मैकडॉनाल्ड के बर्गर और डोमिनो के पिज्जा को अब बन-समोसे और नानीज के रुप में देसी व्यंजनों से चुनौती मिलने वाली है।
देसी पकवान की रिटेल कंपनी, स्ट्रीट फूड ऑफ इंडिया (एसएफआई) जल्द ही उत्तर भारत में अपने बैनर तले तुरंत सेवा रेस्तरां (क्विक सर्विस रेस्टॉरेंट, क्यूएसआर) खोलने जा रही है।
इसके प्रमोटर मशहूर शेफ जिग्स कालरा के बेटे जोरावर कालरा हैं। वैसे दिल्ली और आसपास कंपनी पहले से ही पांच क्यूएसआर आउटलेट चला रही हैं जबकि इस साल दिसंबर तक आठ-नौ नये आउटलेट खोले जाने की योजना है। साथ ही फूड कार्ट्स शुरू करने की भी योजना है।
जोरावर कालरा कहते हैं कि उनका मकसद सब तक एसएफआई पहुंचाना है। उनका कहना है कि वह ऐसा खाना अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं जो लोगों की जेब पर भी भारी न पड़े। उनका कहना है कि वे लोगों को लजीज भारतीय स्ट्रीट फूड से रूबरू कराना चाहते हैं। वैसे इस तरह का आइडिया विदेशों में काफी लोकप्रिय हो चुका है जहां स्थानीय कंपनियां ‘हैम्बर्गर’ और ‘स्थानीय व्यंजन’ रिटेल में बेचती हैं। इस तरह के फास्ट फूड को स्वच्छता के साथ लोगों को उपलब्ध कराया जाता है।
एसएफआई का कहना है कि उसकी सबसे खास बात किफायती दामों पर बढ़िया भारतीय व्यंजन बेचना है। भारत में फिलहाल ब्रांडेड फास्ट फूड का कारोबार 450 करोड़ रुपये का है। अब यह कंपनी फास्ट फूड के बाजार में मैकडॉनाल्ड, पित्जा चेन और अन्य स्थानीय रेस्तरां के कारोबार में सेंध लगाने के लिए उनसे टक्कर लेगी। यहां का मेन्यू 20 रुपये से शुरू होकर 280 रुपये तक है, मतलब कि यहां की सबसे सस्ती डिश 20 रुपये की है तो सबसे महंगी डिश 280 रुपये में मिल जाती है।
कालरा का कहना है कि कोई भी चीज घर के बने देसी खाने की जगह नहीं ले सकती। अपनी कम कीमत वाली रणनीति से हम हर वर्ग के ग्राहक को अपनी ओर खींचना चाहते हैं। एसएफआई की जो मशहूर डिश हैं, उनमें बन-समोसा, नान, दाल मखनी, कढ़ी-चावल और बिरयानी आदि शामिल हैं। लाइट बाइट फूड्स के अमित बर्मन और पीवीआर सिनेमा के अजय बिजली के अलावा कई अन्य निवेशकों की वित्तीय मदद के सहारे यह फूड चेन शुरू हुई है।
एसएफआई क्विक सर्विस रेस्टोरेंट के साथ-साथ देश भर में फुल सर्विस रेस्टोरेंट खोलने की योजना पर भी काम कर रही है। हालांकि यह पहला मौका नहीं है जब किफायती दाम में खाना बेचने वाले क्विक सर्विस रेस्टोरेंट की शुरुआत हुई है। कुछ साल पहले चीन की रेस्तरां शृंखला ‘यो चाइना’ ने भी राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में रेस्टोरेंट की शुरुआत की थी। पर अब बाजार पर इसकी पकड़ कमजोर होती जा रही है क्योंकि इसका खाना अब पहले की तुलना में लोगों की जेब पर भारी पड़ता जा रहा है।
कुल मिलाकर कहें तो अब इसका खाना किफायती नहीं रह गया है। वैसे इसमें इस चीनी रेस्टोरेंट को कोई कसूर नहीं है। दरअसल पिछले कुछ समय से पेट्रोल, डीजल, खाने के लिए जरूरी कच्चे माल और किराये में काफी बढ़ोतरी हुई है। यो-चाइना के एक अधिकारी कहते हैं कि हमारा मुनाफा बहुत कम होता जा रहा था इसलिए हम लोगों को रणनीति में परिवर्तन करना पड़ा।
दूसरी ओर कम मुनाफे पर बिक्री को लेकर कालरा कहीं से भी परेशान नहीं हैं। उनका कहना है कि जब उनका वितरण का दायरा बढ़ेगा तो मुनाफा अपने आप बढ़ेगा। साथ ही उनका यह भी कहना है कि वह केवल 15 से 20 डिशों पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं जिससे कि लागत को नियंत्रित किया जा सके। हालांकि एसएफआई के सामने एक बड़ी चुनौती बढ़े हुए किराये से पार पाने की भी है।
फूड इंडस्ट्री के एक विशेषज्ञ भी यही बात कहते हैं कि दिल्ली, चंडीगढ़ और लुधियाना जैसे शहरों में किराये में बेतहाशा तेजी आई है। इन शहरों में किसी भी मॉल में 1,000 वर्ग फुट जगह का किराया 3 लाख रुपये सालाना से कम नहीं है। उनका मानना है कि यदि इन कंपनियों को सालाना मुनाफे में बढ़ोतरी करनी है तो इनको रोजाना की बिक्री में तेजी लानी होगी। वहीं एक दूसरे फूड एक्सपर्ट का मानना है कि एसएफआई सफल हो सकता है बशर्ते कि यह मॉडल 2 से 4 साल तक सही चलता रहे।