भारत में आस्था, संस्कार, जी जागरण, और गॉड जैसे धार्मिक और आध्यात्मिक चैनलों के दर्शकों की संख्या इस कदर बढ़ रही है कि इन्होंने बिजनेस और अंग्रेजी न्यूज चैनलों को पीछे छोड़ दिया है।
टेलीविजन ऑडिएंस मेजरमेंट (टैम) के आंकड़ों के मुताबिक उच्च आय वर्ग के 31 प्रतिशत लोग और मध्यम आय वर्ग के 29 प्रतिशत लोग धार्मिक चैनलों के दर्शक हैं जो मिलकर लगभग 60 प्रतिशत की बड़ी संख्या है।
धार्मिक चैनलों के दर्शकों की उम्र सीमा की बात करें तो टैम के मुताबिक 16 फीसदी 25 से 34 साल के लोग हैं जबकि 54 प्रतिशत योगदान 35 साल से ऊपर की उम्र के लोगों का है। इसी तरह 51 प्रतिशत पुरुष धार्मिक चैनल देखते हैं जबकि महिला दर्शकों की संख्या 49 प्रतिशत है। टैम के अनुसार आस्था और संस्कार चैनल को लोग ज्यादा पसंद करते हैं। ये धार्मिक चैनल बिजनेस चैनलों और अंग्रेजी न्यूज चैनलों को खासी टक्कर दे रहे हैं।
टैम के वाइस प्रेसीडेंट, कम्युनिकेशन सिद्धार्थ का कहना है, ‘पिछले कई सालों के मुकाबले धार्मिक चैनलों का मार्केट अब काफी बढ़ गया है। पहले जहां 0.2 और 0.3 प्रतिशत का चैनल शेयर था, अब वह काफी तरक्की पर है। इसमें एक और खास रुझान यह देखने को मिल रहा है कि इन दर्शकों में केवल मध्यम और निम् आय वर्ग के लोगों की ही संख्या खासी ज्यादा नहीं है बल्कि इसमें धनी तबके का भी एक खास वर्ग इसका हिस्सा है।’
खर्च कम मुनाफा ज्यादा
धार्मिक चैनलों का खर्च तो बेहद ही कम होता है जबकि उनके मुनाफे के तरीके भी बडे ही दिलचस्प हैं। इन चैनलों का इनहाउस प्रोडक्शन तो कम होता ही है, इसके साथ-साथ आउटसाइड प्रोडक्शन पर भी इनका खर्च कम ही होता है। हालांकि इसके अलावा भी कई जरिए है जिनसे मुनाफे का रास्ता तैयार किया जाता है।
धार्मिक चैनलों पर भी कॉरपोरेट ब्रांड इमेज, प्रॉपर्टीज रियल एस्टेट, होजियरी, होटल, फूड प्रोडक्ट, ब्रांडेड नमक, वाटर प्यूरीफायर, टायर, एंटीसेप्टिक क्रीम, टेलीकॉम सेवाएं, सीमेंट और बेबी प्रोडक्ट के विज्ञापन दिखाए जाने लगे हैं। इन चैनलों पर टॉप विज्ञापनदाताओं में लखानी वरदान गु्रप, रूपा ऐंड कंपनी, दी व्हाइट होटल्स, यूके लैंड इनवेस्टमेंट ग्रुप, एलकैम लैबोरेटरीज, पैरागॉन मेडिकल रिहैबिलिटेशन, अल्टीमेट सॉल्यूशन, अंकुर बिजनेस और मैरिको इंडस्ट्रीज भी शामिल हैं।
एक मीडिया प्लानर का कहना है, ‘मैं धार्मिक चैनल के खिलाफ नहीं हूं लेकिन मुझे लगता है कि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के दूसरे चैनल मसलन न्यूज चैनल, एंटरटेनमेंट चैनल और म्यूजिक चैनल के जरिए मैं अपने लक्षित समूह तक पहुंचने की बेहतर कोशिश कर सकता हूं।’
धार्मिक चैनलों से ही जुड़े कुछ लोगों का कहना है कि सभी धार्मिक चैनल अपने टाइम स्लॉट को बेचकर टेलीकास्ट फी लेते हैं। ऐसे में उन्हें किसी कंटेट पर भी ऐतराज नहीं होता। इनके प्रोग्रामिंग की प्रामाणिकता भी नहीं है। उनका यह भी कहना है कि उनकी रेट लिस्ट तय होती है।
कब होती है ज्यादा रेटिंग
जनवरी से मई तक धार्मिक चैनलों का चैनल शेयर रहा 1.10 प्रतिशत जो पिछले 4 साल के मुकाबले काफी बढ़ गया है। पूरे भारत में टैम के आंकड़े के मुताबिक सुबह 5 बजे से 7.30 बजे आस्था की रेटिंग सबसे ज्यादा होती है। धार्मिक चैनलों के 35 वर्ष के आयु वर्ग के दर्शकों में आस्था का चैनल शेयर भी 8.51 फीसदी है। दूसरी ओर संस्कार का चैनल शेयर 4.3 फीसदी है जबकि ‘आजतक’ का चैनल शेयर 3.51 है।
