खबरों के मुताबिक सरकार संकट से जूझ रहे दूरसंचार क्षेत्र के लिए एक राहत पैकेज पर विचार कर रही है। वह ऐसे रास्ते भी तलाश रही है जिसके जरिये सेवा प्रदाताओं को समायोजित सकल राजस्व (एजीआर) से संबद्ध बकाया चुकाने के लिए मौजूदा 10 के बजाय 20 वर्ष की अवधि दी जा सके। ये दोनों कदम प्राथमिक तौर पर तो नकदी संकट से जूझ रही वोडाफोन आइडिया (वीआई) को कारोबार में बने रहने में मदद करेंगे लेकिन इसका सर्वाधिक लाभ उपभोक्ताओं को मिलेगा।
ऐसे में सरकार को राहत पैकेज में देरी नहीं करनी चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि दूरसंचार क्षेत्र दो कंपनियों का दबदबा न रह जाए। दूरसंचार विभाग का मानना है कि कोई ऐसी नीति या पैकेज नहीं होना चाहिए जिससे किसी खास कंपनी को लाभ पहुंचे। यह उचित भी है। बहरहाल, इस मामले में हमें व्यापक तस्वीर पर नजर डालनी चाहिए।
दूरसंचार विभाग का घोषित लक्ष्य है नागरिकों को सशक्त बनाना, डिजिटल खाई दूर करके सामाजिक-आर्थिक विकास प्रदान करना तथा अन्य। इस बीच क्षेत्रीय नियामक भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) को दूरसंचार सेवाओं का नियमन इस प्रकार करना है ताकि सेवा प्रदाताओं और उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा हो सके और यह क्षेत्र व्यवस्थित तरीके से आगे बढ़ सके। यदि वीआई संकट में पड़ती है तो यह क्षेत्र गैर प्रतिस्पर्धी और उपभोक्ता विरोधी हो जाएगा। वीआई से जुड़े कुछ हालिया घटनाक्रम से संकेत मिलता है कि अगर सरकार दूरसंचार क्षेत्र के लिए सार्थक पैकेज के साथ दखल नहीं देती तो कंपनी के सामने दूसरी कोई राह नहीं है। उद्योगपति कुमार मंगलम बिड़ला ने वीआई में आदित्य बिड़ला समूह की हिस्सेदारी सरकार या किसी अन्य संस्था को बेचने की पेशकश करने के बाद वीआई के गैर कार्यकारी चेयरमैन के पद से इस्तीफा दे दिया। बिड़ला ने कैबिनेट सचिव को पत्र लिखकर सरकार से गुहार की थी कि वह कंपनी को बचा ले।
उनकी इस गुहार को भारती एयरटेल का समर्थन भी मिला। भारती एयरटेल के मुख्य कार्याधिकारी गोपाल विट्ठल ने कहा था कि भारत जैसे बड़े देश में कम से कम तीन निजी दूरसंचार कारोबारियों की जरूरत है। यह भी एक वजह है कि सरकार को जल्दी कदम उठाकर दूरसंचार क्षेत्र का वित्तीय तनाव दूर करना चाहिए ताकि बाजार दो कंपनियों तक सिमट कर न रह जाए।
यदि दूरसंचार बाजार दो कंपनियों तक सिमटा तो इसका बुरा असर न केवल उपभोक्ताओं पर पड़ेगा बल्कि इससे सरकार पर वित्तीय बोझ भी पड़ सकता है क्योंकि कंपनियां अपने राजस्व का एक हिस्सा सरकार के साथ साझा करती हैं। उस लिहाज से देखें तो सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि इस क्षेत्र को दुधारू गाय नहीं समझा जा रहा है और इसलिए सांविधिक बकाये की समीक्षा होनी चाहिए। तैयार किए जा रहे राहत पैकेज के अलावा दूरसंचार विभाग को एजीआर के घटकों पर भी नए सिरे से विचार करना चाहिए जिसमें ब्याज से होने वाली आय, लाभांश, परिसंपत्ति बिक्री से हुआ मुनाफा, बीमा दावे तथा विदेशी मुद्रा संबंधी आय शामिल हैं। दूरसंचार कंपनियां लंबे समय से एजीआर के आकलन को लेकर कानूनी लड़ाई लड़ रही हैं। इसके अलावा आगामी 5जी स्पेक्ट्रम नीलामी को भी तार्किक बनाया जाना चाहिए ताकि कंपनियों को आगे परेशानी न हो। दूरसंचार कंपनियों को भी खुद को संकट से निकालना होगा। इसके लिए कई अन्य कारकों के साथ रिलायंस जियो द्वारा शुरू में दी गई भारी छूट और अन्य कंपनियों द्वारा उसका अनुसरण करना भी एक वजह है। टैरिफ को उचित बनाया जाना चाहिए, हालांकि इस दौरान ट्राई को आधार कीमत तय नहीं करनी चाहिए। दूरसंचार कंपनियों ने पोस्ट पेड क्षेत्र में छोटी पहल की हैं लेकिन उनकी वित्तीय सेहत सुधारने के लिए उन्हें व्यापक प्रीपेड ग्राहकों से सेवाओं के लिए और पैसे मांगने होंगे। सरकारी पैकेज के साथ ऐसे कदम उठाकर दूरसंचार उद्योग को बचाया जा सकता है।