भारत में हर साल तकरीबन एक करोड़ वाहन बिकते हैं। दूसरी ओर इसके केवल तीन फीसदी यानी 3,00,000 वाहन ही हर साल रिटायर होते हैं।
इसमें भी खास बात यही है कि ये वाहन बिना किसी तौर तरीके के बड़े ही असंगठित यानी बेतरबीब तरीकें से सड़कों को अलविदा कहते हैं। वैसे केंद्रीय मोटर वाहन अधिनियम के मुताबिक हर वाहन के रिटायर होने की एक निश्चित अवधि है लेकिन मुश्किल से कुछ वाहन मालिक ही इस बात को मानते हैं और वे अपने हिसाब से वाहन चलाते हैं।
शहरों के पुराने वाहन, कस्बों और गांवों का रुख कर लेते हैं। ऐसे में उनको सड़कों से बाहर करने का काम बहुत मुश्किल हो जाता है। हालांकि देश की सड़कों पर दौड़ने वाले ऐसे वाहनों के कोई विश्वसनीय आंकड़े उपलब्ध भी नहीं हैं।
अमेरिका, यूरोप और यहां तक कि दक्षिण कोरिया जैसे परिपक्व बाजारों की तुलना में भारत में वाहनों को रिटायर करने की कोई तय समय सीमा नहीं है। पर्यावरणविदों के अनुसार यह बहुत खतरनाक रुझान है जो पर्यावरण को बहुत नुकसान पहुंचा रहा है। इसके अलावा भारत में पुराने वाहनों के हर एक पुर्जे का उपयोग किए जाने की कोशिश की जाती है जिनमें से कई आखिरकार या तो जमीन में ही पहुंचते हैं या फिर पानी में पहुंच जाते हैं, जिससे आखिरकार पर्यावरण का ही नुकसान होता है।
प्रदूषण बढ़ने के कारणों में से यह भी एक प्रमुख वजह बनता जा रहा है। वाहनों का पुराना पेंट , इंजन ऑयल, लेड, पुरानी बैटरी से निकलने वाला एसिड, पारा और कैडमियम जैसे रसायन, पुराने टायर, जला हुए प्लास्टिक और तांबे के तार किसी न किसी तरह से पर्यावरण को प्रदूषित ही करते हैं। पुराने वाहनों के पुर्जों से निकलने वाले रसायन जमीन में घुलकर बाद में लोगों को ही प्रभावित करते हैं।
इनिशिएटिव फॉर ट्रांसपोर्टेशन ऐंड डेवलपमेंट प्रोग्राम के कार्यक्रम निदेशक नलिन सिन्हा कहते हैं कि पुरानी बैटरियों के बक्से अक्सर खुले में ही जमीन पर देखे जा सकते हैं। अमेरिका, जापान और यूरोपीय देशों में पुरानी कारों को रिटायर करने के बारे में कानून हैं। जापान में जैसे-जैसे कार पुरानी होती जाती है वैसे-वैसे कार मालिक को उस पर ज्यादा कर देना पड़ता है। इसके चलते वहां बड़ी संख्या में पुरानी कारें जल्द ही सड़कों पर दौड़ना छोड़ देती हैं।
इस वजह से जापान सरकार को 1995 के ‘ऑटोमोबाइल रिसाइक्लिंग लॉ’ को लागू करने में मदद मिलती है। जापानी ऑटो कंपनियां भी इसी वजह से पर्यावरण के अनुकूल उत्पाद बनाती हैं जिनके अधिकतर हिस्सों का 95 फीसदी तक दोबारा उपयोग भी हो सके। जापान में बड़ी कार कंपनियां नई कार की खरीद के समय ही लोगों से रिसाइक्लिंग शुल्क ले लेती हैं, हालांकि यह कार के स्तर पर तय होता है।
फिर भी कार मालिकों को लगभग इसके लिए 65 से 166 डॉलर चुकाने पड़ रहे हैं। जापान में पुराने वाहनों के कचरे के लिए जमीन कम पड़ती जा रही है। जापानियों ने इसके लिए दूसरा रास्ता भी खोज निकाला है। मसलन चार साल पुरानी जापानी कारें श्रीलंका जैसे देशों में आकर्षक कीमतों पर बिक जाती हैं, क्योंकि श्रीलंका में जापान की तरह पुराने वाहनों को लेकर कड़े प्रावधान नहीं हैं।