अगर रात में चैनल शेयर का रुझान देखें तो धार्मिक चैनलों का शेयर काफी कम हो जाता है। मसलन रात में 35 वर्ष के आयु वर्ग के दर्शकों में आस्था का चैनल शेयर 0.28 है तो वहीं ‘आजतक’ का चैनल शेयर 0.68 है। अगर पूरे दिन के शेयर पर नजर डालें तो आस्था का चैनल शेयर 0.47 फीसदी है वहीं संस्कार का 0.34 फीसदी है। आस्था चैनल दुनिया के 169 देशों में देखा जाता है।
कैसा है भविष्य
आस्था चैनल के मुख्य विपणन अधिकारी एस. के. तिजारावाला का कहना है, ‘मुझे लगता है कि धार्मिक चैनलों का भविष्य काफी बेहतर होगा क्योंकि लोग सास बहू के सीरियल से तो थक चुके हैं। वैसे इस तरह के चैनल 10 पैसे में 1 रुपये वसूलने जैसा है।’ अब कई धार्मिक चैनल पौराणिक धार्मिक सीरियल भी दिखाने की कोशिश करने वाले हैं।
इन चैनलों पर कई कार्यक्रम लोगों को लुभाते हैं, मसलन आर्ट ऑफ लिविंग, योग, वास्तुशास्त्र, और फेंग शुई आदि। इन चैनलों के जरिए तीर्थ स्थलों का कवरेज भी किया जाता है। हाल के दिनों में कुंभ मेला , गणेश चतुर्थी और नवरात्रि जैसे अवसर पर कार्यक्रमों का प्रसारण दर्शकों को लुभाने में काफी कामयाब रहा है। संस्कार चैनल के निदेशक गोपाल माहेश्वरी का कहना है कि उनकी मार्केटिंग पॉलिसी विज्ञापनदाताओं और प्रायोजकों के बदौलत चलती है।
उनके मुताबिक किसी एंटरटेनमेंट चैनल के मुकाबले उनका खर्च 10 प्रतिशत ही होता है। विज्ञापनों के संदर्भ में उनका कहना है कि उनके पास लीवर , कोलगेट और आईटीसी जैसे मल्टीनेशनल विज्ञापन भी होते हैं। उनके मुताबिक जो भी विज्ञापन मर्यादा में हो उसका प्रसारण वे अपने चैनल पर करते हैं। उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती उनके वितरण की कीमत और उनकी कैरिज फी है।
गोपाल के अनुसार वे सभी धर्मो का कार्यक्रम प्रसारित करते हैं। इसके अलावा यादें हुसैन नाम से एक कार्यक्रम प्रसारित कर रहे हैं। आजकल धार्मिक चैनल भी अपने आप को लाइफ स्टाइल से जोड़ने लगे हैं। कई चैनल ऐसे है जो अपने आप को धार्मिक चैनल के साथ जोड़ना ही नहीं चाहते। प्रज्ञा टीवी के सीनियर एडीटर ऋषि का कहना है कि उनका चैनल तो धार्मिक चैनल है ही नहीं बल्कि आध्यात्मिक चैनल है। उनका चैनल सकारात्मक जीवन शैली को बढ़ावा देता है।
साधना चैनल की मीडिया मैनेजर बिंदु का कहना है कि उनकी मार्केटिंग पॉलिसी क्वालिटी और दर्शकों तक अपनी पहुंच के मुताबिक बनती है। विज्ञापनों में कई बार सरकारी विज्ञापन भी मिलते हैं। इस चैनल में हर तरह के विज्ञापनों का प्रसारण होता है। उनका कहना है कि कई भक्त ही कुछ कार्यक्रमों का प्रसारण कराने के लिए प्रायोजक बन जाते हैं। गुरुओं का प्रवचन कराने के लिए टाइम स्लॉट का कांट्रैक्ट हो जाता है।
चुनौतियां भी हैं
धार्मिक चैनलों की बढ़ती रेटिंग के बावजूद अब भी हालात बेहतर नहीं कहे जा सकते। जेनिथआप्टीमीडिया की मीडिया प्लानर अनिता नायर का कहना है, ‘धार्मिक चैनलों की रेटिंग भले ही बढ़ रही हो लेकिन सच यह भी है कि इन चैनलों का कंटेट ऐसा है कि उसके लिहाज से सॉफ्ट ऐड ही दिखाए जा सकते हैं। उन चैनलों का माहौल भी कुछ ऐसा ही कि ज्यादातर विज्ञापन दाता रेटिंग बढ़ने के बावजूद दूसरे चैनलों को ज्यादा विज्ञापन देते हैं।’
गोपाल माहेश्वरी के मुताबिक धार्मिक चैनलों को कोई मुनाफा नहीं मिल पा रहा है। हालांकि इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता कि धार्मिक आध्यात्मिक चैनलों और इस तरह के कार्यक्रमों का प्रसारण न्यूज चैनलों के साथ मनोरंजन चैनलों पर भी बढ़ रहा है।
देश भर में चैनलों की हिस्सेदारी (प्रतिशत में)
2005 2006 2007
धार्मिक चैनल 0.9 0.8 0.9
बिजनेस चैनल 0.4 0.5 0.5
अंग्रेजी न्यूज चैनल 0.6 0.8 0.9