्योंकि एफएमसीजी सेक्टर अभी भी खर्च कर रहा है लेकिन प्रिंट को परेशानी होगी।
प्रिंट पर दबाव ज्यादा है क्योंकि वह जिन क्षेत्रों के बूते बढ़ता है, उनमें अभी खामोशी है। ये क्षेत्र हैं-रियल एस्टेट, बीमा, रिटेल और वित्तीय क्षेत्र।
टीवी सबसे सक्षम माध्यम के रुप में उभर रहा है। पहुंच बढ़ने से इसकी प्रति हजार लागत घठ गई है। केबल और सैटेलाइट वाले घरों की संख्या 4 करोड़ से बढ़कर 8 करोड़ हो गई है।
प्रसारण क्षेत्र पर भी नियमन से असर पड़ा है। वितरण के जरिए चैनल कितना पैसा ले सकते हैं, इसकी भी सीमा है।
रॉनी स्क्रूवाला
चेयरमैन, यूटीवी सॉफ्टवेयर
प्रिंट को छोड़कर समूचा मीडिया उद्योग महज 10 से कुछ ही ज्यादा साल का है। इसलिए इसने ऐसी मंदी पहली बार देखी है। हां, वाकई यह सबसे खराब है।
यूटीवी का अपने चैनलों में कटौती का कोई इरादा नहीं है। हमने अपनी लागत काफी घटा ली है और अपने परिचालन के दूसरे साल यानी 2009-10 में हम अपना घाटा काफी हद तक खत्म कर चुके हैं।
यूचीवीआई को बेचने की बात? नहीं, हमारी ऐसी कोई योजना नहीं है। एफडीआई के नियंत्रण के कारण यूटीवीआई यूटीवी सॉफ्टवेयर का हिस्सा नहीं है। इसका मालिक मैं ही हूं।
मंदी के कारण गिरावट आई है जो पहले से ही आनी तय थी। 70 प्रतिशत से ज्यादा नौसिखिया निवेशक बाजार में आए थे जिनकी नजर आईपीओ और तुरंत पैसा कमाने पर थी। जिस सुधार में दो-तीन साल लगने थे, वह अब या छह महीने में हो रहा है।