नकदी की जबरदस्त कमी से जूझ रही हमारी अर्थव्यवस्था को रिजर्व बैंक की ओर से मिली पूंजी की घुट्टी एक स्वागत योग्य फैसला है। इसीलिए तो अर्थव्यवस्था के हरेक कोने से ब्याज दरों में कटौती करने के फैसले की काफी तारीफ हो रही है।
ऊपर से, महंगाई के कम होने की वजह से भी अब हमारे नीति-निर्धारकों ने उसी तरफ खास तौर पर ध्यान देना छोड़ दिया है। शनिवार को रिजर्व बैंक ने रेपो रेट को 50 बेसिस प्वाइंट घटाकर 7.5 फीसदी, सीआरआर को 100 बेसिस प्वाइंट कम करके 5.5 फीसदी और वैधानिक तरलता अनुपात (एसएलआर) को स्थायी तौर पर 24 फीसदी पर लाने का फैसला किया।
यह दिखलाता है कि आरबीआई ने अपने तोपखाने का मुंह, मंदी से लड़ने के लिए खोल दिया है। साथ ही, रिजर्व बैंक ने मुसीबतों में फंसी गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) के लिए भी कई अच्छे कदमों का ऐलान किया है। बैंक ने इन कंपनियों के लिए कर्जों की घोषणा की है।
यह ऐलान ऐसे वक्त आया है, जब एनबीएफसी (म्युचुअल फंड) को अपनी आय के मुख्य स्रोत से ही भारी दबाव झेलना पड़ रहा है। आज की तारीख में लोग तेजी से अपने बॉन्डों और म्युचुअल फंडों को भुना रहे हैं। साथ ही, रिजर्व बैंक ने अपने मार्केट स्टेब्लाइजेशन बॉन्डों को वापस खरीदने का फैसला करके एक सही फैसला किया है।
रिजर्व बैंक बैंकों से इन बॉन्डों को वापस खरीदकर उन्हें नगद पैसे देगा। इससे उन्हें लोगों को देने के लिए और नकदी मिलेगी। लेकिन अजीब बात इसमें यही है कि रिजर्व बैंक का यह ऐलान, उसके हफ्ते भर पहले आई मौद्रिक नीति की निराशाजनक समीक्षा के बाद आया है।
समीक्षा के चार दिनों के बाद ही रिजर्व बैंक ने रेपो रेट में एक फीसदी की कटौती कर लोगों को और भी चौंका दिया था। आरबीआई के काम करने के इस अजीबोगरीब तरीके से यह सवाल तो उठता ही है कि क्या उसके दिमाग में अर्थव्यवस्था के सामने मुंह बाए खड़ी मुसीबतों के बारे साफ तस्वीर है? और क्या वह यह जानती है कि उसे कब क्या करना है?
हालांकि, खुशी की बात यह है कि देर से ही सही, यह फैसले आए तो। शनिवार को घोषित किए गए फैसलों को लेना इसलिए भी आसान था क्योंकि महंगाई की दर उतार की राह पर है। उम्मीद है कि यह आने वाले दिनों में कम होकर इकाई के आंकड़े में सिमट जाएगा। महंगाई की दर में तो अभी काफी गिरावट होनी है।
वजह है, दुनिया में फैली हुई मंदी। इस वजह से धातु से लेकर रसायन और कृषि से लेकर पेट्रोलियम उत्पादों की कीमतों में गिरावट आ रही है। इस हिसाब से देखें तो साफ दिखता है कि आज ब्याज दरें ज्यादातर लोगों की पहुंच से बाहर चली गईं हैं।
ऊपर से रिजर्व बैंक के मुताबिक दुनिया भर के केंद्रीय बैंक कम होती डिमांड को बढ़ाने के लिए भी ब्याज दरों को कम कर रहे हैं। अमेरिका, चीन और जापान जैसे बड़े मुल्कों के साथ-साथ दक्षिण कोरिया और ताइवान माफिक छोटी अर्थव्यवस्थाओं ने भी ब्याज दरों में कटौती का ऐलान किया है। इसलिए अलग-अलग ब्याजदरों की चिंता खत्म हो गई है।
अगर अर्थव्यवस्था में जरूरत के मुताबिक पूंजी पहुंचाई गई तो उसका फायदा सस्ते कर्ज के रूप में सामने आएगा। हालांकि, इसके लिए अभी और भी कदमों की जरूरत है।