सितंबर 2021 में रोजगार में हुई तीक्ष्ण एवं औचक वृद्धि काफी हद तक ग्रामीण क्षेत्र की देन है। श्रम बाजार के सभी प्रमुख पैमानों पर ग्रामीण भारत में बड़े सुधार देखे गए हैं। वहीं शहरी भारत में भी श्रम परिदृश्य सुधरा है लेकिन वह ग्रामीण भारत की तुलना में कम है। अगस्त में 40.52 फीसदी पर रही श्रम भागीदारी दर सितंबर में बढ़कर 40.66 फीसदी हो गई। इस दर में आया 0.14 फीसदी अंक का सुधार मुख्यत: ग्रामीण भारत में केंद्रित था जहां पर श्रम भागीदारी दर 0.20 फीसदी अंक बढ़ी है। शहरी भारत में दर्ज 0.02 फीसदी अंक के सुधार की तुलना में ग्रामीण क्षेत्र का प्रदर्शन काफी अच्छा रहा है। अखिल भारतीय बेरोजगारी दर सितंबर में गिरकर 6.86 फीसदी पर आ गई जो अगस्त में 8.32 फीसदी के उच्च स्तर पर रही थी। बेरोजगारी दर में आई 1.46 फीसदी की तीव्र गिरावट में ग्रामीण भारत का बड़ा योगदान रहा जहां पर इस मानदंड में 1.58 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई जबकि शहरी भारत में यह सुधार सिर्फ 1.16 फीसदी का रहा। सितंबर में ग्रामीण क्षेत्र में बेरोजगारी दर 6.1 फीसदी रही जबकि शहरी भारत के लिए यह आंकड़ा 8.6 फीसदी था। ग्रामीण भारत में रोजगार दर भी 0.85 फीसदी बढ़कर 39.53 फीसदी पर पहुंच गया जो अगस्त में 38.68 फीसदी था। इसकी तुलना में शहरी भारत में रोजगार दर में 0.47 फीसदी का ही सुधार देखा गया। शहरी भारत में रोजगार दर अगस्त के 34.15 फीसदी की तुलना में 34.62 फीसदी दर्ज की गई। राष्ट्रीय स्तर पर रोजगार दर सितंबर में 0.72 फीसदी बढ़कर 37.87 फीसदी हो गई जबकि अगस्त में यह 37.15 फीसदी थी। इस तरह सितंबर के महीने में 85 लाख रोजगार अवसरों की तीव्र वृद्धि देखी गई। खास बात यह है कि इन 85 लाख रोजगार में से ग्रामीण भारत में करीब 65 लाख रोजगार पैदा हुए।
कुल रोजगार में ग्रामीण भारत की हिस्सेदारी करीब 69 फीसदी होती है लेकिन सितंबर में जुड़े नए रोजगारों में ग्रामीण क्षेत्र का अंशदान 76.5 फीसदी रहा। यह ग्रामीण भारत में असाधारण मासिक रोजगार वृद्धि को दर्शाता है जबकि सितंबर के महीने में कृषि क्षेत्र में भी मजदूरों की मांग अमूमन कम होती है। निश्चित रूप से कृषि ने अतिरिक्त 5.5 लाख रोजगार पैदा किए लेकिन ग्रामीण क्षेत्र में पैदा हुए बाकी 60 लाख रोजगार गैर-कृषि क्षेत्र में थे।
निर्माण क्षेत्र में सबसे ज्यादा अतिरिक्त रोजगार पैदा हुए। इस तीव्र वृद्धि के दो बड़े कारण हो सकते हैं। पहला, सड़क निर्माण में निवेश तेजी से बढ़ा है। सीएमआईई के आंकड़े बताते हैं कि ग्रामीण भारत में सड़क निर्माण परियोजनाओं को तेजी से स्वीकृति दी जा रही है। वर्ष 2020-21 में करीब 1 लाख करोड़ रुपये मूल्य की सड़क परियोजनाएं पूरी हुई थीं और 2021-22 में 1.27 लाख करोड़ रुपये मूल्य की सड़क परियोजनाएं पूरी होने की उम्मीद है। केंद्र सरकार के व्यय के बारे में सीएजी के आंकड़े दर्शाते हैं कि अप्रैल-अगस्त 2021 के दौरान सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय का खर्च वर्ष 2020 की समान अवधि के मुकाबले दोगुने से भी अधिक है। मंत्रालय ने अप्रैल-अगस्त 2020 में 322 अरब रुपये खर्च किए थे जबकि चालू वित्त वर्ष के पहले पांच महीनों में यह खर्च 780 अरब रुपये रहा है। खर्च में तीव्र बढ़ोतरी और आगामी महीनों में भी कई परियोजनाओं के पूरा होने की उम्मीद ने संभवत: निर्माण उद्योग में श्रमिकों की अतिरिक्त मांग पैदा की हो।
