सितंबर 2021 में उपभोक्ता धारणा में खासा सुधार आया है। उपभोक्ता धारणा सूचकांक 25 सितंबर को 58.2 रहा जो अगस्त में 53.9 और जुलाई में 53 था। सितंबर में ग्रामीण एवं शहरी दोनों क्षेत्रों में सुधार आया है लेकिन यह ग्रामीण भारत ही है जिसने पिछले हफ्तों में लगे कुछ झटकों के बावजूद उम्मीद जगाना जारी रखा है।
सितंबर के पहले दो हफ्तों में ग्रामीण भारत में उपभोक्ता धारणा में हुआ त्वरित एवं प्रभावी सुधार तीसरे हफ्ते में एक हद तक गायब हो गया। ग्रामीण सूचकांक 5 सितंबर को समाप्त सप्ताह में 4.9 फीसदी बढ़ा था और फिर 12 सितंबर को खत्म हफ्ते में उसमें 9 फीसदी बढ़त दर्ज की गई थी। इस तरह अगस्त 2021 के अंत में 56.8 पर रहा ग्रामीण सूचकांक महज 12 दिनों में ही 64.2 हो गया जो कि 13 फीसदी की बेहतरीन तेजी दिखाता है। ऐसा लग रहा था कि ग्रामीण धारणा के मामले में सितंबर 2021 में आगे भी तेजी का दौर बना रहेगा। लेकिन 19 सितंबर को समाप्त सप्ताह में उपभोक्ता धारणा के ग्रामीण सूचकांक में 8.8 फीसदी की बड़ी गिरावट हो गई। इस वजह से अगस्त अंत से सितंबर में अब तक हुई बढ़त सिर्फ 3.1 फीसदी रह गई। हालांकि महीने के अंतिम हफ्ते में स्थिरता का रुख रहा और 26 सितंबर को खत्म हफ्ते में ग्रामीण उपभोक्ता धारणा सूचकांक 58.6 के स्तर पर ही टिका रहा।
इन सभी साप्ताहिक घुमावों के बाद उपभोक्ता धारणा का ग्रामीण सूचकांक अगस्त के स्तर से 3.1 फीसदी ऊपर बना हुआ है। यह ग्रामीण सूचकांक में औसत मासिक बढ़त से काफी ज्यादा है। पिछले 12 महीनों में औसत मासिक बढ़त 1.1 फीसदी रही है।
सितंबर में अब तक का प्रदर्शन खासा प्रेरणादायक है क्योंकि ग्रामीण उपभोक्ता धारणा सूचकांक में लगातार चौथे महीने बढ़त रही है। जून में ग्रामीण भारत सूचकांक 0.4 फीसदी, जुलाई में 10.7 फीसदी और अगस्त में 4 फीसदी बढ़ा था। इन तीन महीनों में कुल बढ़त 15.6 फीसदी रही। इस तरह ग्रामीण धारणा सूचकांक कोविड-19 की दूसरी लहर में लगे झटके से पूरी तरह उबर गया। ग्रामीण धारणा सूचकांक में सुधार का यह हालिया दौर खासा उत्साहजनक है।
इसकी संभावना है कि ग्रामीण उपभोक्ता धारणा सूचकांक का सितंबर में समापन कोविड-19 आने के बाद के किसी भी महीने से ऊंचे स्तर पर होगा। ग्रामीण उपभोक्ता धारणा सूचकांक का 30-दिवसीय चल औसत 25 सितंबर को 61.7 था। यह 11 सितंबर से ही 60 के स्तर से ऊपर बना हुआ है। यह 21-23 सितंबर के दौरान 62.4 के शीर्ष पर पहुंच गया। मार्च 2020 में 97.1 पर रहने के बाद से यह सूचकांक किसी भी महीने में 60 से ऊपर नहीं रहा है।
अगस्त 2021 तक ग्रामीण भारत में नजर आए आशावाद का बड़ा कारण सालाना 2 लाख से 5 लाख रुपये की आमदनी वाले परिवार रहे। हमें अक्टूबर की शुरुआत में ही पता चल पाएगा कि सितंबर के महीने में ग्रामीण भारत में जारी तेजी का जरिया क्या रहा?
