दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने सन 2025 तक यमुना नदी को साफ करने के लिए छह बिंदुओं वाली नई कार्य योजना पेश की है। इस योजना में वही बातें शामिल हैं जिन्हें पहले आजमाया जा चुका है और जिनमें पहले भी नाकामी ही हाथ लगी थी। इसमें सीवेज उपचार क्षमता का विस्तार करने, गंदा कचरा नदी में छोडऩे वाले उद्योगों के खिलाफ कार्रवाई करने, अवैध बस्तियों में नाली का कनेक्शन देने और नदी में मिलने वाली नालियों की सफाई करने जैसे कदम शामिल हैं। इस पूरी प्रक्रिया में नदी की बेहतरी से जुड़ी कुछ बुनियादी बातें नदारद हैं।
उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और दिल्ली जैसे पांच राज्यों में 1400 किमी का सफर तय करने वाली यमुना अपने तटवर्ती इलाकों में बसे कई शहरों की जीवनरेखा है। मोटे तौर पर करीब छह करोड़ लोगों का जीवन यमुना के पानी पर निर्भर है। राष्ट्रीय राजधानी में पानी की 70 फीसदी जरूरत यमुना से पूरी होती है। इसके अलावा यह गंगा की प्रमुख सहायक नदी है और प्रयागराज में दोनों का संगम होता है। दुख की बात है कि बीते तीन दशकों में यमुना को बचाने के तमाम प्रयासों के बावजूद इसके पानी की गुणवत्ता बद से बदतर होती जा रही है।
इस नदी को नई जान देने की पहली कोशिश सन 1993 में हुई थी जब जापान के सहयोग से 10 वर्षीय यमुना कार्य योजना-1 की शुरुआती की गई थी। सन 2003 में इसे और आगे बढ़ाया गया और अन्य पूरक पहल भी की गईं। उदाहरण के लिए इंटरसेप्टर सीवर प्रोजेक्ट (2006), निर्मल यमुना (पुनरुद्धार) परियोजना (2017) तथा नमामि गंगे परियोजना के अधीन कई तरह के काम भी किए गए। इनमें से किसी का कोई सकारात्मक नतीजा नहीं निकला।
आश्चर्य नहीं कि हाल ही में यमुना एक बार फिर सुर्खियों में आई क्योंकि बड़े पैमाने पर विषाक्त रसायनों और डिटर्जेंट जैसे अप्रसंस्करित कचरे के कारण नदी में बड़े पैमाने पर झाग नजर आने लगा। इससे पहले दिल्ली के बड़े इलाके में पानी की आपूर्ति प्रभावित हुई क्योंकि जलशोधन संयंत्र नदी के पानी में भारी मात्रा में अमोनिया को साफ नहीं कर पा रहे थे।
यमुना की खराब स्थिति के लिए दिल्ली भी काफी हद तक वजह है। यह सही है कि यमुना नदी दिल्ली के केवल 22 किलोमीटर इलाके से गुजरती है लेकिन उसमें मिलने वाले 80 फीसदी प्रदूषक तत्त्व यहीं नदी में मिलते हैं। दिल्ली की सीवेज उपचार क्षमता भी अपर्याप्त है। पुरानी तकनीक भी उसकी अक्षमता की एक वजह है। सीवेज उपचार संयंत्रों से निकलने वाला पानी खराब होता है। यह नहाने लायक भी नहीं होता। राजधानी क्षेत्र में कई उद्योगों में अपने अपशिष्ट उपचार संयंत्र नहीं हैं न ही वे विभिन्न औद्योगिक क्षेत्रों में बने साझा अपशिष्ट उपचार संयंत्रों से जुड़े हुए हैं। यही नहीं नदी के किनारे अनियोजित बस्तियां भी बस गई हैं। उनका कचरा भी सीधे नदी में मिल जाता है। यह सब रोकने की आवश्यकता है।
नदी में नई जान फूंकने की इन तमाम कोशिशों में सबसे बड़ी कमी यह है कि न्यूनतम जल प्रवाह सुनिश्चित करने पर समुचित जोर नहीं दिया जा रहा है। उसके बिना कोई नीति सफल नहीं हो सकती है चाहे वह जितनी अच्छी तरह बनाई गई हो। इसके लिए नदी के किनारे स्थित सभी राज्यों के सहयोग की आवश्यकता है। इसके अतिरिक्त जल उपचार संयंत्रों में चली आ रही पुरानी तकनीक को जल्द से जल्द उन्नत बनाने की आवश्यकता है। आदर्श स्थिति में उपचारित सीवेज को दोबारा नदी में नहीं जाना चाहिए बल्कि उसका पुनर्चक्रण करके गैर घरेलू कामों में इस्तेमाल किया जाए। अगर यमुना को बचाना है तो इन बातों पर तुरंत ध्यान देना होगा।