भारत में भी 2005 में सोसायटी ऑफ इंडियन ऑटोमोबाइल मैन्युफैक्चरर्स (एसआईएएम) ने पुराने वाहनों को जल्द रिटायर करने संबंधी और देश में ऑटो उद्योग की हालत की रिपोर्ट अलग-अलग मंत्रालयों को सौंपी थी। भारत में पुराने वाहनों की स्थिति की रिपोर्ट वित्त मंत्रालय, भूतल परिवहन मंत्रालय, पर्यावरण और भारी उद्योग मंत्रालय (विशेष रूप से इसी मंत्रालय ने यह अध्ययन कराया था) को सौंपी थी।
एसआईएएम के महानिदेशक दिलीप शिनॉय का कहना है कि इस मामले में स्थिति पहले जैसी ही है और उसमें कोई सुधार नहीं हुआ है। एसआईएएम ने सितंबर 2007 में नैशनल ऑटोमोटिव टेस्टिंग ऐंड आरएंडडी इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट (एनएटीआरआईपी) को एक प्रस्ताव भी दिया जिसमें पुराने वाहनों की रिसाइक्लिंग के बारे में कुछ सुझाव दिए गए थे। इस अध्ययन से जुड़े अधिकारियों का मानना है कि देश में पुराने वाहनों का कोई भी वैज्ञानिक तरीका राजनीतिक रूप से बहुत संवेदनशील हो सकता है।
उनका कहना है कि रिसाइक्लिंग का अधिकतर काम सड़क किनारे के मैकेनिक ही कर रहे हैं और इस कचरा काम के लिए उन्होंने मुख्य रूप से बच्चों को ही लगा रखा है। दूसरी ओर भूतल परिवहन मंत्रालय और भारी उद्योग मंत्रालय ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि पुराने वाहनों को सही तरीके से ठिकाने लगाने का काम उनके मंत्रालय के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता।
भारी उद्योग मंत्रालय के एक अधिकारी का कहना है कि हमारे मंत्रालय की चिंता उत्पादन और वाहनों का रखरखाव जैसी चीजों को लेकर है लेकिन पुरानी गाड़ियों को ठिकाने लगाना मंत्रालय का काम नहीं है। दूसरी तरफ भूतल परिवहन मंत्रालय के अधिकारी इस मामले को भारी उद्योग मंत्रालय से जुड़ा हुआ बताकर गेंद उसके पाले में डाल रहे हैं। रिसाइक्लिंग की बाबत वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के एक अधिकारी का कहना है कि वह एसआईएएम के बताए प्रावधानों से काफी हद तक सहमत हैं।
उनका कहना है कि पुराने वाहनों का गलत तरीके से स्क्रैपिंग करने से पर्यावरण को बहुत नुकसान हो रहा है, जो बहुत ही चिंताजनक है। लेकिन वह भी इस मामले से अपना पल्ला झाड़ते हुए कहते हैं कि स्क्रैप यार्ड्स का निर्माण, स्क्रैप साइट का रखरखाव जैसे काम मंत्रालय के अधीन नहीं आते। एक ओर जहां स्क्रैपिंग के प्रावधानों के क्रियान्वयन में देरी होती जा रही है वहीं दूसरी ओर एसआईएएम ने अपना दूसरा प्रस्ताव ‘फ्लीट मॉडर्नाइजेशन’ के नाम से रख भी दिया है जिस पर सरकार का ध्यान भी गया है। उम्मीद है कि इस साल के आखिर तक इस समस्या से निजात पाने का कोई मसौदा तैयार भी हो जाए।