वर्ष 2019-20 में नॉमिनल वेतन (कीमतों में उतार-चढ़ाव/महंगाई समायोजित किए बिना) मद में सूचीबद्ध कंपनियों का खर्च 8.5 प्रतिशत बढ़ गया। कम से कम पिछले चार वर्षों में इस मद में दर्ज यह सबसे कम बढ़ोतरी रही। इससे पिछले चार वर्षों के दौरान सूचीबद्ध कंपनियों का नॉमिनल वेतन मद में खर्च 9 से 12 प्रतिशत के बीच बढ़ा था। वर्ष 2019-20 में वेतन मद में वृद्धि न केवल हालिया वर्षों में कम रही, बल्कि यह आलोच्य अवधि में महंगाई दर से नाम मात्र ही अधिक रही। कुल मिलाकर वेतन मद में जितनी बढ़ोतरी हुई वह 7.5 प्रतिशत खुदरा महंगाई की वजह से निष्प्रभावी हो गई। महंगाई समायोजित करने के बाद 2019-20 में सूचीबद्ध कंपनियों के वेतन मद में मात्र 0.95 प्रतिशत बढ़ोतरी दर्ज हुई। पिछले दस वर्षों के दौरान वास्तविक वेतन वृद्धि में सालाना आधार पर यह सबसे कम बढ़ोतरी रही।
सूचीबद्ध कंपनियों के वेतन मद में दर्ज 8.5 प्रतिशत वृद्धि रोजगार और नॉमिनल वेतन दर में वृद्धि का मिला-जुला परिणाम थी। सूचीबद्ध कंपनियों में प्रति कर्मचारी सालाना वेतन 715,082 रुपये था। एक वर्ष पहले के मुकाबले यह 5.6 प्रतिशत अधिक था। हालांकि 7.5 प्रतिशत महंगाई दर के मुकाबले 2019-20 में वेतन दर में वृद्धि कम रही। इसका नतीजा यह हुआ कि महंगाई समायोजित वेतन दर पिछले 10 वर्षों में पहली बार कम हो गई। इसमें 1.8 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई।
वर्ष 2019-20 में सूचीबद्ध कंपनियों में कर्मचारियों की संख्या में 2.8 प्रतिशत इजाफा हुआ। ये अनुमान वित्त वर्ष 2019-20 के लिए 2,623 सूचीबद्ध कंपनियों के अंकेक्षित (ऑडिटेड) वित्तीय खाताबही पर आधारित हैं। ये आंकड़े सीएमआईई के प्राउअस डेटाबेस में उपलब्ध हैं। आलोच्य वर्ष में इन कंपनियों ने 82 लाख कर्मचारियों की नियुक्ति की। दूसरे शब्दों में कहें तो इन कंपनियों में नई भर्तियों में 2.8 प्रतिशत की वृद्धि उत्साहजनक रही। सीएमआईई के कंज्यूमर पिरामिड हाउसहोल्ड सर्वे के अनुसार 2019-20 में कुल नए रोजगार में मात्र 0.6 प्रतिशत का इजाफा हुआ। वेतनभोगी कर्मचारियों की संख्या 2018-19 के 8.77 करोड़ की तुलना में 2 प्रतिशत कम होकर 2019-20 में 8.59 करोड़ रह गई। शेष अर्थव्यवस्था के मुकाबले सूचीबद्ध कंपनियों ने अतिरिक्त रोजगार मुहैया कराने के मोर्चे पर बेहतर प्रदर्शन किया।
सूचीबद्ध कंपनियां लोगों को बेहतर गुणवत्ता वाली नौकरियां मुहैया कराती हैं और यह देखकर अच्छा लग रहा है कि देश में ऐसी नौकरियों का सृजन देश में कुल रोजगार की तुलना में अधिक हुआ। सीपीएचएस के अनुसार वर्ष 2018-19 में वेतनभोगी नौकरियों में 0.1 प्रतिशत का इजाफा हुआ, लेकिन प्राउअस में शामिल सूचीबद्ध कंपनियों में रोजगार में 5.2 प्रतिशत की वृद्धि हुई। सीपीएचएस के अनुसार इससे पहले वर्ष 2017-18 में वेतनभोगी नौकरियों में 1.6 प्रतिशत का इजाफा हुआ, लेकिन प्राउअस के अनुसार इनमें 2.6 प्रतिशत की तेजी दर्ज हुई। भारत में जिस प्रकार की नौकरियां बढ़ रही हैं वह उत्साह जगाने वाली हैं। इस समय प्राउअस में शामिल सूचीबद्ध कंपनियों की कुल वेतनभोगी नौकरियों में हिस्सेदारी 10 प्रतिशत से कम है।