जहां हाल के महीनों में ग्रामीण उपभोक्ता धारणा सूचकांक में दिखी तेजी असरदार है, वहीं इसका कोविड-पूर्व स्तर पर पहुंच पाना अभी काफी दूर है। दिसंबर 2019 में यह सूचकांक 110 के स्तर पर था।
अगर शहरी भारत की बात करें तो वह उपभोक्ता धारणा के मामले में ग्रामीण क्षेत्र से पिछड़ रहा है। मसलन, 25 सितंबर को ग्रामीण भारत उपभोक्ता सूचकांक 61.7 था जबकि शहरी भारत का उपभोक्ता धारणा सूचकांक 51.2 था और दोनों में 20.5 फीसदी का बड़ा अंतर रहा।
लगता है कि शहरी भारत को उपभोक्ता धारणा में सुधार का सिलसिला कायम रखने में खासी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। ग्रामीण भारत में रही 5.28 फीसदी मुद्रास्फीति की तुलना में शहरी क्षेत्र में मुद्रास्फीति दर 5.32 फीसदी है और बेरोजगारी दर के मामले में भी यह 8.8 फीसदी के साथ ग्रामीण भारत (6.2 फीसदी) से काफी ऊपर है। शायद दोनों क्षेत्रों में रोजगार का फर्क कहीं ज्यादा प्रासंगिक है। जहां शहरी भारत में मार्च में करीब 20 लाख रोजगार गए थे, वहीं ग्रामीण भारत ने मार्च 2020 की तुलना में 1.4 फीसदी अधिक रोजगार जोड़े। जहां महामारी के मुश्किल वक्त में ग्रामीण भारत कुछ ज्यादा लोगों को रोजगार दे पाया, वहीं शहरी भारत ऐसा कर पाने में नाकाम रहा है। नतीजतन शहरी परिवारों की आय जहां कम हुई है, वहीं ग्रामीण परिवारों की आय में सुधार देखा जा रहा है।
अप्रैल 2021 में ग्रामीण भारत में परिवारों की औसत आय महामारी से पहले के साल 2019-20 में औसत मासिक आय से सांकेतिक तौर पर 7.3 फीसदी ज्यादा थी। लेकिन शहरी भारत में शहरी भारत की औसत पारिवारिक आय वर्ष 2019-20 की तुलना में 12.3 फीसदी कम थी। शहरी क्षेत्रों में रोजगार जाने का दौर जारी रहने और आय में आई गिरावट शहरी भारत की खराब धारणा में भी परिलक्षित होती है।
इसकी संभावना कम ही है कि शहरी भारत की तस्वीर में अप्रैल 2021 के बाद कोई सुधार आया होगा। दूसरी तरफ मॉनसून के अनियमित रहने और बुआई में हुई देरी के बावजूद खरीफ सत्र की फसल अच्छी रहने की संभावना है।
सितंबर महीने में उपभोक्ता धारणा का शहरी सूचकांक 4.4 फीसदी बढ़ा है जो ग्रामीण क्षेत्र में दर्ज 3.1 फीसदी की बढ़त से ज्यादा है। लेकिन यह बेहतर वृद्धि भी ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों की उपभोक्ता धारणा सूचकांकों में व्याप्त फासले को पाटने के लिए नाकाफी है। दोनों सूचकांकों के बीच का फर्क 31 अक्टूबर को 15.8 फीसदी का था और 25 सितंबर को यह बढ़कर 20.5 फीसदी हो गया।
उपभोक्ता धारणा एवं परिवार की आमदनी के आंकड़े बताते हैं कि इस साल ग्रामीण भारत में त्योहारों की रौनक ज्यादा रह सकती है।
(लेखक सीएमआईई के प्रबंध निदेशक एवं मुख्य कार्याधिकारी हैं)
