ऐसा लगता है कि सरकार उन क्षेत्रों में अप्रत्यक्ष विदेशी निवेश की अनुमति दिए जाने के अपने फैसले के नतीजों पर देर से जागी है, जहां या तो प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की अनुमति नहीं है या उस पर अंकुश (सामान्य तौर पर 26 फीसदी) लगा हुआ है।
कैबिनेट ने फरवरी में इसे मंजूरी दी थी ताकि रिटेल परिचालन में अप्रत्यक्ष रूप से विदेशी शेयरधारिता 90 फीसदी या इससे ज्यादा हो जाए, हालांकि नीति के तहत रिटेल में एफडीआई की अनुमति नहीं है। यह प्रस्ताव उद्योग मंत्रालय की तरफ से तब आया था जब स्वास्थ्य संबंधी कारणों से प्रधानमंत्री मौजूद नहीं थे।
देर से ही सही अब वित्त मंत्रालय और भारतीय रिजर्व बैंक लगता है, जाग गए हैं और सवाल उठा रहे हैं। पता चला है कि उद्योग मंत्रालय जवाब तैयार कर रहा है ताकि उन्हें संतुष्ट किया जा सके। इस अखबार ने तर्क पेश किया था कि नई नीति में ऐसी खास बातें नहीं हैं कि उनकी सिफारिश की जाए।
इसने विदेशी निवेश में कृत्रिम अलगाव पैदा कर दिया कि इसे उस तरह नहीं माना जा सकता जैसा कि दूसरे विदेशी निवेश को माना जाता रहा है। इसने कॉरपोरेट नियंत्रण आदि को परिभाषित करने का मुद्दा भी उठाया। इसने जटिल होल्डिंग स्ट्रक्चर की बाबत कंपनियों को भी आमंत्रित किया क्योंकि अच्छे समय में भी यह अपारदर्शी रहा है।
वास्तव में एक या दो कंपनियों ने ऐसी संरचना बनानी शुरू की ताकि वे नई नीति का फायदा उठा सके। क्यों ऐसा हुआ कि इनमें से किसी को भी हरी झंडी नहीं दिखाई गई, अपवाद के तौर पर अगर यह वर्तमान एफडीआई नियमों के उल्लंघन का रास्ता था। अगर ऐसा था तो इसमें कुछ भी ऐसा नहीं था कि छिपे हुए सुधार की सिफारिश की जाए।
अगर सरकार को भरोसा है कि रिटेल और दूसरे ऐसे प्रतिबंधित क्षेत्र में एफडीआई अच्छा है और अगर उसे भरोसा है कि मीडिया आदि क्षेत्रों में एफडीआई की सीमा कम है तो अच्छा व तार्किक यही हो सकता है कि इसे अगले दरवाजे से लागू किया जाए न कि पिछले दरवाजे से। सरकार का आकलन है कि भारत में एफडीआई के प्रवाह का भविष्य उवल है।
आधिकारिक आकलन यह है कि 2009-10 में एफडीआई 40 अरब डॉलर के स्तर को छू लेगा, जो कि एक साल पहले के मुकाबले थोड़ा बेहतर है। इनमें से करीब 30 अरब डॉलर की राशि देश में ताजा रकम के तौर पर आएगी। यह कहना मुश्किल है कि यह आकलन कितना सही है क्योंकि ज्यादातर कंपनियां नए निवेश में कटौती कर रही हैं।
निश्चित रूप से इनमें से कुछ चीन और भारत में प्रवेश करने का फैसला करेंगे क्योंकि पिछले 70 साल के दौरान ये अर्थव्यवस्थाएं अभी भी विकास के पथ पर है। निवेशक सीधे निवेश के मौके का स्वागत करेंगे और नियंत्रण का हथियार पाएंगे जो कि उनके निवेश के स्तर पर बने संबंधों के आधार पर होगा।
कुछ महीने पहले पारित इस नीति से वास्तव में एफडीआई हतोत्साहित होगा क्योंकि पिरामिड व होल्डिंग स्ट्रक्चर के जरिए किया गया 49 फीसदी का निवेश विदेशी निवेशकों को नियंत्रण का थोड़ा ही अधिकार देगा, ज्यादा नहीं।
क्योंकि विदेशी निवेशक मूर्ख नहीं हैं, कॉरपोरेट नियंत्रण की खातिर यह खुले आमंत्रण का रास्ता है जिसका खुलासा किया या नहीं किया जा सकेगा। अगर वित्त मंत्रालय और आरबीआई सवाल उठा रहे हैं तो अच्छा विचार यही हो सकता है कि कैबिनेट के फैसले की समीक्षा कर ली जाए।
