प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 19 नवंबर को हैरान कर देने वाली यह घोषणा की थी कि सरकार संसद के शीतकालीन सत्र में तीन विवादास्पद कृषि कानूनों को निरस्त कर देगी। लगभग एक साल से किसान संगठनों द्वारा इन कृषि कानूनों का दृढ़तापूर्वक विरोध किया जा रहा है। इस शांतिपूर्ण विरोध के प्रति सरकार का रुख अडिय़ल, असमान रूप से सख्त और अक्सर खतरनाक तौर पर उग्र रहा है। इसलिए प्रधानमंत्री की पीछे हटने की घोषणा सभी को हैरान कर रही थी। इस पर किसान संगठनों की नपी-तुली प्रतिक्रिया रही। उन्होंने जीत का जश्न मनाने के लिए भंगड़ा नहीं किया। उन्होंने अपना ध्यान लक्ष्य से नहीं हटाया। प्रधानमंत्री की घोषणा पर संदेश में उन्होंने यह सुनिश्चित करने के लिए दबाव बनाए रखा कि संसद वास्तव में इन तीन कानूनों को निरस्त कर दे। साथ ही वे कृषि उपज के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य का कानून बनाने की मांग उठाते दिख रहे हैं।
अपने भविष्य की कुशल-क्षेम के संबंध में किसानों का दृष्टिकोण स्पष्ट रूप से उनके आंदोलन के परिणाम से जुड़ा हुआ है। इसलिए जब तक कि प्रधानमंत्री के पीछे हटने से भी पहले उन्हें सफलता नहीं मिली थी, कानूनों के निरस्त होने से उनकी धारणा को उभार मिलने की उम्मीद की गई थी। प्रत्यक्ष रूप में उल्लास की अनुपस्थिति विचार करने योग्य है।
कानूनों को वापस लेने पर मिली-जुली प्रतिक्रिया इस घोषणा के प्रभाव के मात्रात्मक आकलन का अवसर देती है। ग्रामीण भारत के लिहाज से उपभोक्ता धारणाओं के सूचकांक में बदलाव इस तरह की पैमाइश के लिए अच्छा पैमाना है। नए कृषि कानूनों को निरस्त करने से किसानों और उनके बिचौलियों तथा यथास्थिति के अन्य प्रतिभागियों के पारिस्थितिकी तंत्र पर असर पड़ेगा। इसलिए शहरी भारत के मुकाबले ग्रामीण भारत की धारणाओं में बेहतरीन असर देखा जाता है। उपभोक्ता धारणाओं के सूचकांक में दो घटक सूचकांक होते हैं- मौजूदा आर्थिक परिस्थितियों का सूचकांक और उपभोक्ता अपेक्षाओं का सूचकांक। पहले वाला दो सवालों के जवाबों से उत्पन्न होता है : एक साल पहले की तुलना में आज परिवार की आय कैसी है? तथा गैर-जरूरी सामान खरीदने के लिए परिवारों की प्रवृत्ति क्या है? उपभोक्ता अपेक्षाओं का सूचकांक तीन प्रश्नों से उत्पन्न होता है : एक साल बाद परिवार अपनी आय के प्रदर्शन की क्या अपेक्षा करते हैं? वे अगले वर्ष में कारोबारी परिस्थितियों के किस तरह के प्रदर्शन की अपेक्षा करते हैं? और वे अगले पांच वर्षों में कारोबारी परिस्थितियों के किस तरह के प्रदर्शन की अपेक्षा करते हैं?
कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन के परिणाम के अलावा किसानों की कुशल-क्षेम भी चालू वर्ष की फसल के प्रदर्शन से निर्धारित होती है। हम जानते हैं कि खरीफ की फसल अच्छी रही है और रबी की फसल भी अच्छे ढंग से बढ़ रही है। दाम काफी हद तक उत्साहजनक रहे हैं। अच्छी फसल और किसानों को पसंद नहीं आने वाला कानून हटने से उपभोक्ताओं की धारणा को बढ़ावा मिलना चाहिए था। लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
28 नवंबर को समाप्त सप्ताह के नतीजे बताते हैं कि ग्रामीण भारत इस घोषणा से विशेष रूप से प्रभावित नहीं था। ग्रामीण भारत के लिए उपभोक्ता धारणाओं का सूचकांक सप्ताह में केवल 0.3 प्रतिशत तक ही बढ़ा, जो इस घोषणा के बाद का पहला पूर्ण सप्ताह था। यह उपभोक्ता धारणा के शहरी सूचकांक में चार प्रतिशत की गिरावट से काफी बेहतर है। लेकिन यह प्रधानमंत्री की घोषणा के ठीक दो दिन बाद 21 नवंबर को समाप्त होने वाले पिछले सप्ताह में उपभोक्ता धारणाओं के ग्रामीण सूचकांक द्वारा की गई 1.7 प्रतिशत की बढ़त से कम है। और ये दोनों बढ़त पिछले सप्ताह की 6.3 प्रतिशत और उससे पहले की4.3 प्रतिशत बढ़त से बहुत कम रही है। उपभोक्ता धारणाओं का ग्रामीण सूचकांक घोषणा के बाद समाप्त होने वाले दो सप्ताह के मुकाबले घोषणा से दो सप्ताह पहले काफी बेहतर प्रदर्शन कर रहा था।
नवंबर के आखिरी दो सप्ताहों में ग्रामीण भारत ने मौजूदा आर्थिक परिस्थितियों पर निराशा व्यक्त की है। जिन परिवारों ने यह बताया था कि उनकी आय एक साल पहले की तुलना में अधिक थी, उन परिवारों का यह अनुपात 14 नवंबर को समाप्त होने वाले सप्ताह में 14 प्रतिशत से गिरकर 21 नवंबर को समाप्त होने वाले सप्ताह में 13 प्रतिशत रह गया तथा 28 नवंबर को समाप्त होने वाले सप्ताह में काफी ज्यादा गिरकर 8.4 के स्तर पर आ गया। जिन परिवारों ने यह बताया था कि उनकी आय एक साल पहले के समान थी, उन परिवारों का यह अनुपात पिछले तीन सप्ताहों में 48 से 50 प्रतिशत से बढ़कर 28 नवंबर को समाप्त होने वाले सप्ताह में 55 प्रतिशत हो गया। गैर-जरूरी सामान खरीदने के लिए मौजूदा समय को बेहतर मानने वाले परिवारों के अनुपात में वृद्धि 21 नवंबर को समाप्त होने वाले सप्ताह में 10 प्रतिशत से गिरकर 28 नवंबर को समाप्त होने वाले सप्ताह में सात प्रतिशत रह गई। फिर भी ग्रामीण परिवारों ने भविष्य के संबंध में अपनी धारणाओं में सुधार जरूर किया है। उपभोक्ता अपेक्षाओं का ग्रामीण सूचकांक 21 नवंबर को समाप्त हुए सप्ताह में 3.2 प्रतिशत और फिर 28 नवंबर को समाप्त हुए सप्ताह में 1.3 प्रतिशत तक और बढ़ गया। लेकिन इनमें से कोई भी वृद्धि दर इस महीने के पहले दो सप्ताह में देखी गई पांच से आठ प्रतिशत की वृद्धि दर से बेहतर नहीं थी। इसने उम्मीदों में वृद्धि को काफी कम कर दिया और ग्रामीण भारत में मौजूदा आर्थिक परिस्थितियों के संबंध में धारणाओं में यह गिरावट प्रधानमंत्री की घोषणा पर किसानों की प्रतिक्रिया को सारांशित करती है। यह केवल कुछ किसानों या किसी किसान संगठन का विचार नहीं है। यह ग्रामीण भारत के प्रतिक्रिया देने वाले हजारों परिवारों का सामूहिक दृष्टिकोण है।
ग्रामीण भारत में उपभोक्ता धारणाओं का सूचकांक शहरी भारत की तुलना में बेहतर प्रदर्शन कर रहा है। लेकिन यह प्रधानमंत्री द्वारा कानूनों को निरस्त करने के आकस्मिक बयान से भी पहले का सच था। प्रासंगिक बात यह है कि इन कानूनों को निरस्त करने की घोषणा से ग्रामीण उपभोक्ता धारणाओं के सुधार में कोई खास फर्क नहीं पड़ा।
