सत्यम घोटाले को उजागर हुए एक हफ्ते का वक्त गुजर चुका है। आज इस बाबत दो अलग-अलग तस्वीरें लोगों के सामने हैं। एक स्तर पर तो सरकार ने एक नए बोर्ड का गठन करके अच्छा काम किया है, जिसमें बड़े-बड़े पेशेवर नामों को शामिल किया गया है।
इस वजह से एक ऐसे जहाज को स्थिरता मिली है, जो कभी डूब रहा था। मौजूदा संकटों की पहचान कर उनसे निपटने की कोशिश की जा रही है। कंपनी के नए बोर्ड में नए निदेशकों को शामिल किया जा रहा है। एक नई प्रबंधन टीम को भी लाने की कोशिश की जा रही है।
कंपनी से जुड़े लोगों के दिलों में कंपनी के प्रति भरोसा फिर से जगाने की कोशिश हो रही है। इसके वित्तीय संकट को भी हल करने की कोशिश की जा रही है। साथ ही, एक नए ऑडिटर की तलाश भी जारी है, ताकि कंपनी के बही खातों की सही तस्वीर सामने आ सके।
सरकार ने कंपनी को आर्थिक मदद भी देने के बारे विचार किया था। लेकिन खुशकिस्मती से उसने इस विचार को त्याग दिया क्योंकि जब बैंकों को सत्यम को कर्ज देने के लिए तैयार किया जा सकता हैं, तो करदाताओं के पैसों का इस्तेमाल करने की क्या जरूरत? आखिर आज भी कंपनी के पास अच्छी खासी परिसंपत्ति है और आगे चलकर भी तो वह अच्छी कमाई कर सकती है।
वैसे, कंपनी में कोई प्रमोटर नहीं रहने की वजह से सत्यम पर अधिग्रहण का खतरा मंडराने लगा है। नए बोर्ड को इस बारे में अब सावधानी से फैसला लेना पड़ेगा कि क्या कंपनी को बेच देना चाहिए या फिर इसके बड़े शेयरधारकों को बोर्ड और प्रबंधन में शामिल होने का न्योता देकर इसके स्वतंत्र भविष्य को सुनिश्चित करना चाहिए?
कंपनी के भविष्य के बारे में तो सुनियोजित तरीके से फैसले लिए जा रहे हैं। वहीं दूसरी ओर सत्यम घोटाले की जांच बड़े बेतरतीब तरीके से की जा रही है।
खतरा यह है कि कहीं यह जांच सत्यम घोटाले से भी बड़ा कांड बनकर न उभर जाए। हमारे मुल्क के लिए यह कोई नई बात नहीं है।
आज कई जांच एजेंसियां इस घोटाले को लेकर अति-उत्साह में काम कर रही हैं। साथ ही, सरकारें और नियामक संस्थाएं अपनी-अपनी गलतियों को छुपाने की कोशिशों में लगी हुई हैं। इन दोनों वजहों से जांच में न तो तेजी आ पा रही है और न ही उसे संतोषजनक कहा जा सकता है।
सत्यम घोटाले में भी वही हो रहा है, जो ऐसे मामलों के साथ पहले हुआ है। मीडिया ने इस बारे में इतना हंगामा मचाया कि आज सत्यम या उसके प्रमोटरों से जुड़ी हरेक चीज और हर शख्स को शक की निगाह से देखा जा रहा है।
जिस राज्य सरकार ने मायटास को काफी जमीन और बुनियादी ढांचे से जुड़े कई सारे ठेके दिए थे, वही आज इन ठेके और भूमि आबंटन को रद्द करने के बारे में सोच रही है। अब या तो सरकार पहले गलत थी या आज गलत है।
दोनों में से कुछ भी हो, सरकार की भद पिटनी तो तय है। इस मामले की जांच इंस्टीटयूट ऑफ चार्टर्ड अकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया, स्थानीय पुलिस, आंध्र प्रदेश की सीआईडी की टीम और सीरियस फ्रॉड इंक्वायरी ऑफिस अपने-अपने स्तर पर कर रही है।
वैसे, सत्यम के स्तर के घोटाले में कई स्तरों पर जांच की जरूरत पड़ेगी, लेकिन यह बात भी उतनी ही सच है कि एक पकवान को अगर कई खानसामे मिल कर बनाते हैं, तो उसका सत्यानाश हो जाता है।