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  लेख  अब और भी मुश्किल हुआ भर्ती का काम
लेख

अब और भी मुश्किल हुआ भर्ती का काम

बीएस संवाददाता बीएस संवाददाता —November 19, 2008 10:12 PM IST
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आपकी कंपनी ने नई भर्तियों का लक्ष्य घटाकर 20-40 प्रतिशत कम कर दिया है। ऐसे में एक भर्ती प्रबंधक के रूप में आपका काम बहुत आसान हो जाना चाहिए।


अब वे दिन चले गए, जब आप विभिन्न विभागों के प्रमुखों की ओर से कर्मचारियों की बढ़ती मांग से परेशान रहते थे और इसके लिए अभ्यर्थियों के पीछे भागना पड़ता था। अब प्रतिभाशाली अभ्यर्थियों को भी पाना आसान हो गया है। तमाम प्रतिभाशाली लोग अब कंपनियों के चक्कर लगा हैं।

सही कहें तो इस समय भर्ती प्रबंधकों का काम और कठिन हो गया है। एक एचआर कंसल्टेंट का कहना है, ‘अब नियोक्ता जरूरत से ज्यादा देख-समझकर भर्तियां कर रहे हैं। अभी हाल के दिनों तक कर्मचारियों की बहुत ज्यादा मांग होती थी, ऐसे में कुछ कंपनियां किसी को भी भर्ती कर लेने से गुरेज नहीं करती थीं।

अब ऐसा समय आ गया है कि नौसिखियों और अनुभवी कामकाजी लोगों को अलग-अलग नजरिए से देखा जा रहा है। अब भर्तियां कम करनी होती हैं, लेकिन बेहतर लोगों की भर्तियां करनी होती हैं।’ इसका मतलब साफ है कि अब आपको अपनी भर्ती की प्रक्रिया में सुधार करने की जरूरत है।

अच्छी कंपनियों का कहना है कि इस समय उनके यहां नौकरी के लिए आवेदकों की बाढ़ सी लग गई है। एक समय वह भी था जब कंपनियों को कर्मचारियों के लिए भर्ती सलाहकारों की मदद लेनी पड़ती थी, जो ऐसे अभ्यर्थियों को तलाशते थे, जो आवेदन के इच्छुक हों।

इसके लिए कंपनियां, भर्ती सलाहकारों को पैसे देती थीं। लेकिन इस समय समस्या दूसरी है। कंपनियों के सामने संकट यह है कि हजारों की संख्या में पड़े आवेदनों में वे किस तरह से उपयुक्त उम्मीदवार का चयन करें जो उनकी सीमित जरूरतें पूरी कर सके।

एक अन्य प्रमुख सलाहकार का कहना है कि यह कंपनियों के लिए भी सीखने का एक अच्छा मौका है। वह बताती हैं, ‘पिछले चार साल से हमें अपने क्लाइंट का पीछा नहीं करना पड़ता था। लेकिन इस समय की स्थिति से मैं सीख रही हूं कि कैसे क्या किया जाए।’

वह यह भी कहती हैं कि वरिष्ठ स्तर पर कंपनियां जो भर्तियां कर रही हैं, उन अभ्यर्थियों के प्रोफाइल में भी बदलाव आया है। अब पैसे और विकास के लिए कंपनियां छोड़कर जाने वाले लोगों की तुलना में ऐसे लोगों को ज्यादा महत्त्व दिया जा रहा है जो टिककर काम करते हैं।

 कुछ इस तरह के लोग, जो विकास तो चाहते हैं, लेकिन यह जानते हैं कि मंदी के दौर में किस तरह से प्रबंधन किया जाए। इस समय कंपनियां ऐसे वरिष्ठ प्रबंधकों की ओर देख रही हैं, जो बुध्दिमान और भावुक हों और घटते हुए लाभ व कर्मचारियों की कटौती के बीच भी धैर्य बनाए रख सकें। इस समय कंपनियों का झुकाव विकास की ओर से हटक र अपना मौजूदा अस्तित्व बरकरार रखने की ओर हो गया है।

ऐसे में आखिर अच्छी कंपनियां भर्ती के क्षेत्र में आई नई चुनौतियों को पूरा करने के लिए क्या कर रही हैं? कुछ कंपनियां इसके लिए भर्ती के दौरान मनोवैज्ञानिकों की भी मदद ले रही हैं। इस समय आपके अंदर कुछ इस तरह की क्षमता होनी चाहिए कि आप कठिन दौर में भावुकता के साथ और कड़े फैसले (निष्ठुर नहीं) लेने में सक्षम हों, जिससे कंपनी को आगे ले जाया जा सके। मनोवैज्ञानिक, कंपनियों की मदद कर रहे हैं।