हालांकि अब सूचीबद्ध कंपनियों के तिमाही वित्तीय परिणामों पर विचार करें तो वर्ष 2020-21 की पहली छमाही में रोजगार की स्थिति में खासी गिरावट आई है। वर्ष 2020-21 की पहली तिमाही में इन कंपनियों के नॉमिनल वेतन खर्च में सालाना आधार पर सबसे कम 2.2 प्रतिशत की तेजी देखी गई। प्रति तिमाही करीब 4,500 कंपनियों के तिमाही वित्तीय परिणाम उपलब्ध होते हैं। सितंबर 2020 तिमाही के वित्तीय परिणाम अभी आ ही रहे हैं। 8 नवंबर तक उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार प्राउअस डेटाबेस में 1,314 कंपनियों के नतीजे उपलब्ध थे। यह दर्शाता है कि पहली तिमाही के दौरान वेतन मद में 6.5 प्रतिशत का इजाफा हुआ। अमूमन जिन कंपनियों का प्रदर्शन खराब रहता है वे अपने परिणाम जारी करने में थोड़ी देरी करती हैं, जिसके मद्देनजर वेतन मद में अब तक दर्ज वृद्धि आने वाले हफ्तों में जाकर कमजोर रह सकती है। कुछ भी हो, पहली तिमाही की 2.2 प्रतिशत के मुकाबले वेतन मद में वृद्धि में सुधार का अनुमान लगाना उचित माना जा सकता है।
ऐसा संभव है कि वर्ष 2020-21 की पहली छमाही में वेतन मद में सूचीबद्ध कंपनियों द्वारा की जाने वाली वृद्धि सालाना आधार पर 3 से 4 प्रतिशत रह सकती है। हालांकि यह आंकड़ा भी पिछले एक दशक में सबसे कम होगा। नॉमिनल वेतन में 3 से 4 प्रतिशत इजाफा वास्तविक वेतन में कमी दर्शाता है क्योंकि करीब 6.8 प्रतिशत महंगाई सारे किए कराए पर पानी फेर देती है। यह भी संभव है कि भारत की सूचीबद्ध कंपनियों में वास्तविक वेतन में 3 प्रतिशत तक की कमी आ जाए। तिमाही परिणामों में सभी सूचीबद्ध कंपनियों के रोजगार संबंधी आंकड़े उपलब्ध नहीं रहते हैं। अंकेक्षित (ऑडिटेड) सालाना बहीखाते में ये आंकड़े जरूर होते हैं। इस वजह से 2020-21 में इन कंपनियों में रोजगार संबंधी रुझान पर पुख्ता तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता है। हालांकि इतना कहा जा सकता है कि वर्ष 2020-21 की पहली छमाही में सूचीबद्ध कंपनियों में भी बड़े पैमाने पर रोजागर में कमी आई होगी।
अगर वास्तविक वेतन में 3 से 4 प्रतिशत गिरावट वेतन दर में कमी की वजह से आई है तब सूचीबद्ध कंपनियों में पहली छमाही में रोजगार में कमी 3 प्रतिशत से कम रह सकती है। यह बात सूचीबद्ध कंपनियों में लॉकडाउन जैसे चुनौतीपूर्ण समय में भी नौकरियों के टिकाऊ होने का संकेत देती है। यह खासकर उत्साह जगाने वाला है क्योंकि सीपीएचएस के अनुसार पहली छमाही में वेतनभोगी नौकरियों में 20 प्रतिशत तक कमी देखी गई थी। मोटे तौर पर वेतनभोगी नौकरियों में ज्यादातर कमी गैर-सूचीबद्ध कंपनियों और असंगठित क्षेत्रों में आई थी, जहां 90 प्रतिशत तक ऐसी नौकरियां पाई जाती हैं।
