कई साल पहले मोटी कर छूटों के साथ विशेष आर्थिक क्षेत्रों (सेज) की घोषणा की गई थी। तभी से ज्यादातर अर्थशास्त्री इस बात की आशंका जता रहे थे कि इससे करों से होने वाली कमाई को भारी घाटा उठाना पड़ेगा।
उन्हें डर था कि सेज इलाकों में मिलने वाली छूटों की वजह से सारे उद्योग-धंधे उन्हीं जगहों की ओर रुख कर लेंगे। इस वजह से उनसे होने वाली कर कमाई कम हो जाएंगी। साथ ही, नए उद्योग भी वहीं अपना ठिकाना बनाएंगे, जिससे और नुकसान उठाना पड़ेगा।
कुछ ऐसी ही राय थी वित्त मंत्रालय के अधिकारियों की, जिनके मुताबिक सेज योजना से कर कमाई में होने वाला घाटा हजारों करोड़ रुपये में था। दूसरी तरफ था वाणिज्य मंत्रालय, जो राजग सरकार के समय से ही इस योजना को लागू करने की जबरदस्त मांग कर रहा था।
उस वक्त वाणिज्य मंत्री की कुर्सी पर मुरासोली मारन बैठे हुए थे। तब उनके मंत्रालय ने इन आंकड़ों को पूरी तरह काल्पनिक बताते हुए कहा था कि कर छूटों की वजह से ही कंपनियां निवेश के लिए इस परियोजना में इतनी रुचि दिखला रही हैं।
अगर, इसे वापस ले लिया जाएगा, तो ये परियोजनाएं शुरू होने से पहले ही बंद हो जाएंगी, क्योंकि कोई इनमें निवेश करने की उत्सुकता नहीं दिखाएगा। सेज के वकीलों ने इसके लिए भारतीय कंपनियों का चीन में किए जा रहे निवेश का हवाला देते हुए कहा कि सेज में मिल रही कर छूटों की वजह से ही हमारा मुल्क चीन की बराबरी कर पाएगा।
इस मामले में पक्ष और विपक्ष, दोनों ने अपना केस मजबूत करने के लिए काफी अध्ययन किए, लेकिन इस मामले में बहस जारी रही। अब आई है बारी वित्त मंत्रालय के एक अध्ययन की। अध्ययन के मुताबिक सेज की वजह से मुल्क की माली हालत को कोई नुकसान नहीं पहुंचा है। हालांकि, इस रिपोर्ट पर खुद मंत्रालय के भीतर से ही सवाल उठ रहे हैं। लेकिन क्या कारोबारी केवल करों में मिलने वाली छूट की वजह से ही इन इलाकों में आ रहे हैं?
कंपनियां खराब बुनियादी ढांचे और श्रम कानूनों से कैसे निपटेंगी? सेज के वकीलों की मानें तो इन्हीं वजहों से तो सेज की सबसे ज्यादा जरूरत है। उनका कहना था कि मुल्क के चुनिंदा बड़े कारोबारी घरानों के शामिल होने वजह से यहां का बुनियादी ढांचा विश्व स्तर का होगा। जहां तक श्रम कानूनों की बात है, सरकार यहां हायर और फायर की पॉलिसी पर हामी भर सकती है।
वैसे सेज के अंदर और ज्यादा उदार श्रम कानूनों को बढ़ावा देना ठीक नहीं होगा, लेकिन चलिए शुरुआत तो हुई। वैसे अखबारों और खबरिया चैनलों की मानें तो यह पूरी की पूरी कवायद अब बड़े खतरे में है।
कई राज्य सरकारों ने और भी उदार श्रम कानूनों की सिफारिश की है, लेकिन इस मुद्दे के बारे में केंद्र सरकार ही आखिरी सहमति दे सकती है। केंद्र ने इस मामले में महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश के प्रस्तावों को भी ठुकरा दिया है। इस वजह से श्रम आधारित उद्योगों में निवेश पर असर पड़ सकता है। इसे सेज के विकास की राह का एक बड़ा रोड़ा माना जा रहा है, जिसे दूर न किया गया तो सेज बेकार हो जाएंगे।