छठे वेतन आयोग ने सभी नियामक निकायों के अध्यक्षों के वेतन में जो ठोस बढ़ोतरी की, उसकी एक वजह इस काम को और ज्यादा आकर्षक बनाना था ताकि प्राइवेट सेक्टर के प्रोफेशनल और विशेषज्ञों को इस ओर आकर्षित किया जा सके।
अब यह पता लगाने का वक्त आ गया है कि क्या वास्तव में सरकार ने उपयुक्त अभ्यर्थियों की संख्या बढ़ाने और प्राइवेट सेक्टर के लोगों को आकर्षित करने के लिए अपने नियामकों के लिए बेहतर वेतन पैकेज का इस्तेमाल किया।
कुछ हफ्ते पहले संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन(संप्रग) सरकार ने भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग केचेयरमैन पद के लिए भारतीय प्रशासनिक सेवा के अवकाशप्राप्त अधिकारी धनेंद्र कुमार का चयन किया। हालांकि इस पद की होड़ में कई लोग शामिल थे, लेकिन उनमें से ज्यादातर नौकरशाही खेमे से ही थे।
अगले सोमवार तक भारतीय दूरसंचार विनियामक प्राधिकरण (ट्राई) के नए चेयरमैन की नियुक्ति हो जाएगी। ट्राई के वर्तमान चेयरमैन नृपेंद्र मिश्रा 21 मार्च को तीन साल का अपना कार्यकाल पूरा कर लेंगे और उम्मीद है कि नए चेयरमैन की तलाश में जुटी सरकारी समिति अगले कुछ दिनों में यह काम पूरा कर लेगी। संभव है इस हफ्ते के अंत तक इसका ऐलान हो जाए।
एक बार फिर ट्राई के चेयरमैन पद की होड़ में ज्यादातर वे नौकरशाह शामिल हैं जो भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी हैं। क्या नए चेयरमैन की तलाश में जुटी सरकारी समिति इस पद पर गैर-आईएएस को नियुक्त करने की सिफारिश कर बदलाव लाने की कोशिश करेगी? ऐसा मुमकिन नहीं लगता।
नौकरशाह से जब यह सवाल किया जाता है कि आर्थिक सुधार की खातिर जितने नियामक निकायों की स्थापना हुई है, उनके प्रमुख के तौर पर सिर्फ सेवारत या अवकाशप्राप्त आईएएस का चयन क्यों किया जाता है, तो वे विचलित हो जाते हैं।
वर्तमान में सिर्फ एक नियामक निकाय हाइड्रोकार्बन महानिदेशालय(डीजीएच) है, जिसके प्रमुख गैर-आईएएस अधिकारी हैं। डीजीएच का कार्यभार संभालने से पहले वी. के. सिब्बल सार्वजनिक क्षेत्र की तेल कंपनी में काम करते थे।
निश्चित रूप से कोई भी यह तर्क नहीं दे सकता कि आईएएस अधिकारी नियामक संस्था की अगुवाई करने के योग्य नहीं हैं। जिस तरह से सरकारी मशीनरी काम करती है और एक नियामक को जिस तरह से सरकारी प्रणाली के काम करने के तौर तरीके सीखने की जरूरत होती है, उसे देखते हुए निश्चित रूप से प्राइवेट सेक्टर के प्रोफेशनल या विशेषज्ञ के मुकाबले आईएएस अधिकारी के होने से फायदा मिलता है।
लेकिन इससे यह नहीं होना चाहिए कि जरूरी अनुभव रखने वाले प्राइवेट सेक्टर के प्रोफेशनल की नियामक संस्था में नियुक्ति की संभावना समाप्त कर दी जाए। वास्तव में पहले भी प्राइवेट सेक्टर के प्रोफेशनल को नियामक संस्था की अगुवाई करने की जिम्मेदारी देने की कोशिशें की गई हैं।
ऐसे कदम हालांकि सही साबित नहीं हुए क्योंकि नियामक निकाय के प्रमुख केतौर पर मिलने वाली तनख्वाह प्राइवेट सेक्टर केप्रोफेशनल को आकर्षित करने में नाकाम रही थी। छठे वेतन आयोग ने ऐसे फीडबैक से सबक लेते हुए उसमें संशोधन किया।
विडंबना से नियामक निकाय के चेयरमैन के वेतन में की गई बढ़ोतरी आईएएस अफसर के लिए ज्यादा आकर्षक हो गई, खास तौर पर उन अधिकारियों के लिए जो सेवानिवृत्ति के कगार पर पहुंच चुके थे। ऐसे में प्राइवेट सेक्टर के प्रोफेशनल की तरफ से काफी कम आवेदन पत्र आए।
इसी संदर्भ में केंद्र सरकार के कई सचिव भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग के प्रमुख के तौर पर काम करने के इच्छुक थे। ट्राई के चेयरमैन के तौर पर बनी अभ्यर्थियों की सूची में भी कई सचिव के नाम शामिल हैं और इनमें वित्त सचिव भी हैं।
इसमें कोई संदेह नहीं है कि संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन के कार्यकाल में स्थितियां पहले के मुकाबले थोड़ी बेहतर हुई है। वाजपेयी सरकार के कार्यकाल के दौरान नियामक निकाय की अगआई करने के लिए सेवानिवृत्ति के नजदीक पहुंचने वाले नौकरशाहों की सूची बनाई गई थी और सेवा से अवकाश ग्रहण करने के बाद ही उन्हें कार्यभार दिया जाना तय किया गया था।
केंद्रीय बिजली नियामक आयोग के चेयरमैन का पद कई महीनों तक खाली पड़ा रहा जब तक कि आईएएस अफसर ए. के. बसु सेवानिवृत्त नहीं हो गए और कार्यभार नहीं संभाल लिया। इसी तरह भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग के प्रमुख के पद पर नियुक्त करने के लिए दीपक चटर्जी की पहचान की गई थी, तब वह वाणिज्य सचिव के पद से अवकाश प्राप्त करने वाले थे।
संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार के कार्यकाल में ऐसे उदाहरण देखने को नहीं मिले, जिनमें पद को तब तक खाली रखा गया जब तक कि सेवानिवृत्ति के बाद पसंद के नौकरशाह कार्यभार न संभाल ले।
तथापि छठे वेतन आयोग ने जिन चिंताओं का हल खोजने की कोशिश की, वे वैध थीं। लेकिन अब सरकार को क्या करना चाहिए? यह सही समय हो सकता है जिसमें आईएएस और प्राइवेट सेक्टर के प्रोफेशनल से चुनकर विशेषज्ञों का एक पूल बनाया जाए और सरकारी समिति इन्हीं में से नियामक निकाय के चेयरमैन के पद पर नियुक्ति की सिफारिश करे।
ऐसे चेयरमैन की तलाश में जुटी समिति फिलहाल मंत्रियों के प्रभाव में होती है, लेकिन जब ऐसा हो जाएगा तब वह स्वतंत्र रूप से काम कर पाएगी और उनके पास भी बुध्दिमानों की लंबी चौड़ी फौज होगी और उन्हीं में से वह चेयरमैन पद के लिए उपयुक्त व्यक्ति का चयन कर सकेगी।