वे ऐसे अभ्यर्थियों की पहचान कर रहे हैं जिनकी सोच व्यापक हो। इसलिए आप इस समय कोई आश्चर्य न करें कि आपका साक्षात्कार लेते समय बोर्ड में एक अपरिचित सा व्यक्ति बैठा हो और वह कुछ इस तरह वक्तव्य दे कि, ‘अगर मेरे ऊपर कोई फर्नीचर फेंक दे, मैं सामान्यतया नाराज नहीं होता’ और उसके बाद आपसे पूछे कि क्या यह सही है या गलत।

निश्चित रूप से इस सवाल का कोई सही या गलत जवाब नहीं हो सकता, लेकिन कुल मिलाकर इसका परिणाम यह होगा कि कंसल्टेंट यह कहेगा कि इससे आपके व्यक्तित्व की पहचान होती है।

इस तरह के मनोवैज्ञानिक परीक्षणों को लेकर तमाम निराशापूर्ण विचार हैं और लोग अक्सर इसे गलत साबित करते हैं। लेकिन हकीकत यह है कि कुछ प्रमुख बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने इसे अपनी भर्ती प्रक्रिया में शामिल करना शुरू कर दिया है।

इस समय एचआर मैनेजरों का काम कनिष्ठ पदों पर होने वाली भर्तियों में भी कठिन हो गया है। तमाम कंपनियां,जो भर्तियों के लिए रिक्तियां निकाल रही हैं, उनके लिए आवेदनों के ढेर में से उपयुक्त आवेदनों को छांटना और उपयुक्त अभ्यर्थी ढूंढ निकालना कठिन साबित हो रहा है।

इन्फोसिस का ही उदाहरण ले लीजिए। कंपनी के पास एक साल में 13 लाख आवेदन पत्र आते हैं। एक एक दिन गुजरने के साथ यह संख्या बढ़ती जा रही है और इस समय पिछले कुछ साल में जितनी भर्तियां होती थीं, कंपनी ने इस साल उससे कम भर्तियां करने का लक्ष्य रखा है।

गूगल के पास इस समय एक पद के लिए औसतन 130 अभ्यर्थी आए, जबकि सर्च इंजन पावरहाउस ने ये संकेत दिए हैं कि इस साल वह बहुत कम लोगों को नौकरियां देगी। चतुर कंपनियां इस समय इन आवेदनों में से छंटनी के लिए गूगल बुक का इस्तेमाल करती हैं।

कंपनी ने प्रतिभाशाली अभ्यर्थियों के आवेदनों की छंटनी के लिए स्वचालित तकनीक बना रखी है। नौकरी के लिए आवेदन करने वाले लोगों के बीच ऑनलाइन सर्वे कराया जाता है, जिसमें उनकी मनोदृष्टि, व्यवहार और उनके जीवनी संबंधी जानकारियां मांगी जाती हैं।

यह सवाल विभिन्न आयुवर्ग के लिए अलग अलग होते हैं, जो अभ्यर्थियों को बुलाकर साक्षात्कार लिए जाने की तुलना में बहुत आसान साबित होते हैं। इसके जवाब कंप्यूटर में ही दिए गए होते हैं। इस मॉडल में  शून्य से 100 अंकों के बीच अंक का निर्धारण होता है।

इस तरह से गूगल, कंपनी के कर्मचारियों के बेहतर प्रदर्शन के बारे में पहचान करता है। ऑनलाइन मॉडल से अभ्यर्थियों के आवेदनों को छांट लिया जाता है, उसके बाद साक्षात्कार लेने वाले अपना काम शुरू करते हैं। इससे भर्ती करने वाले विभाग की लागत में कमी आती है, जिसे उत्पादकता के लिए प्रयोग किया जा सकता है, जबकि हाथ से आवेदनों की छंटनी में बहुत ज्यादा खर्च आता है।

इसका लब्बोलुआब यह है कि अब ऐसे ही कर्मचारियों की भर्ती की जाए जो वर्तमान में काम कर रहे लोगों से औसतन बेहतर हों। इससे भी महत्त्वपूर्ण यह है कि गूगल ऐसे अभ्यर्थियों के लिए बेहतर अवसर उपलब्ध करा रहा है, जो परंपरागत रूप से चयन के दौरान ठुकरा दिए जाते। अब आकर्षक और वाक्पटु अभ्यर्थियों  को धड़ल्ले से भर्ती करने के दिन लद गए हैं।

now its became more difficult to recruit people
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