गुजरात के नमक किसान अब नई तकनीक के जरिये अपना काम कर सकेंगे।
अभी तक प्रदेश के किसान डीजल पंपों से पानी उठाकर ही परंपरागत रूप से नमक का उत्पादन करते थे लेकिन अब ग्रासरूट इनोवेशन ऑगमेंटेशन नेटवर्क (जीआईएएन) नमक उत्पादकों के लिए नई तकनीक लाया है।
यह नेटवर्क राज्य के तटीय इलाकों में कम कीमत की पवन चक्कियां लगा रहा है।
इस तकनीक में कच्चे तेल की बजाय ऊर्जा के नए स्रोतों का इस्तेमाल किया जाएगा। इससे नमक उत्पादकों की लागत में कमी आने की उम्मीद है। पहले के मुकाबले अब इस नई तकनीक में जीआईएएन ने और सुधार किए हैं। जीआईएएन की पहचान तकनीक को बढ़ावा देने वाले संगठन की रही है।
जीआईएएन के संस्थापक और भारतीय प्रबंधन संस्थान, अहमदाबाद में फैकल्टी के सदस्य अनिल गुप्ता कहते हैं, ‘इस तकनीक में अपार संभावनाएं हैं और तटीय इलाकों के किसानों के लिए यह फायदेमंद साबित होगी। हमने मूल तकनीक में जरूरी तब्दीलियां करके इस तकनीक को और बेहतर बनाया है।नई विंडमिल (पवनचक्की) में ब्लेड के जरिये ज्यादा ऊर्जा पैदा होगी जिससे पानी और गहराई से निकाला जा सकेगा।’ इस विंडमिल की कीमत 25,000 रुपये के आसपास होगी।
जीआईएएन में चीफ इनोवेशन मैनेजर महेश पटेल कहते हैं, ‘बाजार में मौजूद ज्यादातर विंडमिल बहुत महंगी हैं, लिहाजा वे इन किसानों की पहुंच से बाहर हैं। गियर बॉक्स की ऊंची कीमतों की वजह से इनकी कीमतें 85,000 रुपये तक हैं। हमारे विंडमिल की कीमत तो काफी कम है ही साथ ही इसके रखरखाव का खर्चा भी बहुत कम आता है।
हम पहले ही इसका पेटेंट करा चुके हैं और गुजरात में इसे व्यावसायिक पैमाने पर बनाने की योजना बना रहे हैं और बड़ी संख्या में किसान भी इसको खरीदने में रुचि दिखा रहे हैं। वैसे, इस दिशा में शोध का काम अभी भी चल रहा है लेकिन हमने राज्य के जूनागढ़ और कच्छ जैसे तटीय इलाकों में इसको लगाया है। इस काम में अहमदाबाद की एक गैर सरकारी संस्था ‘विकास’ ने भी हमारा सहयोग किया है। परीक्षण के दौर में भी हमें विकास का सहयोग मिला था।’
दरअसल इस खोज की बुनियाद असम के मोहम्मद मेहतार हुसैन और मुश्ताक अहमद नाम के दो भाइयों ने रखी थी। उनको सर्दियों में धान की खेती के लिए कुंओं से पानी की जरुरत पड़ती थी।
उन दोनों को लगा कि हाथों से लगातार पानी ढोने में बहुत मेहनत लगती है और यह बिल्कुल भी आसान नहीं है। दूसरी ओर डीजल इंजन का विकल्प भी उनको बिल्कुल नहीं जंचा।अपनी जरुरत के चलते इन भाइयों ने एक बड़ा व्हील विकसित किया जो पवन ऊर्जा पर चल सकता था और उन्होंने इस व्हील को एक टरबाइन के साथ जोड़ा जो हैंडपैंप से पानी खींच सके।
जैसे-जैसे टरबाइन घूमती वैसे-वैसे पानी भी खिंचता जाता। इन लोगों ने बांस, लकड़ी, स्ट्रिप्स, पुराने टायरों और लोहे की मदद से विंडमिल यूनिट बनाई।
उन दोनों ने इससे पहले कोई विंडमिल नहीं देखी थी और एक स्थानीय बढ़ई की मदद से केवल चार दिन के भीतर ही उनकी पहली विंडमिल बनकर तैयार थी।