दूसरी वजह मनरेगा योजना के तहत मिलने वाले रोजगार में आई तेजी हो सकती है। ग्रामीण विकास मंत्रालय के खर्चों में अप्रैल-अगस्त 2021 के दौरान एक साल पहले की तुलना में 41 फीसदी की गिरावट आई है लेकिन मंत्रालय देर से भुगतान करने के लिए मशहूर है। मनरेगा की वेबसाइट भी सितंबर में दिए गए रोजगार में अचानक तेजी का कोई जिक्र नहीं करती है लेकिन यह वेबसाइट भी समय बीतने पर आंकड़ों में बदलाव करती रहती है। लिहाजा हमें ग्रामीण भारत में निर्माण क्षेत्र में रोजगार के सितंबर में अचानक बढऩे की इस संभावित वजह की पुष्टि के लिए थोड़ा इंतजार करना होगा। ग्रामीण भारत ने सितंबर में विनिर्माण क्षेत्र में भी रोजगार वृद्धि दर्ज की। इस महीने में ग्रामीण विनिर्माण उद्योगों में 47 लाख रोजगार बढ़े। इनमें से 21.6 लाख रोजगार सिर्फ खाद्य उद्योगों में ही पैदा हुए। इसके अलावा धातु एवं कपड़ा उद्योगों में भी क्रमश: 15 लाख एवं 2 लाख नए रोजगार अवसर सृजित हुए।
हालांकि ग्रामीण सेवा क्षेत्र में 68 लाख रोजगारों की बड़ी गिरावट भी दर्ज की गई। अधिकांश प्रमुख सेवा उद्योगों की हालत रोजगार के लिहाज से सितंबर में खस्ता रही। रोजगार गंवाने वालों में खुदरा कारोबार, निजी गैर-पेशेवर सेवाएं, यात्रा एवं पर्यटन और शिक्षा क्षेत्र शामिल हैं।
ग्रामीण भारत में सितंबर के दौरान करीब 65 लाख नए रोजगार पैदा होने से तमाम बेरोजगारों को काम मिल गया। इसका नतीजा यह हुआ कि ग्रामीण भारत में बेरोजगारों की संख्या में 46 लाख की बड़ी गिरावट आई और यह 2.27 करोड़ से घटकर 1.81 करोड़ पर आ गई। ऐसा लगता है कि ग्रामीण भारत में लोगों ने सेवा क्षेत्रों से निकलकर निर्माण एवं विनिर्माण उद्योगों का रुख किया है। लेकिन ग्रामीण भारत में सृजित तमाम नए रोजगार दिहाड़ी मजदूरी वाले थे। हालांकि ग्रामीण भारत में वेतनभोगी रोजगार भी सितंबर में 28 लाख बढ़ा।
वेतनभोगी रोजगार में हुई बढ़ोतरी का बड़ा हिस्सा शहरी भारत का रहा। सितंबर में कुल 69 लाख नए वेतनभोगी रोजगार जुड़े थे जिनमें से करीब 60 फीसदी शहरी भारत में थे। ग्रामीण भारत के 28 लाख की तुलना में शहरी भारत में सितंबर में 42 लाख वेतनभोगी रोजगार जुड़े। लेकिन शहरी भारत में सृजित वेतनभोगी रोजगार की गुणवत्ता अच्छी न होने की आशंका है। शहरी भारत में विनिर्माण क्षेत्र का रोजगार घटा और सेवा क्षेत्र में मिली नई नौकरियों का बड़ा हिस्सा गैर-पेशेवर निजी सेवाओं का रहा। शिक्षा, यात्रा एवं पर्यटन से जुड़े रोजगार बढ़े हैं लेकिन इनकी संख्या कम है। इस तरह सितंबर में बढ़े रोजगार में बड़ी भूमिका ग्रामीण भारत की ही रही है।
(लेखक सीएमआईई के प्रबंध निदेशक एवं मुख्य कार्याधिकारी हैं)
