बाजार नियामक भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ओपन एंडेड डेट म्युचुअल फंड (ऐसे फंड जिनकी कितनी भी यूनिट, कभी भी खरीदी या बेची जा सकती है) के लिए दिशानिर्देश बदलने पर विचार कर रहा है। ऐसे में निवेशक इस श्रेणी का नए सिरे से आकलन कर सकते हैं। नियामक इस बात पर विचार कर रहा है कि सभी फंडों से कहा जाए कि वे अपने पोर्टफोलियो का एक खास प्रतिशत नकदीकृत परिसंपत्ति में रखें। वह नियामकीय जांच और योजनाओं की नकदी प्रोफाइल के आकलन के लिए विशेषज्ञ समिति का गठन भी कर सकता है। इसके अलावा गैरनकदीकृत पोर्टफोलियो पर लेनदेन की अतिरिक्त लागत वसूल की जा सकती है। नकदी की स्थिति बेहतर होने से उन फंड को मदद मिलेगी जिनमें से अचानक पैसा निकाला जाता है। इससे निवेशकों को आश्वस्ति मिल सकती है जिन्हें डेट पोर्टफोलियो की गुणवत्ता का आकलन करने में मुश्किल होती है।
हालांकि डेट फंड क्षेत्र की चिंता ज्यादातर ढांचागत कारकों से संचालित है जो व्यक्तिगत स्तर पर फंड प्रबंधकों की पहुंच से बाहर हैं। द्वितीयक बॉन्ड बाजार की गैर मौजूदगी और रेटिंग एजेंसियों द्वारा खराब गुणवत्ता आकलन प्रबंधकों के लिए जोखिम के व्यवस्थित आकलन को और मुश्किल बना देते हैं।
फिलहाल सरकारी प्रपत्र पर प्रतिफल मुद्रास्फीति की तुलना में नीचे चल रहा है। इसका अर्थ यह हुआ कि डेट से होने वाला वास्तविक प्रतिफल नकारात्मक है। इसके अलावा व्यापक और बढ़ती सरकारी उधारी ने भी बॉन्ड बाजार से कॉर्पाेरेट पत्रों को बाहर कर दिया है। परिभाषा के अनुसार देखें तो ट्रेजरी डेट सुरक्षित और नकदीकृत है। कई डेट फंडों में पहले ही सरकारी डेट की अच्छी खासी हिस्सेदारी है। इसका अर्थ यह हुआ कि नकदी उतना बड़ा मसला नहीं है। डेट फंड में नकदीकृत परिसंपत्ति की हिस्सेदारी बढ़ाने से यकीनन उनका प्रतिफल कम होगा। ऐसे में फंड उद्योग इसे लेकर बहुत इच्छुक नहीं होगा। दूसरी दिक्कत यह है कि फिलहाल कॉर्पोरेट डेट की गुणवत्ता को लेकर बहुत अनिश्चितता है। महामारी और उसके कारण लगे लॉकडाउन ने अधिकांश कारोबारियों के राजस्व को प्रभावित किया है और एक बार ऋण स्थगन समाप्त होने के बाद बेहतर कंपनियों को भी अपना कर्ज चुकाने में संघर्ष करना पड़ सकता है।
बीते कुछ वर्षों में जब शीर्ष कॉर्पोरेट और गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियां अचानक डिफॉल्ट के दुष्चक्र में उलझने लगीं, उस दौर का अनुभव भी दर्शाता है कि रेटिंग एजेंसियों का आकलन गलत हो सकता है। देश में नकदीकृत द्वितीयक कॉर्पोरेट बॉन्ड बाजार, डेट फंडों की कॉर्पोरेट डेट धारिता को नकदीकृत करने की राह मुश्किल बनाता है। फंड प्रबंधकों के लिए बेहतर जोखिम मॉडल विकसित करना जरूरी है। उन्हें उचित सतर्कता का पालन करने में रेटिंग एजेंसियों से परे जाकर काम करना होगा। एक बेहतर, मजबूत तनाव परीक्षण मॉडल मददगार साबित हो सकता है। परंतु यह बात ध्यान देने लायक है कि भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) कई वर्षों से बैंकों के पोर्टफोलियो में तनाव की जांच कर रहा है और उसके मॉडलों ने भी बुनियादी जोखिम को लगातार कम आंका है। ऐसे में संभव है कि सेबी का परीक्षण मॉडल उचित नतीजे देने में कुछ वक्त ले। इन सारी बातों का यही अर्थ है कि डेट फंड निवेशकों और डेट फंड के प्रबंधकों के लिए जोखिम जितना नजर आ रहा है उससे कहीं अधिक है। डेट बाजार का हर कारोबारी इस समय नाखुश करने वाले वाली घटनाओं के लिए तैयार है। बेहतर फंड हाउस उचित सतर्कता और जोखिम के आकलन के लिए अपना आंतरिक मॉडल विकसित करेंगे और इन मॉडलों को आधिकारिक रेटिंग तथा नियामकीय जांच से अलग होना होगा। नीति निर्माताओं के लिए यही अच्छा होगा कि वे बॉन्ड बाजार के नकदीकृत न होने की बुनियादी वजह तलाश करें और रेटिंग एजेंसियों का प्रदर्शन सुधारने के तरीके तलाश करें।
